Mar 11, 2014

दो झपकियाँ ..

पुरुष बचता रहा , स्त्री होने से
स्त्री डरती रही , पुरुष होने से
अंत में दोनों ही हो गए एक ..

नाकाम हो जाना ही जीवन का रहस्य निकला !!

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मेरा स्त्री से प्रेम स्त्री से प्रेम नहीं , 
स्त्री के बहाने प्रेम है ;
प्रेम मेरे ही दिल में उपजा भाव है ,
और बाकी सब बहाना है उसका ,
निमित्त मात्र ,
माध्यम !!

पर मेरा स्त्री से प्रेम स्त्री से ही प्रेम है ,
भले ही वो बहाना है ,
पर वो बहाना जब वास्तविक हो जाता है ,
तो मेरा आनंद समाप्त हुआ जाता है !!

जबकि मेरा स्त्री से प्रेम मेरा स्त्री से प्रेम ही था ,
पर स्त्री अनावश्यक और अप्रासंगिक है ,
और उसका होना भी आवश्यक है !!

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