Apr 11, 2014

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !


रोटी को पाँव से दबाए

तलाशी जा रही है हड्डी 
फ़ोन होल्ड पर रख कर 
झांकी जा रही है खिड़की 
कॉलेज अलग बात है फेसबुक अलग 
घर की छत और एक अलग दुनिया 

ऐसा करो तुम सारे लड़ो 
और जीतने वाला नवाजा जायेगा
द रियल मेन की उपाधी से 
जो दे दिया जाएगा पुरूस्कार में
और फिर उस बलवान को पत्थर दिल बता
तलाश लिया जाएगा
कहीं कोई हरक्युलिस
युद्ध पर गए हरक्युलिस के
समय ना देने के लिए
बेरोजगार किसी दिल से बतियाया जाएगा
फिर उस निराश कंधे की बातों पर
बनाया जाएगा उसके सेंस ऑफ़ ह्यूमर का व्यंग्य
बायें से भायेगा कोई जो हँसा सके
और शिकायत की जायेगी
उसके ना सुनने की कमजोरी की
आखिर में कोई आएगा
जो उसे पूरी तरह से नकार कर
सब्ज बाग़ दिखलायेगा
और रसपान कर
भँवरे सा उड़ जाएगा
अब उस बेवफ़ा को कोसा जाएगा जिन्दगी भर

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !!

सजा-ए-प्रेम


सुनवाई का वक़्त नहीं था 

उसे सुना दी गयी 
सजा-ए-प्रेम 

एक सन्नाटा छा गया 
पानी से धुंध उठने लगी 
हवा भी डर कर ठंडी पड़ गयी 
सारी आग सिमट कर कहीं अन्दर जम गयी 
सारे तारों ने अँधेरो में डूब कर आत्महत्या कर ली 
इतना अँधेरा की उल्लुओं ने भी आँखें बंद कर ली 
सियारों ने घबरा कर रोना छोड़ दिया
चमगादड़ जमीन पर आ गिरे
शिव भी रोक ना पाए गरल
एक कड़वा घूँट निगल ही गए

बस अब चाँद के कोरों से
टपक रही थी रोशनी
टप टप टप

और तो और वो चूहे
जो नहीं जानते थे हमारी दुनिया
वो भी रोये जा रहे थे !!

वो लौट कर आती और देखती आइना


हर बार 

वो लौट कर आती 
देखती आइना 
और बिलख पड़ती 

जाते समय भी 
वो देखती थी आइना
देर तक बारीकी से
हर बार

वो खूबसूरत निगाहें
खूबसूरत नज़र भी
चुनती रही तिनक तिनका
दुनिया की खूबसूरती
और गढ़ती रही खुदको

वो मंझी हुयी सी कलाकार
झोंकती खुदको आईने में
और फिर कुछ याद कर हो जाती हताश

एक दिन जाने से पहले
उसने तोड़ दिया आइना
और खिलखिला उठी
बिखरे कांच के टुकड़ों की चमक में

उसे नहीं जताना था अब
कुछ भी किसी को
आज वो जा रही थी
मुक्त हिरणी सी
गाते हुए
उत्सव मनाते हुए
हंसती खिलखिलाती
झरती बहती लहलहाती

उसे नहीं होना था शामिल
किसी बेमनी दौड़ में

Apr 10, 2014

जब जाना की वो नहीं जानता था


वो नहीं जानता था 

क्या होता है किसी से प्रेम करना 
बस जानता था 
क्या होता है किसी की चाहत रखना 
टूटा कुछ 
जब जाना की वो नहीं जानता था 

वो नहीं जानता था 
क्या होता है दिल टूटना 
बस जानता था 
क्या होता है कुछ छूटना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

वो नहीं जानता था
क्या चाहती थी वो उससे
बस जानता था
क्या होता है दे दिया जाना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

बहुत टूट चूका है वो शख्स
उससे जुड़ने की कोशिश में
बहुत जख्मी है अहम् उसका
और अफ़सोस है एक
कि बात के मायने बात के ख़त्म हो जाने पर निकलते हैं  !!

