Apr 11, 2014

वो लौट कर आती और देखती आइना


हर बार 

वो लौट कर आती 
देखती आइना 
और बिलख पड़ती 

जाते समय भी 
वो देखती थी आइना
देर तक बारीकी से
हर बार

वो खूबसूरत निगाहें
खूबसूरत नज़र भी
चुनती रही तिनक तिनका
दुनिया की खूबसूरती
और गढ़ती रही खुदको

वो मंझी हुयी सी कलाकार
झोंकती खुदको आईने में
और फिर कुछ याद कर हो जाती हताश

एक दिन जाने से पहले
उसने तोड़ दिया आइना
और खिलखिला उठी
बिखरे कांच के टुकड़ों की चमक में

उसे नहीं जताना था अब
कुछ भी किसी को
आज वो जा रही थी
मुक्त हिरणी सी
गाते हुए
उत्सव मनाते हुए
हंसती खिलखिलाती
झरती बहती लहलहाती

उसे नहीं होना था शामिल
किसी बेमनी दौड़ में

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