May 9, 2014

( प्यासे पंछी -11 )

कभी घोंसलों में 
कभी सूखी टहनियों पर 
बैठे रहे बिताते रहे 
बदलते मौसम बदलते आशियाने 
पंख फडफडाते रहे रह रह कर 


रुंधे हुए गले से गीत गाते 
चहचहाते , और थक कर चुप हो जाते 
रात तक उड़ते बेसबब 
और फिर अंधेरों में खो जाते
करते सुबह का इन्तेजार

बारिशों में भिगो लेते पंख
बेबस फिर उड़ नहीं पाते कुछ देर तक
और फिर से वही तलाश
फिर से बेतरह उड़ते फिरना

आसमान सर पर है
जमीन कहीं नहीं नज़र आती
और जो नज़र आती है उसका समय तय है
फिर से छोड़ देना है आशियाँ
की पर मारते रहना ही है नियति

आखिर कितना भर चाहिए था
गला तर करने को
पर मन की प्यास है
की बुझती नहीं है
कि फिर तलाशा जाएगा
एक नया आशियाँ
बनाया जाएगा एक नया घोंसला ...

शब्द कणिंकाएं


एक विशेष प्रकार की कणिंकाएं 

हैं उनके रक्त में
शब्द कणिंकाएं
उनके भाव शब्दमय हैं
जो हर संवेदना पर छलक जाते हैं
पलकों के भीतर से 

वो लोग जिनके दर्द, खुशी सब शब्द हो जाते हैं
इतने मूर्त कि आँखों से दिखाई देते हैं
उन्हें ज़बान की जरुरत नहीं
उनकी नसों में बहते हैं लफ्ज़
उनकी जिंदगी कहानी हो चुकी है
और हर अनुभव कविता
हर संवेदना, हर टीस, हर एहसास
कुछ भी अनकहा नहीं
उनके पास अनेको स्वर हैं
पर फिर भी
वे अपनी बात नहीं कह पाते
के उनके शब्दों को समझना
बेदिल बेख्याल लोगों के बस का नहीं
के लिख देने भर से बात नहीं पहुंच जाती
नर्म गीली ज़मीन चाहिए
उन्हें किसी दिल में उपजने को !!

अ से 

गर्मियों के नीरस में हलके हलके सुख ...



सब कंचे चमकते हैं अलग अलग सी ख़ुशी से ,

कुछ कंचे उदास भी हैं , बावजूद इसके वो भी चमकते हैं ,
रंगीन कांच , बर्नियों के पार देखना , 
गर्मियों के नीरस में हलके हलके सुख ...

सीढियां , चटाई , फर्श , आइना और उदासी ,
मेज , दीवार घडी और ये की-बोर्ड 
तुम्हारी आँखों की चमक ,
सब तो है यहाँ ,
सब की खनक है ...

सब कुछ तो बात करता है ,
फिर इतना सन्नाटा क्यों हैं ,
जबकि मैं खाली हूँ किसी भी दुःख से ,
कोई बहाव नहीं ,
किसी ख़ुशी की चमक है हलकी सी चेहरे पर ,
पर लहर नहीं आती ,
फिर बिना सागर ये दो सीप क्यों हैं ...

जिंदगी सतत चमक रही है सूरज सी ,
सपनों में लहर है पानी सी ,
ठहराव कहाँ उसमें ,
कहाँ संभव है हर ख्वाब का बस पाना !!

~ अ-से

स्वप्न शून्य


एक सन्नाटा पसरा है 

कई मीलों तक कई वर्षों तक ,
या यूं कहें कई प्रकाश वर्षों तक ,
कोई दिशा नज़र नहीं आती , 
सब और एक सा अँधेरा है , 
और एक सी ख़ामोशी ,
बीच बीच में कई सूरज चमकते तो हैं
पर जुगनुओं से भी मद्धम इस अनंनता में ,
प्रकाश बेअसर सा है यहाँ ,
अनंत अंधेरे के बीच 
वो कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता ॥

इसे जाना तो जा रहा है ,
पर यहाँ कोई नज़र नहीं आता,
न तो मैं न ही कोई और ॥

रोना यहाँ किसी पागलपन की तरह होगा ,
रोने का कोई मतलब नहीं ,
और हंसने की कोई गुंजाइश नहीं ,
सब एकरस सा है ,
तो ध्यान का भी कोई मतलब नहीं ,
यहाँ कोई सृष्टि नहीं है ,
कोई भी भाव नहीं उठता ॥