Pathless

हाँ वो कार चमकती नहीं



हाँ तुम कह सकते हो वो कार चमकती नहीं 

उसके शीशे धुंधले हैं और उनके पार का शख्स नज़र नहीं आता ठीक से 
और इस कार का चालक एक गरीब इंसान है 

वो गरीब इंसान सच में बहुत गरीब इंसान है 
जो कभी नहीं झुठला सका ये सच 
की रास्ते पर उतरने से पहले ही 
वो गुजर चुकी थी एक दुर्घटना से 
और उसके खरोंच अब तक हैं उसकी बॉडी पर 
उसके इंजन में बैठ चुकी हैं कुछ खराबियाँ जो पकड़ में नहीं आती 
और उसे चलाने वाले के मन में एक लम्बे वक़्त तक बैठी रही दहशत
वो दहशत जिसने उसे बना दिया एक संकोची चालक
और हर बार जब वो गुजरता है किसी और वाहन के नजदीक से
जो उसका सच हावी हो जाता है उस पर

वो सच जो अब सच नहीं है
जबकि अतीत को मर जाना था जो अब वहां नहीं है
पर उसकी धडकनों ने समय समय पर जिलाया है उसे
और वो अतीत कभी अतीत हो ही नहीं पाया
वो आंत्र कृमि आँतों पर चिपका हुआ खाता रहा धडकनें
और अब जब कभी वो चाहता है चमकाना अपनी कार
तो नहीं चमका पाता

वो गरीब चालक जो अपने अतीत के मोह में फंसाहुआ
अपने वर्तमान से सौतेला व्यवहार करता रहा
और अब उसकी संताने बहुत गरीब है
जिनकी आंतड़ियाँ जन्मजात सूखी हुयी हैं
और अब उसके लिए बहुत मुश्किल है उस कार के शीशे चमकाना !!

अ-से

खिड़कियाँ निहारती है पंखे को



खिड़कियाँ निहारती है पंखे को
फिर एक लम्बी साँस छोड़
झुका लेती है आँखें !
बल्ब चमकते रहते हैं बेसबब 
रोशनी तो बिखरती है पर खुशियाँ नहीं !

मकड़ियां थक कर सो चुकी हैं अपने जालों में
कई जगह से टूट चुके हैं तार उनके !
किताबें अवसाद में लेटी हुयी हैं
धूल भरी चादर औढ़ कर
उनमें कहानियाँ तो हैं पर आवाज़ नहीं है !
अ से

आओ ! भूल जाते हैं सब कुछ


आओ !

भूल जाते हैं सब कुछ 
और हँसते हैं साथ बैठकर 
अपने साथ गुजरी हुयी दुर्घटनाओं पर 
की अगर आज तुम खुश हो किसी वजह से या बेवजह 
तो तुम देखना चाहोगे कल उसे एक ताजा तरीन सुबह में 

आओ !
बुनते हैं नया कुछ 
और बनाते हैं एक खूबसूरत कहानी 
अतीत की अनुभूतियों के खजाने में से चुन चुन कर
की अगर आज तुम्हारे पास हैं मसाले सभी खटास और मिठास के
तो तुम भर देना चाहोगे कल उसका अपने हाथों के बेहतरीन स्वाद से

आओ !
चलते हैं ना किसी सैर पर
और चलते हैं दूर तक मैदानों में हाथ पकड़े
खुले हुए आसमानों में हवाओं के मेहमान बनकर
की अगर आज वक़्त है तुम्हारे पास जो जाने कल होगा या नहीं
तो तुम बिता देना चाहोगे उसे उसके साथ जो रखता है मायने जिन्दगी से भी ज्यादा

आओ !
क्या सोचना है
कौनसा वक़्त होता है ऐसा
जब डर नहीं होते ना होती हो उलझने
और तुम बैठे रहो इंतज़ार में जिसके !!

