जमीन पर टिकते नहीं पाँव उनके ,
वो आसमां निहारा करते हैं ,
चाँद को देख मन ही मन ,
आँखों में ,
एक तारा संवारा करते हैं ...
डरना किसी के प्यार से ,
आखिर ये कौनसा मर्ज है ,
डरना था जबकि चाह से जिसकी ,
उसको गंवारा करते हैं ...
चाह , चिपक , लगाव , खींच ,
ये होने थे डर के सबब ,
मिला कर वो दिल और दुनिया ,
प्रेम को खारिज करते हैं ...
देख पाए जो कोई दूर तलक ,
एक झिलमिलाता तारा है ,
ना आता है पास ना जाता है दूर कभी ,
प्रेम है बस वो ही एक ,
जिसे ध्रुव पुकारा करते हैं ...
अ-से
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