कोई भी देह उपस्थित नहीं ,
जो अपने स्पर्श से बता सके
कि यहाँ हवा भी बहती है या नहीं ,
न ही कोई कर्ण पटल
जो कम्पित हो सकें किसी के रूदन पर ॥

इस अनंत में शून्य इस तरह व्याप्त है
की भेद करना असंभव है ,
कि ये शून्य में है
या शून्य इसमें पसरा हुआ है ॥

इस अनंत शून्य में ,
एक नगण्य सा स्वप्न है ,
जीवन ॥

अ-से

अँधेरे की गति


अँधेरे की गति प्रकाश से भी तेज होती है , 

उसे कहीं भी जाने में समय नहीं लगता , 
मन किसी भी फाइटर प्लेन से ज्यादा तेज उड़ता है ॥ 

जिज्ञासाएं अब उनकी बीमारी बन चुकी है ,
वो खोजते है प्रतिबंधित चीजों में सच 
और चलाते हैं अंधेरों में तीर ॥ 

मिटटी के कणों में वो तलाश करते हैं जीवन ,
आत्म किसी घोस्ट की तरह डराता है उनको ,
वन और जंतु जीवन किया जा रहा है लुप्त ॥

सच की मूरत तराशने की उनकी जिद चरम पर है ,
पथरीले सचों के बीच वो भूल चुके हैं सच की सूरत ,
सच शब्दमय भी है स्वप्नमय भी और उससे परे भी ,
एक सच मन भी है बुद्धि भी , ह्रदय और अध्यात्म भी ॥

उन्हें हर प्रश्न का जवाब चाहिए ,
साथ ही नए नए प्रश्न भी गढ़े जाते हैं ,
प्रश्न की सार्थकता अब महत्वपूर्ण नहीं ,
महत्त्व है जवाबों के कागजीकरण का ॥

संतुष्टि पर मूर्खता सन्यास पर आलस का ठप्पा लगा चुके हैं वो
प्रत्यक्ष को प्रमाणित करने की उनकी सनक अभी जारी है ॥

अ-से

जीवन के प्रतिबिम्ब


अंतर सारे सतही ही रह जाते हैं , ऊपर उठते ही इनका कोई मायना नहीं रहता ,

पृथ्वी स्वीकार करती है अपनी ही दासता , आकाश को खुदका भी इल्म नहीं रहता ॥ 

ज्ञान की दिशा में जो गूढ़ है , तत्व की दिशा में जो महत् है , 
ध्यान की दिशा में जो सूक्ष्म है , दृश्य की दिशा में जो आकाश है , 
गंध की दिशा में वो पवित्रता और ध्वनि में नाद ॥ 

पृथ्वी पर सारी लड़ाई पृथ्वी की ही है , 
यहाँ जिस वक़्त युद्ध के गीत गाये जाते हैं ,
उसी वक़्त कोई गांधी अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं ॥

न राम रहे न कृष्ण रहे न यीशु रहे न बुद्ध , बहुत से और भी नहीं रहे ,
कई और हुए जो नाम के लिए लड़ते रहे उनका इतिहास में अब कहीं जिक्र भी नहीं ,
कोई इंच भर जमीन भी न बचा सका ॥

अहिंसा ही परम धर्म है , किसी को क़त्ल करने से पहले खुद क़त्ल होना होता है ,
वो मर चुके हैं जिन्हें ईश्वर की चीखें नहीं सुनाई देती ॥

पृथ्वी अनोखी है और शापित भी ,
यहाँ तीन समुद्रों के जल मिलकर भावनाओं के अनंत क्रमचय बनाते हैं ॥

यहाँ बिखरे पड़े हैं किसी विशाल आईने के खरबों टुकड़े ,
जिनमें अन्योन्य कोणों से दिखाई देते हैं , जीवन के प्रतिबिम्ब ॥

पर कोई प्रतिबिम्ब पूर्ण वास्तविक नहीं होता ,
सबसे प्रायिक बिम्ब ही सत्य के सबसे समीप है ,
मात्र अद्वैत की ही प्रायिकता एक है ॥

अ-से

कहानियाँ


लपक कर अंगूरों को पा लेने के ,

अनेकों असफल प्रयासों के बाद ,
चार मूँह की लोमड़ी समझ चुकी थी ,
जीवन का सांतत्य , 
कर्म का पथ और न तोड़कर ,
वो चली गयी 
पांचवें मुंह के रास्ते ॥ 

