Aug 19, 2014

कवितायें खो गयी हैं कहीं



मोमबत्तियां जलें 

दीयों में घी डलें 
या फिर मशालें उठें 
तब तो महफिलें रौशन हों 
अब ये बल्ब क्या चीज है 

आधुनिकता में सारी कवितायें खो गयी हैं कहीं 
बैलगाड़ी खोकर कार हो गयी है 
कला खोकर व्यापार हो गयी है 
मूर्तियों के प्रमाण नहीं रहे 
चिट्ठियों में प्राण नहीं रहे
लहज़ा और ज़बान जपानी हो गए हैं
मुँह में पान हैं अब भी पर वो बीती कहानी हो गए हैं
कच्ची डगर कुंवे पतझर
आम बागान नदी मैदान
कवितायें काट दी गयी हैं कुछ , कुछ पाट दी गयी हैं

कार्बन की जगह ' सिली '- कोन ले गयी है
इस्पात की मिलों में तेल जलाने के लिए
इंसान के दिलों में आग लगा दी गयी है
वक़्त से वक़्त के बीच के वक़्त का भी हिसाब किया जाता है
चुटकियाँ और क्षणिकायें कागजों की पनाह ले चुकी हैं

कवितायें चाहती हैं
12 घंटे काम हो 12 घंटे ज़माना आम हो
आवाज़ें कैद ना की जा सकें जो गुज़र गया उसका कुछ देर शोक भी मना सकें
किताबों से कवितायें भँवरे तितलियों सी निकलकर
पेड़ों की शाखों पर कोयल गौरैया हो जाएँ
बिजली के चले जाने पर बैचैनी ना हो
कि पेड़ झलते रहे हजारों पंखे यूँ ही धीरे धीरे !!

अ से 

अभिव्यक्ति



वास्तविकता ...
कल्पना का एक हिस्सा
जिसे मिला फायदा उपस्थिति का

कल्पना ...
प्राणों की सबसे महीन कला
जिसे दिशा देना है एक अद्भुत कौशल

कला ...
मुक्त होने से पहले तक किया मुक्ति का प्रयास 
उसके बाद समय सागर में गोते लगाना

मुक्ति ...
स्वयं की सही पहचान
शुरुआत को फिर से गढ़ने का विज्ञान

अ से

Aug 17, 2014

हदें


वो डरता था उसकी हद में अपने जाने से
वो डरती थी अपनी हद में उसके आने से
और फिर ये डर जिज्ञासा बनता चला गया

वो अनुमान लगाता उसकी हदों का और फर्लांगता दीवारें
वो अनुमान लगाती अपनी हदों का और खोले रखती खिड़कियाँ
और ये अनुमान चाहत बनता चला गया

वो चाहने लगा उसको ले आये हदों के संग
वो चाहने लगी उसकी बदल जाए हदों का ढंग
और ये हदें टूटने लगी सब बेहद हो गया

सब्र की दीवारें कमज़ोर हो गयी 
प्यार के सैलाब में बहने गया सब
और फिर घुलते मिलते खारापन बढ़ने लगा

बेरोकटोक आवाजाही बैचैनी का सबब थी
और फिर वो तय करने लगे अपनी हदें
और सीमित करने लगे खुद को हदों में

अब वो डरती है उसकी हद में अपने जाने से
अब वो डरता है अपनी हद में उसके आने से

अ-से 

प्रपंच



आकाश हर वक़्त सुन रहा है ख़ामोशी से 

कितनी आवाजें हैं कहीं और कहीं कितना खालीपन 
बहती हुयी हवायें छू रही हैं एहसासों को 
कितने तूफ़ान उठते हैं फिर भी कितनी शांति है 
उठती हुई ज्वालायें देख रहीं हैं दृश्य अपनी रौशनी में 
कहाँ कैसा रंग है कहाँ कैसा रूप और कहाँ कितनी आंच 
लहराती हुयी नदी बुझा रही है थकान अपनी शीतलता से 
किसमें कैसा रस है किसमें कैसी प्यास और कितनी कितनी तृप्ति 
और ठहरी हुयी जमीन झुला रही है हमें अपने पालने में 
किसका क्या गुनाह किसको क्या क्षमा !!