 अ से 

घर के अन्दर घर


एक घर 

अन्दर एक घर 
उस के अन्दर एक घर 
और वो स्थायी निवासी वहाँ की 

एक घर स्वाद और तृप्ति का
एक घर भाव और अभिव्यक्ति का 
एक घर अनंत और स्थिरता का 

वो निवासी उस घर की 
घर के अन्दर घर की
हमेशा वहाँ उपस्थित
स्वागत के लिए तैयार
करती है इन्तेजार

बाहर निकलती है जब
तो किसी का हाथ पकडे
और चलती है साथ
चाँद तक
चाँद के पार तक
समय के पार तक जाना चाहती है

वो जो चाहती है तुम्हे
भर देना
अपने स्वाद से
अपनी सेवा से
अपने प्रेम से

वो जो चाहती है एक घर
घर के अन्दर एक घर
जहाँ वो जानती है तुम रहना चाहते हो
वो देखना चाहती है तुम्हे
वहाँ भीतर तक

वो जो नहीं रह सकती दूर
ज्यादा देर तक घर से
घर के अन्दर घर से

वो जो बांधे रखना नहीं चाहती तुम्हे
पर एक तनी हुयी
रेशमी रोशनी की डोर से
नापती रहती है तुम्हारी दूरी
और जैसे ही वो डोर
खिंचाव देना बंद कर देती है
उँगलियों पर
हलकी पड़ जाती है
वो समझ जाती है
की अब जो रहता था यहाँ
वो अब मेहमान हो चुका है
वो आयेगा भी लौट कर
तो फिर से चले जाने के लिए !!

जमीन के भीतर भी एक है आकाश


बाहर धूप चमक रही है परतों पर 

भीतर मिट्टी नम है दूब लगी हुयी 

एक पौधा है हमेशा हरी कोंपलों वाला 
जो पनपता है बस अन्दर की और 

एक फल है जिसके रेशे और खोल के भीतर 
ताजगी है जल है और मिठास भरी हुयी 

जमीन के भीतर भी एक है आकाश
जहाँ हवा है पानी है और रोशनी भी

और कुछ लोग हैं जो बंद करके दरवाजे
बैठे रहते हैं खिडकियों के पास आँखें मूंदे !!

अ-से

क ने कहा ख ने सुना ...


क ने कहा खामोशी 

ख ने कान लगा दिए 
और वो शोर हो गयी ! 

क ने कहा प्रेम 
ख ने तौबा समझा 
और वो चोरी हो गयी !

क ने कहा आस ना रखना 
ख अवसाद में आ गया 
आशावाद लिखने लगा !

क ने कहा संन्यास
ख आलसी हो गया
संन्यास का मायना बेवकूफी !

क अब कहता ही नहीं कुछ
ख अब भी अर्थ गढ़ता है
कभी डर कभी अकड़ और कभी अक्षमता !

ख का क्या है वो शून्य की भी व्याख्या कर सकता है
और अच्छाई को भी कमजोरी समझ सकता है !!

छोड़ कर ...


जो हँसते थे बात बात पर 

उन्हें हँसता छोड़ आया 
जो रोते थे बात बात पर 
उन्हें रोता छोड़ आया 

सुनाते थे वो अपनी कहानी 
और खो जाते थे
बाहर नहीं आते थे कभी
सो जाते थे

भरे हुए थे सभी
यूँ अपने ही सवालों से
सुनते भी थे मुझे
तो अपने ही हवालों से

छोड़ने निकला सूखे अफ़सोस
और छोड़ आया जहां
बाकी रह गए कुछ मासूम
बिखरे हुए यहाँ वहाँ !!

अ से 

Apr 3, 2014

मैं चाहता हूँ कहना ...