जान पर बन आयी जब ,
आर्त खरगोश ने दिखाया अहंकार को आइना ,
शेर को वर्चस्व की लड़ाई में मौत का कुँवा नसीब हुआ ,
अब जंगल किसी का न बचा ,
वो अब सबका था ॥

आश्वस्तता की नींद में ,
पिछड़ गया खरगोश ,
सतत प्रयासों की गति सूक्ष्म है ,
गूढ़ गति कछुआ हमेशा ही आगे था ,
तीव्र प्रयासों को चाहिए नियत वैराग ॥

अ-से

मुस्कराहट की शक्ल


और जब दो मिनट तक मेरी नज़रें नहीं हटी 

तो उस चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी 
जैसे रंगों की कुछ बूंदे पानी में फ़ैल गयी हों 
जिन्होंने दे दिया हो ख़ुशी को आकार 
उसे मालूम हो चूका था 
कोई उसके " औरा-मण्डल " में है 
उसकी कनखियाँ छत के कोनों की तरफ घूम गयी 
और उसके दायें हाथ की उंगलियाँ घूमने लगी !
अब उस मुस्कराहट की शक्ल थोड़ी सी बदल चुकी थी !!

अ-से 

उबासी


वो सडक पर चलता तो पत्थरों को लतियाता 

छत पर आसमान को ताकता रहता 
किताब में मुंह रखकर सो जाता
चबाते चबाते थक जाता तो खाना छोड़ देता 
और एक उबासी लेकर लिख ....

अ-से 

Apr 11, 2014

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !


रोटी को पाँव से दबाए

तलाशी जा रही है हड्डी 
फ़ोन होल्ड पर रख कर 
झांकी जा रही है खिड़की 
कॉलेज अलग बात है फेसबुक अलग 
घर की छत और एक अलग दुनिया 

ऐसा करो तुम सारे लड़ो 
और जीतने वाला नवाजा जायेगा
द रियल मेन की उपाधी से 
जो दे दिया जाएगा पुरूस्कार में
और फिर उस बलवान को पत्थर दिल बता
तलाश लिया जाएगा
कहीं कोई हरक्युलिस
युद्ध पर गए हरक्युलिस के
समय ना देने के लिए
बेरोजगार किसी दिल से बतियाया जाएगा
फिर उस निराश कंधे की बातों पर
बनाया जाएगा उसके सेंस ऑफ़ ह्यूमर का व्यंग्य
बायें से भायेगा कोई जो हँसा सके
और शिकायत की जायेगी
उसके ना सुनने की कमजोरी की
आखिर में कोई आएगा
जो उसे पूरी तरह से नकार कर
सब्ज बाग़ दिखलायेगा
और रसपान कर
भँवरे सा उड़ जाएगा
अब उस बेवफ़ा को कोसा जाएगा जिन्दगी भर

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !!

सजा-ए-प्रेम


सुनवाई का वक़्त नहीं था 

उसे सुना दी गयी 
सजा-ए-प्रेम 

एक सन्नाटा छा गया 
पानी से धुंध उठने लगी 
हवा भी डर कर ठंडी पड़ गयी 
सारी आग सिमट कर कहीं अन्दर जम गयी 
सारे तारों ने अँधेरो में डूब कर आत्महत्या कर ली 
इतना अँधेरा की उल्लुओं ने भी आँखें बंद कर ली 
सियारों ने घबरा कर रोना छोड़ दिया
चमगादड़ जमीन पर आ गिरे
शिव भी रोक ना पाए गरल
एक कड़वा घूँट निगल ही गए

बस अब चाँद के कोरों से
टपक रही थी रोशनी
टप टप टप

और तो और वो चूहे
जो नहीं जानते थे हमारी दुनिया
वो भी रोये जा रहे थे !!