अ से 

मैं बता सकता हूँ तुम्हें


मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है

अपनी अधीरता अपनी चाहत अपने अंदेशे जबकि तुम यहाँ नहीं हो 
अपनी भावनाओं की हर उथल पुथल को दिखा सकता हूँ तुम्हे प्रेम के लबादे में 

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
भीतर गरजते बादलों को गीतों में ढालने में बिगड़े सुर तालों में 
शब्दों के दास्तानों में अपनी खामोशी को पकड़ने के असफल प्रयासों में 
इन्तेज़ार की उस जमीन में जहाँ समय भी रुका हुआ रहता है रेगिस्तान की तरह

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
क्योंकि शायद तुमने भी वही महसूस किया है
या शायद नहीं और शायद मैं कभी नहीं जान पाऊंगा
की तुम मेरी बात समझी या नहीं
की तुम क्या महसूस करती हो
जबकि मैं हमेशा ये जानना चाहूँगा और तुम भी बताओगी एक से ज्यादा बार
और हम दोनों हमेशा इस सरल सी बात में उलझे रहेंगे
जबकि शायद तुम बता सकती थी एक बार और की तुम क्या महसूस करती हो

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर शायद मैं नहीं बता सकता
कि बातों से जज़्बात तो जताए जा सकते हैं पर उनकी गहराई को नहीं
मुझे डर है कि मेरी बातों को तुम ज्यादा संजीदगी से ले लोगी या हँस कर उड़ा दोगी

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर और भी कई बातें हैं करने के लिए
और जबकि किसी गाने पर या किसी फिल्म पर
या किसी फिलोसफी पर अच्छे से बात की जा सकती है
जबकि बिना कोई बात किये भी घंटों चैन से बैठा जा सकता है
तो फिर इन मुश्किल बातों में उलझने का क्या मायना
कि हर बार कहने पूछने के बाद भी मैं हमेशा जानना चाहूँगा
और तुम भी जब देखोगी अतीत में नज़रें टिका कर तुम मेरी बातों की सच्चाई को परखोगी
कभी गुस्से से कभी आँसुओं से और कभी किसी और के सन्दर्भ से कसौटी लेकर
कि हर बार शुरू से अंत तक की कहानी को नज़रों में समेटा जाएगा और तलाशे जायेंगे उसके भाव

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर ये तुम खुद भी समझ सकती हो की मुझे क्या महसूस होता है
और जबकि आखिर में तुम्हे खुद ही समझना है और खुद ही खुद को विश्वास में लेना है
तो मेरा कुछ भी कहना मुनासिब नहीं
और जबकि मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
मैं नहीं बता पाऊंगा !!

अ से

दृश्य अनल



दृश्य अग्नि की आंच में जलते हुए फूल हो रहे हैं महक 

मद्धम मद्धम जलता जल हवा में घोल रहा है शीतलता 
दृश्य जिसका प्रकाश खिल रहा है आँखों के हीरक में
प्रकृति का रास संचित होकर हो रहा है काव्य 

फूल जो अधर ओष्ठ हैं पौधों के गा रहे हैं प्रकृति गीत
भंवरे उन्हें सुन कर दूर से ही गुनगुनाते आ रहे हैं
तितलियाँ फुर्सत में बैठी रंग रहीं हैं अपने पंख
मधु मख चुरा ले जा रही हैं मीठी मीठी बातें उनकी
इकठ्ठा कर के प्रेम रस वो बना लेती हैं शहद


अपने ही गीतों को सुनने दौड़ता है आसमान
अपनी ही छुअन से जलने लगती है हवा
स्वयं को ही देखकर ठंडी पड़ जाती है आग
और स्वयं को ही रसकर महक उठता है जल

ह्रदय में संचार रहे हैं उड़ते प्रेम पराग
मन को तरंग रहा है सरगमी संसार
हवाओं में बिखर रहे हैं लफ्ज़ खामोशी के
और आकाश में गूंज रहा है धनकीला प्रकाश

अ-से

वो अपनी भूख के लिए ..



