Nov 28, 2014

पुरस्कार


उनके पास बहुत से हैं
सो वो दे देते हैं या बाँट देते हैं
पुरस्कार अहंकार है देने वाले का
सम्मान के वस्त्रों में
और अपने कोषागार में से 
वो बाँट देते हैं एक अंश अपने दंभ का ।
पाने वाले उत्सुक रहते हैं हमेशा
हर उस चीज के लिए जो बँट रही हो
क्या बँट रहा है से महत्वपूर्ण कितना मिल रहा है हो जाता है
सम्मान भी किसी वस्तु की तरह बँटता है
फिर फिर अपने को दे की तर्ज पर ।
पारितोषिक सामान्यतः साधन है किसी की जीविका का
पर पुरस्कार एक तिरस्कार है
किसी के काम की खूबसूरती के साथ अपना नाम जोड़ने का
और सम्मान का अपमान
एक बड़े मंच पर की गयी जादूगरी
जिसका भेद कैद होता है पर्दे के पीछे
बड़ी कुशलता से मारे गए पांछियों में ।
पुरस्कार दिया जा रहा है या लिया जा रहा है
क्या सचमुच ये किसी के काम का कोई सम्मान है
कि उसे घोड़ों के साथ रेस में दौड़ा दिया जाये
या तय कर दी जाये कीमत खूबसूरत काम की
या बड़ा दी जाये उसके नाम की ।
उनके पास बहुत से हैं
जब उन्हे देने होंगे तो वो किसी भी नाम से दे देंगे
जब उन्हे बांटने होंगे वो किसी भी काम पर दे देंगे
वो राजा है स्व्यंसिद्ध वो निर्णायक है महाभारत के
वो रचयिता है किसी की नियति के
और सच्चे पुरस्कार के हक़दार हैं
कि जुगाड़ बैठाने वालों की कुशलता देखते ही बनती है ।
अ से

Nov 27, 2014

" अर्द्ध नारीश्वर स्तोत्र -- उपमन्यु कृत -- हिंदी अनुवाद "


चाम्पेयगौरार्धशरीरकाये कर्पूरगौरार्धशरीरकाय
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजःपुंजविचर्चिताय
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
चलत्क्रणत्कंकणनूपुरायै पादब्जराजत्फणिनूपुराय
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
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चम्पाई गौर अर्द्धशरीर रूप , कर्पूरी गौर अर्द्धशरीर रुप
पुष्पसज्जितकेशधारी , जटाधारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
कस्तूरी कुमकुम आवृत रूप , चिताधूल पुंज आवृत रूप ,
प्रवृत्ति रूप , निवृत्ति रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
खनकते बजते कंगन नूपुर पहने , चरण कमल में सर्प नूपुर पहने ,
स्वर्ण बाजुबंद पहने , सर्प बाजुबंद पहने , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
विशाल नीले कमल नेत्र वाली , विकसित कमल रूप नेत्र वाले ,
सम दृष्टि वाली , विषम दृष्टि वाले , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
मंदार माल सज्जित केश , कपाल माल सुशोभित कंधे ,
दिव्य वस्त्र धारी व दिशा वस्त्र धारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
बरसाती बादल से श्याम केश , चमकती बिजली सी ताम्र जटाएँ ,
निर-अपेक्ष रूप , सर्व-अपेक्षा रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
प्रपंच रचना को उन्मुख कृतक , समस्त संहार के तांडव नृतक ,
जगत उत्पत्ति , जगत-एक पिता , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
चमकते रोशन रत्न कुंडल पहने , भयानक सर्परूप आभूषण पहने ,
शिव समन्विता व शक्ति समन्वित , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।

