Apr 2, 2014

शब्द


दर्पण की तरह 

हैं एक भीत के दो पक्ष 
एक सुनने वाला 
एक बोलने वाला 

वक्ता 
निचोड़ कर मन 
जोड़कर सृष्टि 
बनाता है एक शब्द 
बीजमय शब्द ...

उदगार
होने पर
लगता है
चुक गया
शब्द का जीवन ...

पर
वाक् पंछी है
बीज वाहक
कर्ण पटल
ऊपर सतह
मस्तिष्क की जमीं की
और उस बीज को मिलती है
मानस जमीन भावना जल और चेतन धूप ...

अब वो बीज
उपजेगा
सुनने वाले के ह्रदय में
और रचेगा
पूरी सृष्टि
वो मन
फिर से ...

वो उदगार शब्द का जन्म था जमीं पर !!

अ-से

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