छुई मुई के पौधे सी कोई संवेदना हो तुम
कितनी पहचान है तुम्हे हर तरह के स्पर्श की
तुम्हारे सर को चूमना तुम्हे भरोसा देना है ,
आश्वस्त करना और सिमटा लेना किसी गर्म ऊनी शाल में 
वहीँ सर को चूमना विदा लेते वक़्त तुम्हे सांत्वना देना है
ह्रदय को शांत कर बैचैन मन को हल्का कर देना
तुम्हारे गाल पर चूमना तुम्हे चहका देना है गुलाब सी ख़ुशी से
जो नज़र आता है तुम्हारे खिल उठे गालों पर
और तुम्हारे होठों को चूमना उन्हें सिल देना है प्रेम से
बातों की दुनिया से दूर सीधे दिल को महका देना
तुम्हारे हाथों पर स्पर्श हथेलियों पर उंगली फिराना
अनकहे ही बाँध देना तुम्हें नाज़ुक एहसासों की डोर से
मैं चाहता हूँ तुम शांत हो जाओ अपनी सारी चिंता थकान मुझ पर छोड़कर
और पास बैठकर खो जाओ भूल कर ये सब कुछ हल्के रेशमी ख़्वाबों में
मैं चाहता हूँ तुम भीगने लगो भावनाओं के किसी झरने में
दुनियावी शोर से दूर किन्ही जादुई धुनों में
और मैं निहारता रहूँ तुम्हारी खामोशी
तुम्हारी निश्चिंतता से भर जाऊं
मैं चाहता हूँ कहना की तुम मुक्त महसूस करो
लोहे सी तप्त दुनिया में सोने सी धूपिल
कानों पर लटकी हुयी बुंदकियों सी टिमटिमाती
तुम्हारी खामोशी में इतना खामोश हो सकूँ
कि छलांग लगा सकूँ आकाश के दरिया में
बहते हुए तारों के बीच और देखता रहूँ तुम्हें
पृथ्वी के छोर पर बैठे हुए आकाश में पाँव लटकाए
मैं चाहता हूँ तुम्हारी सुखद उपस्थिति तुम्हारा होना वहाँ
पर मुझसे भी बेखबर खामोश रात में डूबी हुयी
और तब किसी ख्वाब से उभरी हुयी
तुम्हारी मुस्कराहट को देखकर मुस्कुरा सकूँ !!
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क़त्ल


मैं मार देना चाहता था 

पहले उन सब को 
फिर उन उन को 
फिर उसको 

करने को तो बच्चा भी क़त्ल कर सकता है 
पर मजा नहीं है उसमें उतना 
जितना खुद मरने में है !

मैं चाहता था मर जाना ,
पहले तेरे साथ
फिर तेरे लिए
फिर तुझमें ही

मरने में तो अभी का अभी मरा जा सकता है
पर मजा नहीं है इसमें इतना
जितना पल पल मरने मैं है !

अ-से 

Apr 2, 2014

शब्द


दर्पण की तरह 

हैं एक भीत के दो पक्ष 
एक सुनने वाला 
एक बोलने वाला 

वक्ता 
निचोड़ कर मन 
जोड़कर सृष्टि 
बनाता है एक शब्द 
बीजमय शब्द ...

उदगार
होने पर
लगता है
चुक गया
शब्द का जीवन ...

पर
वाक् पंछी है
बीज वाहक
कर्ण पटल
ऊपर सतह
मस्तिष्क की जमीं की
और उस बीज को मिलती है
मानस जमीन भावना जल और चेतन धूप ...

अब वो बीज
उपजेगा
सुनने वाले के ह्रदय में
और रचेगा
पूरी सृष्टि
वो मन
फिर से ...

वो उदगार शब्द का जन्म था जमीं पर !!

अ-से

Surprize


ख़ामोशी में ताकती निगाहें 

शायद तलाश रही थी कोई जुगनू 
बजाय इसके 
मिला एक विस्मय 
सुखद आश्चर्य 
चहकती हुयी दो आँखे 

एक पल ख्वाब सा खामोश 
एक पल हकीक़त खिलखिलाती 
और इतना ही नहीं 
आँखों के नीचे था
एक और सुखद आश्चर्य
एक जोड़ी मुस्कान
और अपना सा लगता कोई चेहरा

अनुमान था जबकी मौसम साफ़ रहेगा
और सामने का मैदान खाली
पर अब वहाँ कुछ मोर नाच रहे हैं
चिड़ियाएँ चहकने लगी हैं
और ठंडी हवा भी चलने लगी है
मौसम से लगता है
शायद आज रात सूरज भी चमके !!

अ से 

मैं पीता हूँ तुझे

अहा मय ! ओ मदिरा ! अये साक़ी !

मैं पीता हूँ तुझे 
बुझाने को 
बुझा दिए जाने को 
प्यास 
सूखा मन 
दग्ध ह्रदय

और मैं पीता हूँ 
और मैं डूब के पीता हूँ 
मैं पीना चाहता हूँ तब तक
जब तक बाकी है मेरी प्यास

और हर घूँट जलते
तेरे जहन में उतरते
हर बूँद के साथ
बढ़ जाती है मेरी प्यास

और मैं पीता हूँ तुझे
बूँद बूँद
मैं पीता हूँ तुझे
बूँद बूँद प्यास

मैं पीता हूँ थोड़ी और
थोड़ी और बढ़ने लगती है
प्यास
और मैं पीता हूँ
थोड़ी और प्यास
और मैं पीता हूँ तुझे
प्यासा बनकर
और तू पीती है मुझे प्यास बनकर !

