दृश्य अग्नि की आंच में
जलते फूल होते महक
मद्धम मद्धम
जलता जल शीतलता
मुक्तक शुद्धक पावक
अनल करती व्याख्या
फूल रहते हँसते गाते
भंवरे दूर से बतियाते
तितलियाँ बैठ रंगती पंख
मधु मख चुरा ले जाती बातें
गोष्ठियों में संचता काव्यरस
अपने ही गीतों को
सुनने दौड़ता आसमान
अपनी ही छुअन से
जलने लगती हवा
खुद ही को देखकर
बहने लगती आग
खुद ही को रसकर
महक उठता जल
ह्रदय में संचारता
उड़ता प्रेम पराग
मन को तरंगता
सरगमी संसार
आकाश में गूंजता
धनकीला प्रकाश
अ-से
जलते फूल होते महक
मद्धम मद्धम
जलता जल शीतलता
मुक्तक शुद्धक पावक
अनल करती व्याख्या
फूल रहते हँसते गाते
भंवरे दूर से बतियाते
तितलियाँ बैठ रंगती पंख
मधु मख चुरा ले जाती बातें
गोष्ठियों में संचता काव्यरस
अपने ही गीतों को
सुनने दौड़ता आसमान
अपनी ही छुअन से
जलने लगती हवा
खुद ही को देखकर
बहने लगती आग
खुद ही को रसकर
महक उठता जल
ह्रदय में संचारता
उड़ता प्रेम पराग
मन को तरंगता
सरगमी संसार
आकाश में गूंजता
धनकीला प्रकाश
अ-से
No comments:
Post a Comment