अनुभूतता रहा मैं जीवन और गढ़ता रहा आकार अपना ...
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कभी चुनौती देते हवा और पानी के बहाव से जीवट मिलता है ,
तो कभी उखड जाने के डर से मैं अपनी जडें गहरी जमा लेता हूँ ....
तो कभी उखड जाने के डर से मैं अपनी जडें गहरी जमा लेता हूँ ....
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उपस्थिति दर्शक है ,
अनुभूति ज्ञान ,
अभिव्यक्ति पूरा संसार ... !!
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मेरी जमीं वहीँ जहाँ मैं ठहर पाऊं ,
भाव किसी जलधार से निरंतर बहते हों ,
अनल पावक स्वप्न हों आँखों में सजीव ,
आजादी की हवा बहती हो साँसों में ,
आकाश भी साफ़ सुनाई दे इतना सब्र मिले !!
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कभी रात से प्रभात की ओर ,
कभी धूप से छाँव की ओर ,
प्यास और उजास के चित्र बनाता सा मन ,
रुके हुए पटल पर दौड़ लगाता सा मन !!
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हलचल हवा पानी में , सोच मन मानस में ,
दौड़ती मशीने , संवेदन इंसान ,
पत्थर औ दिल , जिस्म औ जान ,
सब ,
एक ही कर देखता ,
जो अचल है वो अचल है !!
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श्रुति स्मृति और ज्ञान ,
वस्तु वास्तु जहान ,
सारी जान ओ शान ,
सबकी जमीन एक होश है ,
पर इतना सुकूं क्या अच्छा है ,
की सब भूलकर वो मद-होश है !!----------------------------------------------------------------------
अ से
2 comments:
bahut badhiya
बहुत सुन्दर भावों से रचाई है ये रचना....बधाई
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