कुछ सूखे पत्ते ,
बिखरी सी धूल ,
सूखी दूब ,
खाली मैदान ,
सर पर सूरज ,
चमकती धूप ,
और आवारा से दो कदम ...
कोई चल रहा है ,
यूँ ही ,
तय दिशा नहीं ,
कुछ कंकडों को पैर मारता ,
बेपरवाह , बे सबब , बेखयाल सा ...
जीवन नाम है चलते रहने का ,
वो कहते हैं ,
पर कोई दिशा नहीं बता पाते ,
ठीक से , किस ओर ...
अक्सर वो दिखाते हैं ,
मंजिलें उसे ,
अनुमान से ,
वो पहुंचे नहीं कभी ,
या शायद ,
पहुँच कर भी ,
वहां ठहर नहीं पाए ,
पर चाहते है ,
कुछ कहना जताना चाहते हैं ,
पर क्या चाहते हैं ,
उन्हें पता नहीं ...
बस चाहते हैं कुछ ,
पर क्या कुछ ,
शायद सब कुछ ,
या कुछ भी नहीं ...
अ-से
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