Apr 11, 2014

सजा-ए-प्रेम


सुनवाई का वक़्त नहीं था 

उसे सुना दी गयी 
सजा-ए-प्रेम 

एक सन्नाटा छा गया 
पानी से धुंध उठने लगी 
हवा भी डर कर ठंडी पड़ गयी 
सारी आग सिमट कर कहीं अन्दर जम गयी 
सारे तारों ने अँधेरो में डूब कर आत्महत्या कर ली 
इतना अँधेरा की उल्लुओं ने भी आँखें बंद कर ली 
सियारों ने घबरा कर रोना छोड़ दिया
चमगादड़ जमीन पर आ गिरे
शिव भी रोक ना पाए गरल
एक कड़वा घूँट निगल ही गए

बस अब चाँद के कोरों से
टपक रही थी रोशनी
टप टप टप

और तो और वो चूहे
जो नहीं जानते थे हमारी दुनिया
वो भी रोये जा रहे थे !!

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