निश्चिंतता से आँखें बंद कर देख लेते थे सपने

तब पलक झपकते ही ताड़ लेते थे हम हकीक़त 

निश्चिन्त होकर सुनते थे हर बात हम 
तब इस कदर झूठा नहीं था आकाश 
नहीं थी जानकारियां इतनी संदेहास्पद
हवा में जहर और प्यास में गन्दगी नहीं थी
साँसे थी सुकून था और मौसम में एक ठंडक थी भरोसे की
और करीब से गुज़रते समय के क़दमों की एक स्पष्ट आवाज़

अब समय दौड़ रहा है दिमाग में
और दिमाग सुन्न हो चुका है दिल में
अब अफवाहें साल भर गर्मी बनाये रखती हैं
नथुने सक्रिय रहते हैं इष्ट अनिष्ट गंधों के प्रति
कानों के छेद छोटे हो गए हैं और जबान दोहरी हो चुकी है
अब भावनाओं से सडांध आती है
सीलन भरे हुए रिश्ते जगह जगह से रिसने लगे हैं
और सच्चे प्रेम गीत अब दिल को भेदने लगे हैं
बीता हुआ समय मितली सा एहसास कराता है ज़हन में

वो अपने अंधेपन में बिना रुके करते हैं वार
देख सकने वाले तलाशते रह जाते हैं सर छुपाने की जगह
तलवार तमंचे और तूफ़ान में तो फिर भी ईश्वर का वास होता है
पर फेंके गए पत्थरों का कोई दिल ईमान नहीं होता
वो अपनी आत्मा के कातिल चलन के बाशिंदे
अपनी वासनाओं के गुलाम अपनी इच्छाओं के प्रेत
रूहों से खींच लेते हैं सुकून आजादी और प्रेम
और भर देते हैं अविश्वास मजबूरी और अवसाद
और सब कुछ लूट लेने के बाद छिडक जाते हैं नमक जमीनों पर
मार डालते हैं बच्चों को और पालतू जानवरों का महाभोज कर लेते हैं

वो अपनी भूख के लिए
उजाड़ते आये हैं दिल दुनिया और दास्तान
और सदियों तक के लिए कर देते हैं उसे बंज़र !!

अ से 

हमें भ्रम पसंद हैं ..


हमें भ्रम पसंद हैं जैसे हमें पसंद हैं नशे में रहना 

पलायन हमेशा ही एक आसान चुनाव है 
छूकर जाती हुयी हवा पानी की लहरें दोलन करती चीजें 
पंखे की आवाज़ घडी की टिक टिक 
तेज संगीत चमकती रौशनी और थिरकते कदम 
दुनिया हमेशा मदमस्त लहराती रहे 
और हम धुंधलाई आँखों से बेफिक्र उसे देखते रहें 

हमें परेशान करता है होश का अभाव जैसे हैंग ओवर 
बैचैनी थकान टूटा हुआ शरीर 
वक़्त की कमी अनिश्चितताओं के झूले
भविष्य के ख्वाब वर्तमान की क्रियाशीलता
सामने ही सामने दुनिया का आगे निकल जाना
और हम वक़्त को थाम ना सकें

हमें शिकायत है जिंदगी के दोहरेपन से
और तयशुदगी से हम खौफ़ खाते हैं
सभी निश्चित बातों को नकारते हुए आगे बढ़ जाना चाहते हैं
एक हज़ार प्रेम कथाएँ पढ़कर भी हमें उम्मीद है हमारी कहानी के शब्द अलग हैं
हमें लगता है सितारों का भाग्य अलग अक्षरों से लिखा गया है
और हम कुछ लोगों से चमत्कार की उम्मीद लिए बैठे रहते हैं
हमें लगता है अखबार की ख़बरों में कोई और लोग हैं
और मृत्यु और दुर्घटनायें बात करने के मुद्दे नहीं