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जब तुमने वो गुलाब लिया था
सिर्फ मैं ही नहीं
अनुगृहित हुआ था वो गुलाब भी
जब तुमने उसे स्वीकार किया था
वो पौधा , अगर उसे पता चलता , 
खुद उस फूल सा खिल पड़ता , हर पत्ता पंखुड़ी हो जाता ,
वो बगीचा कुछ और स्वीकार नहीं करता फिर ,
सिर्फ गुलाब लगते वहां पर ।
मेरा कुछ देना प्रेम था मेरा ,
स्वीकार करना तुम्हारा प्रेम ,
दोनों वस्तुतः त्याग थे ,
लेना देना यहाँ गोण था ,
वो व्यवसाय माध्यम था ,
अभिव्यक्ति थी प्रेम की ।
त्याग प्रेम है ,
समर्पण प्रेम है ,
और प्रेम है स्वीकार्यता ,
कोई तुम्हे क्या दे सकता है
जबकि तुम्हे स्वीकार ना हो ,
जबकि तुम्हारा मन उसमें रमता ना हो ,
कोई क्या दे सकता है एक प्रेमी को
संसार से इतर जिसका मन ह्रदय की दो परछाइयों के बीच खोया रहता हो
और कोई क्या ले जा सकता है उसका जिसका किसी वस्तु में अपनत्व ना हो ।
हर व्यक्ति का प्रेम व्यवहार अनोखा है , उतना ही जितना वो व्यक्ति
जितने तरह के लोग हैं उतने ही प्रकार की उनकी प्रेम अभिव्यक्ति
पर जब तक उसमें सहजता नहीं है तुम्हें स्वीकार कर सकने की
किसी वस्तु से इतर तुम्हें एक समझ एक एहसास एक चाह मानने की
तब तक अपना सब कुछ दे सकने के बावजूद वो तुम्हे कुछ नहीं दे सकता
तब तक वो तुम्हारी आत्मा तक नहीं पहुँचता ।
खाने वाला , बनाने वाले जितना ही पूज्य था हर बार ,
जब भी आपसी सम्मान उन्हें जोड़ता था ,
खाने वाले की तुष्टि बनाने वाले का धन था ,
बनाने वाले का मन खाने वाले का धन
तुम्हारा गुलाब लेना
उसे स्वीकार करना था मुझे स्वीकार करना था
और अनुमति देना था अपनी आत्मा में मेरी उपस्थिति को ।
चाहत कोई खालीपन सी होती है ,
तब तक , जब तक कोई और उसे समझना नहीं चाहता ,
जब कल्पना के उस रिक्त चित्र को
कोई अपनी स्वीकार्यता देकर , उसमें अपने रंग भरता है ,
तो वो मुक्त आकाश में फ़ैल जाते हैं ,
भोर के वो पंछी जो अब तक रात की उदासी में सोये थे
खुली हवा में सांसें भर पंख फड़फड़ाने लगते हैं
आपसी प्रेम की दुनिया कुछ यूँ रंगीन हो जाती है ,
की शिकवे शिकायतों की विगत सभी लकीरें लुक जाती हैं ,
तब आकाश के भीतर कोई और आकाश नहीं रहता ,
तब आकाश का बाहर समाप्त हो जाता है ,
ये सृष्टि अनुग्रह नज़र आने लगती है
और आत्म सम्मान का सूरज चमकने लगता है ,
और तब बारिश होती है ,
बारिश स्वच्छता की , प्रसन्नता की , विश्वास की ,
अंतःकरण तब अंतस से मुक्त हो महकता है ,
और वो खुशबू किसी गुलाब सी होती है ॥
अ से