अहा तुम ! ओ प्रिय ! अये इश्क !

अ से 

नारी अस्तित्व


बारिश के बाद के आसमान में सुनाई देती आवाज सा 

स्पष्ट उभरा हुया तुम्हारा अस्तित्व
दूब पर ठहरी हुयी ओस जैसी तुम्हारी स्वच्छ सजल देह
पहाड़ों पर बिछी हुयी कोई बर्फ की धुली हुयी चादर सी हो तुम 

मात्र प्रेम के चारों ओर खुद को बुनती हुयी 
आगे की ओर बढती हुयी नर्म कोमल लताओं सी 
हर पल सजग 
हर कतरा समर्पण 
दे दी जाती हुयी जीवन को 

कुछ हासिल कर लेने के मद में बलात लिप्त और मोहित पुरुष को
अपने स्पर्श और इशारों से समझाती शक्ति का उपयोग और संचयन
तुम भद्रता का मूर्त उद्धरण
और अनुशासन का उदाहरण

अस्तित्व के छोर तक गहरी तुम्हारी संवेदनाएं
भूख तृप्ति और तुष्टि को कौन जानता है तुम से बेहतर
प्रकृति सरीखी कहीं ऊंची कहीं गहरी
और कहीं घुमावदार तुम्हारी देह
फिर भी हर अंश सरल हर दंश संवेदन

आँखों में सुबह की नर्म धूप सी
सहज सरल और खिली हुयी चमक लिए
खिलखिलाती हुयी नदी जैसी लहराती तुम्हारी बातें
तरंगित लहक लिए हुए तुम्हारी आवाज
स्वच्छ धवल आँखें
जीवन के प्रति आश्वस्त निगाहें
सुन्दर कल्पनाओं में
वास्तविकता का रंग भरती हुयी अनुरक्ति

कोई आश्चर्य नहीं की दिल दुनिया और
दौड़ती हुयी जिन्दगी के किस्से
सब तुम्हारे ही इर्द गिर्द बुने हुए हैं

एक पथरायी हुयी रात की मूरत सा खामोश पुरुष
और एक चहकती हुयी सुबह की दिनचर्या सी दीप्त तुम

तुम्ही तो हो
जो जीवन की अनावश्यकता
दुःख दर्द आँच ताप
और अँधेरे से ऊबे हुए
भटकते हुए पुरुष मन में
भरती हो उमंग
दिखाती हो राह

नारी !
राह भी तुम
रास्ते की छाँव भी तुम
और जिससे मिल कर
हो जाता है पुरुष पूर्ण
वो आखिरी ठौर भी तुम

अ से 

योगी


पहाड़ों में
सघन वृक्षों के बीच एक गुफा 

पत्थर का द्वार और रिसता हुआ पानी 
दीवारों पर चिपकी हुयी लताएं और पीपल की शाखाएं 
सर्द हवा और अद्भुत शांति 
पहाड़ी रंग की जटाएं और कमलासन लिए 
द्वार पर बैठा एक योगी 
रिसते टपकते पानी और पोधों के बीच 
धूप छाँव और अँधेरे में भी 
एक पत्थर पर ध्यानमग्न 

वही इंसानी देह वही संसार वही जीवन
वही हवा पानी और आवाजें
पर अप्रतिम शांती
अनहद आनंद
संतुष्टि
कुछ ना करते हुए भी
अपना कार्य करते हुए

मन मजबूत
अविचल
संयत
और
शांत

ठोस आनंद से भरा हुआ
वो स्थिर योगी
वहाँ है या वहाँ नहीं
सिर्फ वहाँ है या हर कहीं !!

अ से 

एक रंगीन सी दुनिया थी ...