मुक्त रहना अच्छी चाहत है पर हम छोड़ना कुछ नहीं चाहते
उलझाए रखना चाहते हैं पर जुड़े रहना नहीं
हम विकल्पों में उलझा हुआ महसूस करते हैं
पर निश्चितता हमें डरावनी लगती है !

अ से 

आखिर हम बचाए रखते हैं कुछ ..



हर पल को कई गुना जी चूका है वो अतीत में 

सदी पुराना है इस शख्स का इतिहास 
सब कुछ एक पंक्ति पर याद रखने की क्षमता 
और सब कुछ जान पाने की एक गहरी चाहत 
अब ज्यादा कुछ नज़र नहीं आता नया पर तलाश हमेशा ही नयी रहती है !

आँखों के सामने घूमता है सबकुछ जाना हुआ 
और उनके क्रमचयों में से फिर निकल आता है अगला पल 
बहुत बूढ़ा हो चूका है ये शख्स 
पर जीवन की प्यास कभी कम नहीं होती इसकी !

जाने कितनी दुर्घटनाएं झेल चुका है अस्तित्व
घायल मन और खड़खड़ाते हुए पिंजर के बावजूद
ये जंगली विडाल नहीं अफोर्ड कर सकता चैन से बैठ जाना
इच्छा मृत्यु पाया हुआ भीष्म नहीं चुन सकता अभी अपने लिए मृत्यु
बावजूद अपनी खायी हुयी चोटों के दर्द के तीखी नमकीन बातों की चुभन के
संघर्ष करना है आखिरी साँस तक
इंतेज़ार करना है आखिरी आस तक
जलते रहना है जब तक जीवन जल का आखिरी कतरा रौशनी दे सके !

जिसके लिए कभी शर्म और संकोच ही बुद्धिमानी होती थी
इनको रेशा रेशा होते हुए उसे देखना है सब निगल जाना है
अस्तित्व के आखिरी छोर तक काल का सामने से स्वागत करना है !

और अपनी सारी विषमताओं के बावजूद कुछ बचाए रखना है
दिल से दिल की , रौशनी से रौशनी की पहचान और पहचान की ख़ुशी
अटकती यादों खड़खड़ाती साँसों और सख्त हो चुके फेफड़ों के बावजूद एक हँसी
और कुछ अच्छे मस्त फ़कीरी फक्कड़ और ठहरे हुए लोगों का साथ !

हालांकि अब उतना ठहराव नहीं इस पल में
जितना बचपन की आजादी के पलों में था
पर कुछ ना कुछ ठहराव शेष रहता ही है
आखिर थोड़ी आज़ादी हम बचाए रखते हैं
आखिर थोड़ी आज़ादी हमें बचाए रखती है !!

अ से 

आज़ादी



उनके किसी दादाजी ने अपने किसी दादाजी से सुना था कभी ये शब्द ,
वो कब से कैद थे उन्हें नहीं पता ,
पर हर पंछी के लिए एक अलग स्वप्न की सौगात था ,
पीढ़ी दर पीढ़ी ढ़ोया गया ईश्वर सरीखा ये शब्द !

कुछ पंछी चाहते थे एक अलग पिंजरा अपने लिए , 
कुछ पंछी चाहते थे उसका दरवाजा खुला रहे ,
कुछ पिंजरे की बजाय शाही कन्धों पर बैठना चाहते थे ,
और अधिकतर सिर्फ चुपचाप उनमें से किसी के पीछे चलना !

