Mar 18, 2014

उत्सव

चुकने को हैं प्राण मेरे ,
वीरान खाली मैंदान में ,
जमा हो चुके हैं ,
अनेकों गिद्ध , कौव्वे , चीलें ,
कुत्ते , गीदढ़ , सियार ,
चूहे और चीटियों को भी आने लगी है गंध ,
अजीब सा संगीत , रूदन क्रंदन चकचकाहट ,
अजीब सी बैचैनी के साथ खुश हैं सभी
कोई उत्सव सा नज़र आता है दुनिया में ...

जैसे कोई विवाह ,
जिसको भुनाने आ जाता है पूरा समाज ,
नाचते उछलते भूतों की टोलियाँ ,
व्यापार और जग मथाई का उत्सव ...

जैसे कोई बीमार ,
जिसको भुनाने लगता है ,
छद्म चिकित्सा संसार ,
नीम हकीम सफ़ेद कोट और आला ,
सभी मिल बाँट खाने को तैयार ,
जान और जहान ...

पर जीने के लिए ,
सब जायज है शायद ,
की उत्सव है संसार ,
और सारी विभीषिकाओं के बावजूद ,
बहते हैं प्राण ,
होता है अनवरत नृत्य ,
दुःख और सुख का ...

शोक हो या ख़ुशी ,
जन्म हो मृत्यु हो या विवाह कोई ,
आखिर सभी माहौल के लिए ,
तैयार हैं गीत ,
और धुनें भी ...

अ-से 

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