दर्पण की तरह
हैं एक भीत के दो पक्ष
एक सुनने वाला
एक बोलने वाला
वक्ता
निचोड़ कर मन
जोड़कर सृष्टि
बनाता है एक शब्द
बीजमय शब्द ...
उदगार
होने पर
लगता है
चुक गया
शब्द का जीवन ...
पर
वाक् पंछी है
बीज वाहक
कर्ण पटल
ऊपर सतह
मस्तिष्क की जमीं की
और उस बीज को मिलती है
मानस जमीन भावना जल और चेतन धूप ...
अब वो बीज
उपजेगा
सुनने वाले के ह्रदय में
और रचेगा
पूरी सृष्टि
वो मन
फिर से ...
वो उदगार शब्द का जन्म था जमीं पर !!
अ-से
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