एक रात वो स्थान पंछियों के शोर से भर गया ,
चहचहाट की जगह चीखें थी ,
पिंजरे की सींखचे लहुलुहान थे ,
कुछ पंछी जमीन पर पड़े फड़फड़ा रहे थे ,
ये वही रात थी जब दरवाज़ा भी खुला हुआ था और पिंजरा भी टूटा हुआ ,
पर कोई कहीं नहीं गया ,
आखिर जिन पंखों ने परवाज़ ना देखी हो उनके लिए हवा के बदलाव के क्या मायने !

विस्मित चकित और काफी प्रयासों के बाद अनायास हुए बदलाव के बीच
वो तय नहीं कर पा रहे थे की ये स्वप्न है या हकीक़त ,
पर आज ना आसमान की किसी को फ़िक्र थी ना उड़ान की ,
बाहर चौगान और चबूतरे पर और रंग बिरंगी क्यारियों में था कुछ दाना पानी ,
और वो ज्यादा से ज्यादा अपनी छोटी सी चोंच में ठूसने की जद में सीना फुलाए झगड़ रहे थे !
कुछ बूढ़े पंछी इस अप्रत्याशित सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे
और ममतामयी आँखों से अपने बच्चों को ख़ुशी से लड़ते झगड़ते देख अपनी क्रान्ति के सुखद परिणाम के गीत गा रहे थे !

अ से

कुछ वक़्त का साथ है , कुछ वक़्त का साथ है



कुछ वक़्त का साथ है 

कुछ वक़्त का साथ है

अब तारों से भला कैसी शिकायत 
कहाँ लापता थे वो सुबह से बेखबर बनकर 
महीने में कहीं एक बार चाँद पूरा होता है 
और अब समय देखने की चाहत नहीँ ।

आओ ! उकेरते हैं यादें 
समय के आकाश पर
शब्दों के झिलमिलाते तारे
मिलाते है जमीँ की कोर को फलक के छोर से
अंजाने बनकर गढ़ते है
कोई चेहरा उफक पर
तलाशते हैँ कोई अनदेखा रंग
सफर को नज़रोँ से टटोल कर
और अब पलक झपकने की चाहत नहीँ ।

कुछ वक़्त साथ हैँ
कुछ वक़्त साथ है

नहीं याद इससे बाद क्या होगा
तुम क्या होगी समय का बहाव क्या होगा
पर आज जो भी होगा दर्ज
समय के इस दस्तावेज पर
उसे भविष्य बदल नहीं पायेगा
यहाँ अतीत में आकर
हमारे हाथोँ के अक्षर
भले ही नहीँ खीँच पायेँ
प्रारब्ध की कोई तय रेखा
पर चमकते रहेँगे ये लम्हे
जो ठहर जायेँगे आज
इन अहसासोँ की स्याही मेँ
पिघला हुआ स्वर्ण बनकर
और अब समय रोकने की चाहत नहीँ ।

अ से

वक्त खामोश है - 2



वक्त खामोश है
पर मन अब भी घूमता रहता है
इसके सँकरे गलियारोँ मेँ ,
तलाशता रहता है
कोई जाना पहचाना चेहरा
कोई सुकूनबख्श जगह ,
जहाँ यह ठहर सके
और भर सके फेफड़ोँ को आश्वस्तता से ।

इस प्रपञ्च को लगातार देखते सुनते
बोझिल हुआ ये मन
अलग कर लेना चाहता है स्वयं को ,
पर कुछ पलोँ की कोशिश भर मेँ
सूखने लगते हैँ प्राण ,
आँखे बंद करते ही उपस्थित हो जाती है प्यास
उसे फिर से देखने की ,
जैसे अगले ही मोड़ पर खड़ा हो
 अतीत ।

जिन खुली आँखो मेँ
पूरा संसार बैचेनी का सबब होता है
उन्ही अधखुली आँखो को
एक चेहरा शाश्वतता का सुकून देता है
और उसको देखने की चाह
अधीरता ।

