Mar 11, 2014

दो प्रेम कवितायें

मैं देखता रहा उसे देर तक ,
खुद से दूर जाते हुए , 
पीछे नहीं मुड पाया ,
कि उन आँखों में आंसू होंगे ,
वो खिड़की में कैद थी तब ,
मेरे कदम जमीन से भारी थे !! 

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मैं भी तो हूँ तेरी ही रूह का हिस्सा ना , 
क्या खयाल ना आता मुझे अपने दर्द का , 
मेरी समझ मात खायी है हर कदम माना , 
पर क्या ख़ुशी ख़ुशी हार जाना बिसात नहीं होता !! 

मैं भी हूँ देख तेरी आँखों के कोरों में ,
छलकता नहीं तो क्या भरा नहीं हूँ ,
जताता नहीं जज्बे जब्त किया रहता हूँ , 
क्या लगता है तुझे मैंने सोचा नहीं होगा !!

मैं आज यूँ अब तलक यहाँ तक इस समय ,
बहा हूँ एहसास साथ तेरे खयालों के ,
तू नहीं जानता ना ही आसान सब बताना ,
देख मैं पाता हूँ क्या हर कदम के आगे !!

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अ-से

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