वो लौट कर आती और देखती आइना


हर बार 

वो लौट कर आती 
देखती आइना 
और बिलख पड़ती 

जाते समय भी 
वो देखती थी आइना
देर तक बारीकी से
हर बार

वो खूबसूरत निगाहें
खूबसूरत नज़र भी
चुनती रही तिनक तिनका
दुनिया की खूबसूरती
और गढ़ती रही खुदको

वो मंझी हुयी सी कलाकार
झोंकती खुदको आईने में
और फिर कुछ याद कर हो जाती हताश

एक दिन जाने से पहले
उसने तोड़ दिया आइना
और खिलखिला उठी
बिखरे कांच के टुकड़ों की चमक में

उसे नहीं जताना था अब
कुछ भी किसी को
आज वो जा रही थी
मुक्त हिरणी सी
गाते हुए
उत्सव मनाते हुए
हंसती खिलखिलाती
झरती बहती लहलहाती

उसे नहीं होना था शामिल
किसी बेमनी दौड़ में

Apr 10, 2014

जब जाना की वो नहीं जानता था


वो नहीं जानता था 

क्या होता है किसी से प्रेम करना 
बस जानता था 
क्या होता है किसी की चाहत रखना 
टूटा कुछ 
जब जाना की वो नहीं जानता था 

वो नहीं जानता था 
क्या होता है दिल टूटना 
बस जानता था 
क्या होता है कुछ छूटना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

वो नहीं जानता था
क्या चाहती थी वो उससे
बस जानता था
क्या होता है दे दिया जाना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

बहुत टूट चूका है वो शख्स
उससे जुड़ने की कोशिश में
बहुत जख्मी है अहम् उसका
और अफ़सोस है एक
कि बात के मायने बात के ख़त्म हो जाने पर निकलते हैं  !!

Pathless

हाँ वो कार चमकती नहीं



हाँ तुम कह सकते हो वो कार चमकती नहीं 

उसके शीशे धुंधले हैं और उनके पार का शख्स नज़र नहीं आता ठीक से 
और इस कार का चालक एक गरीब इंसान है 

वो गरीब इंसान सच में बहुत गरीब इंसान है 
जो कभी नहीं झुठला सका ये सच 
की रास्ते पर उतरने से पहले ही 
वो गुजर चुकी थी एक दुर्घटना से 
और उसके खरोंच अब तक हैं उसकी बॉडी पर 
उसके इंजन में बैठ चुकी हैं कुछ खराबियाँ जो पकड़ में नहीं आती 
और उसे चलाने वाले के मन में एक लम्बे वक़्त तक बैठी रही दहशत
वो दहशत जिसने उसे बना दिया एक संकोची चालक
और हर बार जब वो गुजरता है किसी और वाहन के नजदीक से
जो उसका सच हावी हो जाता है उस पर

वो सच जो अब सच नहीं है
जबकि अतीत को मर जाना था जो अब वहां नहीं है
पर उसकी धडकनों ने समय समय पर जिलाया है उसे
और वो अतीत कभी अतीत हो ही नहीं पाया
वो आंत्र कृमि आँतों पर चिपका हुआ खाता रहा धडकनें
और अब जब कभी वो चाहता है चमकाना अपनी कार
तो नहीं चमका पाता

वो गरीब चालक जो अपने अतीत के मोह में फंसाहुआ
अपने वर्तमान से सौतेला व्यवहार करता रहा
और अब उसकी संताने बहुत गरीब है
जिनकी आंतड़ियाँ जन्मजात सूखी हुयी हैं
और अब उसके लिए बहुत मुश्किल है उस कार के शीशे चमकाना !!

अ-से

खिड़कियाँ निहारती है पंखे को



खिड़कियाँ निहारती है पंखे को
फिर एक लम्बी साँस छोड़
झुका लेती है आँखें !
बल्ब चमकते रहते हैं बेसबब 
रोशनी तो बिखरती है पर खुशियाँ नहीं !

मकड़ियां थक कर सो चुकी हैं अपने जालों में
कई जगह से टूट चुके हैं तार उनके !
किताबें अवसाद में लेटी हुयी हैं
धूल भरी चादर औढ़ कर
उनमें कहानियाँ तो हैं पर आवाज़ नहीं है !
अ से

आओ ! भूल जाते हैं सब कुछ


आओ !