मन
समय की गलियोँ मेँ भटक रहा है
वो दोराहे
काफी पीछे छूट चुके हैँ
और चाहतेँ
चलन के चौराहोँ पर सिमट चुकी हैँ
प्रेम
अब जग मथाई के कुहासे मेँ ठीक से नज़र नहीँ आता
पर 
आँखे बँद कर लेनाइस सब के बावजूद अब भी आसान नहीँ 
कि मन
फिर फिर दौड़ता है प्यास मेँ उसकी ।

अ से 

वक्त खामोश है -1



वक्त खामोश है
पर लहरोँ का शोर सुनाई देता है
और कभी कभी सुनाई देती है उसकी खामोशी ,
कभी कभी ही तो शांत होती है वो
या अक्सर जब वो उदास होती है ।

शांत रातोँ मेँ मन का पोत इसी तरह हिलोरेँ खाता है , 
जब कुछ गुज़र जाता है तो वो एक लहर बन जाता है
और हर एक लहर के साथ थोड़ा और ठहर जाते हैँ हम ।
 

वो भी रात के खाली आसमान सी
मेरी दुनिया मेँ ठहर चुकी है
और हर एक गुज़रते लफ्ज़ के साथ
और गहराती जाती है
और उस गहराई स

उठती रहती हैँ अनजान यादेँ ,
जिनमेँ से कुछ मैँ भूलता रहता हूँ
और कुछ ठहर चुकी हैँ ,
अगर कुछ और वक्त साथ होता
तो कुछ और लहरेँ उठती ,
कुछ और ठहर जाते वो और मैँ ।

घड़ियाँ घूम रही हैँ
पर अब उनमेँ इंतज़ार का आकर्षण नहीँ
वो किसी बूढ़ी हो चुकी सुन्दरी सी
बिना किसी उम्मीद टहल रही हैँ
और मैँ इन ठहरी हुयी आँखो से कुछ नहीँ देखता
सिवाय किसी चित्राये हुये स्वप्न के
जिसमेँ चलती हैँ कुछ लहरेँ बहती हवा की ।

जैसे जैसे ये रात जवान होती है
ये लहरेँ अपने शबाब पर होती हैँ
और बूढ़ी होती रात के साथ ही
ये भी किसी ख्वाब सी दम तोड़ने लगती हैँ ।
पर फिर से एक सुबह होती है
और फिर से शुरु होता है एक रात का इंतेज़ार ।

अ से 

ऐसी यादों से है खतरा ..



ऐसी यादों से है खतरा जो आकर ठहर जाएँ ,

करे दिल लाख कोशिश भी करके ना उबर पाये ।

उन वादों पर हैं रहते जो कहकर मुकरते हैं ,
भले फिर लाख फरियादें अधूरी ही रह जाये ।

कुछ सवालों के दरम्यां उलझाया गया हैं यूँ ,
जवाब ताउम्र जिनका शख्स तलाशते गुज़र जाए ।

ज़िन्दगी सिर्फ खयालों में आये हैं हम सुनते ,
भले फिर ज़िन्दगी हर पल हमें छूकर गुजर जाए ।

अ से 

कल रात एक चिड़िया ख़ामोश गुजर गयी !


आसान था लिखना चिड़ियाओं का चहचहाना
पर कल रात एक चिड़िया ख़ामोश गुजर गयी !

जबकि मैं शब्दों में इन्द्रधनुष
और खिले हुए रंगों के सपने उकेर रहा था
तब कहीं एक शख्स
पहाड़ी के कोने पर खड़ा
अपने अंतिम पलों में
अपना पूरा अतीत झाँक रहा था !

भाषा की उत्पत्ति
शायद झूठ के लिए ही हुयी थी
तभी तो लिखने की कला ने
कितनों को दृष्टि हीन कर दिया है !