एक रंगीन सी दुनिया थी 

हर चीज का अपना रंग
अपनी ख़ुशी अपना ढंग 

तब ये दुनिया एक मैदान थी 
जिसमें दिखाना होती थी सिर्फ अपना कौशल 
तब जीत हार से कहीं ज्यादा मायने रखता था खेलना 
दमख़म और साहस
जिंदगी का मायना सिर्फ इतना था 
कि जिसे खेलना है वो खेले जिसे नहीं खेलना वो बाहर बैठे 
चोट खरोंच गिरना और दर्द सब शारीरिक थे ,
और इस सब को सह जाना भीतर तक ख़ुशी देता था 

तब एक चित्रकार सबसे चटख धुनें गाता था
तब एक गायक सरगमी लहरों पर बेख़ौफ़ गोते लगाता था
तब एक शिल्पी आसानी से समझा लेता था पत्थरों को अपने दिल की बातें
और तब डर नहीं लगता था किसी भी शब्दकार से

और तब एक शब्दकारा वहां आयी
उसकी वेश भूषा से वो कोई चितेरी नज़र आती थी
जो सक्षम थी हाथों से चाक पर आकार गढ़ने में

कान दिमाग से बैर बैठा दिल को रास्ता देने लगे
उसकी दो साधारण सी पंक्तियाँ भी पहली बार पढ़ी कविता सरीखी थी

और उसके शब्दों के स्पर्श भरने लगे नए से रंग हर चीज में ,
जिंदगी रसमय होने लगी थी खुशियाँ महकने लगी थी
उसने चीजों के प्राकृतिक रंग बदल दिये
और वो दुनिया बिलकुल ही नयी सी लगने लगी

प्यार भरी सरगम
विश्वास भरा स्पर्श
खूबसूरत रंग रूप
मिठास और खुशबू
अस्तित्व का कोई कोना उससे अछूता नहीं था

पर एक सफ़र के साथी एक सफ़र तक ही साथ होते हैं
हम सब छोटे छोटे सफ़र के साथी
सबके स्टेशन अलग हैं सबके वक़्त अलग
वो दिन भी आया जिसका इन्तेजार नहीं था
जब उस कलाकारा ने समेट ली अपनी शब्द कूंचियाँ
और कर लिए रास्ते अलग

ये पता था की ये सब हमेशा नहीं रहना
और मुझे भी लौट ही जाना है ,
पर ये नहीं पता था की उसके साथ
चले जायेंगे उसके दिए वो सभी रंग
रस और रास
यहाँ तक की पहले वाले रंग भी नहीं थे अब
अब सब कुछ खाली और रंगहीन था
सब कुछ खामोश
अब कोई कुछ नहीं बोलता था !!

अ से 

इंतेज़ार

समुद्र के बीच एक टापू है जहाँ अक्सर बारिश होती है
वहां कोई वर्षा वन नहीं बल्कि हरियाली और घास के मैदान हैं
घास कहीं ऊंची लम्बी भी है तो कहीं नर्म दूब सी भी
वहां कोई उल्कापात नहीं होते ना ही कोई धूमकेतु कभी गिरा है 
बस समुद्र के तूफ़ान और छोटे मोटे भूकंप कभी कभी 
वहां बसने वालों जीवों को बैचैन कर देते हैं 
पर फिर वो ही शांति लहरों का शोर और सुहानी हवाएं ...

कुछ इंसान भी हैं जो सारी दुनिया से जान बूझ कर अनजान
वहां अपना छोटा सा जहां बसाए रखते हैं
दुःख अफ़सोस और यादों की बस्तियों से दूर
वो वहाँ प्रकृति के गीत गाते जीवन का उत्सव मनाते
अतीत की सूखी लकड़ियों को जलाकर उसके चारों ओर
वक़्त की लहरों पर पाँव साध कर ,
शाम से रात तक तरंगों के साथ नृत्य करते हैं ...

क्षितिज पर उगती सुबह के साथ जाग जाने वाले वो लोग
अपने बच्चों को कभी नहीं बताते जब तक कि वो खुद ना समझने लगें
की जो गए हैं वो चले गए हैं ना लौट के आने के लिए
अनंत समुद्र और आजाद हवा के बीच रहने वाले वो लोग
नहीं बोते शोक के बीज अपनी जमीन पे
और हर रात बेफिक्र सो जाते हैं
जानते हुए और खुशी खुशी स्वीकार कर
ये टापू उनका जहां उनका दिल
समा जाना है एक दिन इस समुद्र में इसकी लहरों में ...

वो वास्तव में इंतेज़ार में हैं उस दिन के !!

ईशान