भूल जाते हैं सब कुछ 
और हँसते हैं साथ बैठकर 
अपने साथ गुजरी हुयी दुर्घटनाओं पर 
की अगर आज तुम खुश हो किसी वजह से या बेवजह 
तो तुम देखना चाहोगे कल उसे एक ताजा तरीन सुबह में 

आओ !
बुनते हैं नया कुछ 
और बनाते हैं एक खूबसूरत कहानी 
अतीत की अनुभूतियों के खजाने में से चुन चुन कर
की अगर आज तुम्हारे पास हैं मसाले सभी खटास और मिठास के
तो तुम भर देना चाहोगे कल उसका अपने हाथों के बेहतरीन स्वाद से

आओ !
चलते हैं ना किसी सैर पर
और चलते हैं दूर तक मैदानों में हाथ पकड़े
खुले हुए आसमानों में हवाओं के मेहमान बनकर
की अगर आज वक़्त है तुम्हारे पास जो जाने कल होगा या नहीं
तो तुम बिता देना चाहोगे उसे उसके साथ जो रखता है मायने जिन्दगी से भी ज्यादा

आओ !
क्या सोचना है
कौनसा वक़्त होता है ऐसा
जब डर नहीं होते ना होती हो उलझने
और तुम बैठे रहो इंतज़ार में जिसके !!

 अ से 

घर के अन्दर घर


एक घर 

अन्दर एक घर 
उस के अन्दर एक घर 
और वो स्थायी निवासी वहाँ की 

एक घर स्वाद और तृप्ति का
एक घर भाव और अभिव्यक्ति का 
एक घर अनंत और स्थिरता का 

वो निवासी उस घर की 
घर के अन्दर घर की
हमेशा वहाँ उपस्थित
स्वागत के लिए तैयार
करती है इन्तेजार

बाहर निकलती है जब
तो किसी का हाथ पकडे
और चलती है साथ
चाँद तक
चाँद के पार तक
समय के पार तक जाना चाहती है

वो जो चाहती है तुम्हे
भर देना
अपने स्वाद से
अपनी सेवा से
अपने प्रेम से

वो जो चाहती है एक घर
घर के अन्दर एक घर
जहाँ वो जानती है तुम रहना चाहते हो
वो देखना चाहती है तुम्हे
वहाँ भीतर तक

वो जो नहीं रह सकती दूर
ज्यादा देर तक घर से
घर के अन्दर घर से

वो जो बांधे रखना नहीं चाहती तुम्हे
पर एक तनी हुयी
रेशमी रोशनी की डोर से
नापती रहती है तुम्हारी दूरी
और जैसे ही वो डोर
खिंचाव देना बंद कर देती है
उँगलियों पर
हलकी पड़ जाती है
वो समझ जाती है
की अब जो रहता था यहाँ
वो अब मेहमान हो चुका है
वो आयेगा भी लौट कर
तो फिर से चले जाने के लिए !!

जमीन के भीतर भी एक है आकाश


बाहर धूप चमक रही है परतों पर 

भीतर मिट्टी नम है दूब लगी हुयी 

एक पौधा है हमेशा हरी कोंपलों वाला 
जो पनपता है बस अन्दर की और 

एक फल है जिसके रेशे और खोल के भीतर 
ताजगी है जल है और मिठास भरी हुयी 

जमीन के भीतर भी एक है आकाश
जहाँ हवा है पानी है और रोशनी भी

और कुछ लोग हैं जो बंद करके दरवाजे
बैठे रहते हैं खिडकियों के पास आँखें मूंदे !!

अ-से

क ने कहा ख ने सुना ...


क ने कहा खामोशी 

ख ने कान लगा दिए 
और वो शोर हो गयी ! 

क ने कहा प्रेम 
ख ने तौबा समझा 
और वो चोरी हो गयी !

क ने कहा आस ना रखना 
ख अवसाद में आ गया 
आशावाद लिखने लगा !

क ने कहा संन्यास
ख आलसी हो गया
संन्यास का मायना बेवकूफी !

क अब कहता ही नहीं कुछ
ख अब भी अर्थ गढ़ता है
कभी डर कभी अकड़ और कभी अक्षमता !

ख का क्या है वो शून्य की भी व्याख्या कर सकता है
और अच्छाई को भी कमजोरी समझ सकता है !!

छोड़ कर ...


जो हँसते थे बात बात पर 

उन्हें हँसता छोड़ आया 
जो रोते थे बात बात पर 
उन्हें रोता छोड़ आया 

सुनाते थे वो अपनी कहानी 
और खो जाते थे
बाहर नहीं आते थे कभी
सो जाते थे

भरे हुए थे सभी
यूँ अपने ही सवालों से
सुनते भी थे मुझे
तो अपने ही हवालों से

छोड़ने निकला सूखे अफ़सोस
और छोड़ आया जहां
बाकी रह गए कुछ मासूम
बिखरे हुए यहाँ वहाँ !!

अ से