जो कुछ मैंने पढ़ा है
उसने गहराई तक
मुझमें अँधेरा भर दिया है
इतना की
उसकी 
कोई थाह नहीं है ,
मेरा लिखना
मेरे मन के अँधेरे की चमक भर है !
मेरी आवाज़
जो हमेशा ही अनजाने भय से रंगी रहती है
झूठ के भारी पन और कड़वाहट मेँ
जो गले से खुल कर नहीं आती
वो सफ़ेद कागजों पर बुलंद हो जाती है ,
एक बिना आकाश की गूँज ,
जो लिखे हुए
जमे सधे अक्षरों में स्पष्ट नज़र आती है
वो मेरे मन की तरह
कितनी उलझी और अस्पष्ट है
ये वो कागज़ कभी नहीं बता सकते !

मेरा वो लिखावटी प्यार
जिसे मैंने सागर सतहों की वो गहराई दी है
जहाँ तक रोशनी भी नहीं पहुँच पायी
पर जहाँ से मैं मोती चुन लाया हूँ
धरातल पर आते ही
अपने अस्तित्व को बचाने की जुगत में
 स्याह हो जाता है
और जितनी यात्राएँ
मैं कलम की नोक पर कर आया हूँ
चार कदम चलते ही
मेरे घुटनों का दर्द बन जाती हैं !

शब्दों से क्रांतियों की ज्वाला भड़काना
हमेशा ही आसान रहा है
पर कल रात एक आदमी
क्रांतिकारियों की भीड़ में
कुचल कर मर गया

मेरे सच की तरह ही !!

कहाँ बसती हैं कवितायें ..


कहाँ बसती हैं कवितायें 

मानस में उभर आने से पहले 

कैसे शांत रहता है अव्यक्त 
कोई भी गीत गाने से पहले 

कितना संयम धरते हैं बादल 
धरा पर बरस जाने से पहले 

कहाँ रुके होते हैं आंसू 
आँखों से सरक जाने से पहले

प्रकृति शायद जानती है जरुरत समय की
कहाँ दुधाते हैं स्तन स्त्री के माँ होने के पहले

शायद जानती है वो हमारी जीने और मरने की इच्छा
वरना कहाँ होता है जहर साँप में दांत गड़ाने से पहले !!

अ से 

होश बिल्ली है ..



होश बिल्ली है

तेरे सधे हुये अंदाज़ मेँ 
सँकरे गलियारोँ मेँ डग भरती

आवाज़ गौरेया है
तेरे चहकते हुये मिज़ाज़ मेँ 
सुबह ओ शाम उमँगे भरती

जीवन हिरन है
तेरी खिली हुयी आँखो मेँ 
चंचलता का चेहरा लिये
ख्वाबोँ की कुँचाले भरता

प्रेम फाख्ता है
तेरे विश्वास भरे स्पर्श मेँ
एकांत की दुनिया बसाये
सुकून का सँदेश गढ़ता ।

अ से 

पर अब भी ...



मैँ बुझा हुआ हूँ 

पर दिल अब भी किसी दीये सा रौशन है 
कि रात के इस अँधेरे मेँ तेरे खयाल साफ नज़र आते हैँ 
कि अधजगी नीँद के ख्वावोँ मेँ तेरे चेहरे का नूर कम नहीँ होता
कि और कोई रौशनी ना होने पर भी मेरा जहां रौशन है तेरी यादोँ से ।

मैँ नीरस हो चुका हूँ
पर चाहतोँ से अब भी रस चूता है
कि इन खालीपन की बैठकोँ मेँ भी मन भरा हुआ रहता है
कि दिन का चेहरा पसीजता है और रात का आइना भीगा हुआ रहता है
कि अब भी तेरी बातोँ के ककहरे से कविताओँ का दरिया बहता है ।

क्या ये अजीब बात नहीं ..


