Apr 2, 2014

लिखने के लिए

लिखने के लिए ,
जीना पड़ता है शब्दों को ,

बंद कमरे में अकेले बैठा इंसान ,
फिर क्या लिखे कुछ ,
जबकि नहीं मुस्कुराती दीवारें उसकी बातों से ,
ना ही बेहोश घुमते पंखे ,
और बेवजह बहती हवा को कोई सुध है ,
की कौन है वहां ,

अनुमान के आधार पर ,
अतीत की गहराइयों में से ,
निकाल कर रखे जा सकते हैं कुछ रंगीन पत्थर ,
पर उनकी चमक अब जा चुकी है ,

जो लिखी जा सकती थी ,
20 की उम्र में ,
वो प्रेम कहानियाँ ,
अब अगर लिखी जाए ,
तो नादानी , अवसाद और शतरंज का किस्सा हो जाएगा ,

शब्द सांस लेते होने चाहिए ,
प्रणव नाद हो जिनमें ,
और मायने जिनके खामोशी हों ,
जो सर का भारीपन ना हो ,
बल्कि राहत का सन्देश बने ,

लिखने के लिए ,
होना चाहिए था मुझे किसी कहानी का हिस्सा ,
जो की शायद मैं नहीं हूँ ,
या अगर हूँ भी ,
तो बंद कमरे में सोते हुए ,
एक इंसान की कहानी ,
जिसमें शायद ही कोई दिलचस्पी लेना चाहे ,
सिवाय इस बात के ,
की बंद कमरों में झाँकने का भी अपना एक मजा है !! 

अ-से

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