चलो भूल जाते हैं 

तुम कौन हो मैं कौन हूँ 
वक़्त के दरमियां 

सामने देखो 
क्या तुम्हे नज़र आती है वो मेज़ लकड़ी की 
और उस पर रखे सामान 
उसकी दराजें 
उसके रंग 
अजीब बात है 
तुम्हे भी वही सब नज़र आता है जो मुझे नज़र आता है

पार्श्व में मधुर गीत सुनाई दे रहा है
बताओ तो उसकी गूँज क्या आकार ले रही है
क्या तुम्हे भी वही ध्वनि पुकार रही है
क्या ये अजीब बात नहीं

एक बार भूल कर देखो
अपनी पसंद नापसंद
चलो हम अपने अपने मन और चाहतों के परे देखते हैं
अपने अपने चुनावों के पीछे
क्या तुम्हे भी वही सब नज़र होता है जो मुझे होता है जो किसी और को होता

अजीब बात है
हम दोनों एक से हैं !!

अ से 

कल्पना करो ..


तुम आकाश हो और तुम्हे नहीं पता तुम कहाँ तक हो 

अब क्यूंकि तुम रीत चुके हो और अनन्त शान्ति के सिवा कुछ शेष नहीं 
तो कुछ जुगनू तुम में जलने बुझने लगे हैं 
और उन जुगनुओं का आकार सूर्य जितना है 
पर इतनी सी आंच से तुम्हे हवा तक नहीं लगती !
कल्पना करो की तुम आकाश की तरह बहुत छोटे बहुत बहुत छोटे हो गए हो 
इतने छोटे की सारी सृष्टि तुममें समा गयी है 
बिलकुल शून्य हो चुके हो तुम !!

कल्पना करो तुम मन हो 
और मन में यानी तुम में ये सारा आकाश है
और सिर्फ यही आकाश नहीं
ऐसे कई शून्य तुम में हैं
ऐसे अनंत शून्य तुम में हैं जिनमें हैं और भी कई संसार
पर फिर भी उसका कुल परिमाण शून्य है
और तुम रौशनी जितने हलके हो
बल्कि रोशनी से भी हलके
अँधेरे जितने !!

कल्पना करो की तुम बुद्धि हो ,
जिसमें कई मन हर पल बनते बिगड़ते रहते हैं ,
जिनमें हैं और भी कई आकाश और जिनमें हैं और भी कई संसार !!

कल्पना करो की तुम मात्र अहंकार हो
और लेते रहते हो हर पल कई संकल्प
जिनके विकल्पों के साथ तुममें जन्म लेती हैं कई सारी बुद्धियाँ
कल्पना करो की तुम्हारे एक संकल्प से एक पल में कितनी सृष्टि और प्रलय एक साथ होते हैं और यही नहीं उस असंख्य गणना का हर हिसाब किताब तुम्हारे पास है
सारे गुणन और भागों के फल के साथ
और तुम समय के हर क्षण के अदमवें हिस्से के पदमवें भाग में ये सब जान लेते हो !!

कल्पना करो की तुम सिर्फ बोध हो
वो बोध जिसमें अहंकार इतना सूक्ष्म है की उसे नगण्य माना जा सकता है
जिसमें अहंकार की वही औकात है जैसे अनन्त आकाश में एक तारे की !!

कल्पना करो की तुम वही बोध हो
जिसमें संकल्प लेने और उन्हें मिटाने की अद्भुत शक्ति है
और जिसमें शंखों शंख संकल्प के साथ ये और ऐसी कई सृष्टियाँ स्थिरता के साथ विद्यमान हैं !!

कल्पना करो की तुम्हारी हर कल्पना सत्य है
कल्पना करो की कल्पना करना भी एक कर्म है
कल्पना करो की कल्प स्वतः है और उसकी उत्पत्ति और अंत को कोई नहीं जानता !!

कल्पना करो और कल्पना में खो जाओ
की सब कुछ पाकर भी तुम मात्र कल्पना ही पाते हो
जो ना तो तुम्हारे होश में आने से पहले कहीं थी ना ही होश खोने के बाद कहीं होगी !!

अ से