So you want to be a writer ? .... by Charles Bukowski


अगर ये* एक विस्फोटक की उत्तेजना से बाहर नहीं आती
हर बात के बावजूद
तो रहने दीजिये ,
जब तक ये स्वतः ही नहीं उभर आती
तुम्हारे दिल से तुम्हारे मन से तुम्हारी जबान से
और तुम्हारे अंतस से
तो रहने दीजिये ,
अगर तुम्हे घंटों तक बैठना पढ़ता है
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन में नज़रें गड़ाये
या अपने टाइप राइटर पर कमर झुकाए
शब्दों की तलाश में
तो रहने दीजिये ,
अगर आप ये करते हैं पैसे के लिए
या नाम के लिए
तो रहने दीजिए ,
अगर आप ये कर रहे हैं क्योंकि
स्त्रीयों को आप अपने बिस्तर पर चाहते हैं
तो रहने दीजिये ,
अगर आप को एक जगह बैठकर
लिखे हुए को बार बार सुधारना पढ़ता है
तो रहने दीजिये
अगर ये करने की सोचना आपको मुश्किल लगता है
तो रहने दीजिये
अगर आप किसी और की तरह लिखने की कोशिश कर रहे हैं
तो भूल जाइए ,
अगर आप को इसके गरज कर बाहर आने के लिए इंतज़ार करना पढता अहै
तो चैन से इंतज़ार कीजिये ,
अगर ये गरज कर बाहर नहीं आती
तो कुछ और कीजिये ,
अगर आप को पहले ये दिखाने का मन है
आपकी पत्नी प्रेमी प्रेमिका दोस्त या माँ बाप को
या किसी को भी
तो अभी आप तैयार नहीं हैं ,
बहुतों की भीड़ का हिस्सा मत बनिए
उन हज़ारों लोगों में से एक मत बनिए
जो अपने आप को लेखक कहते हैं ,
कुछ भी हल्का बकवास मत लिखिए जो मन को ना भाये ,
या जिसका अंदाजा लगाया जा सके
आत्म मुग्धता में मत डूबिये
विश्व भर के पुस्तकालय उबासियाँ ले लेकर सो चुके हैं
इस तरह की लिखाई पर ,
उसका वजन मत बढ़ाइए
रहने दीजिये ,
जब तक की ये किसी रोकेट की तरह बाहर नहीं आती
आपकी आत्मा की जमीन से
जब तक की इसे रोक कर रखना
आपको पागल नहीं कर देता
आपको मरने मारने पर उतारू नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
जब तक की आपके भीतर का प्रकाश
आपके अंतःकरण को प्रकाशित नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
जब इसका सही समय होगा
और आप इसके निमित्त चुने जाओगे
तब ये खुद ही रोशनी में आ जायेगी
और ये रोशन रहेगी
जब तक आप नहीं मर जाते या ये आप में नहीं मर जाती ,
और कोई तरीका नहीं है
और कभी नहीं था !
* writing , लिखाई

So you want to be a writer ? .... by Charles Bukowski

Nov 26, 2014

सामने अतीत है मेरे


सामने अतीत है मेरे
पीठ पीछे भविष्य
कंधे ध्यान मग्न हैं
इन दोनों के बीच ।
बाएँ नियति है मेरी
दायें मेरा सामर्थ्य
अन्तःकरण तराजू है
इन दोनों के बीच ।
अ से

Nov 25, 2014

समय की डुगडुगी बजाते ...


समय की डुगडुगी बजाते बढ़ता जाता है
अज्ञात पगडंडियों से गुज़रता
अपने चिन्ह छोड़ जाता है
पर वो नज़र नहीं आता
देखने वालों को बस रास्ता नज़र आता है ।
सारे चिन्ह उसका पीछा करते हैं
वो हमेशा आगे चलता है
पर कहीं नहीं पहुंचता
कहीं नहीं जाता
उस तक पहुँचने वालों का इंतज़ार करता है ।
उसकी छोड़ी गयी मुस्कुराहट संसार है भूल भुलैया
हर कोई उस में खोया रहता है
वो कोई वजह नहीं बताता
गम्भीर मुद्रा में सोया रहता है
वो समझ नहीं आता
उसकी मुस्कान का रहस्य
कोई उस सा मुस्कुराने वाला ही जान पाता है !
अ से

भीतर


जमीन 

के भीतर है 
पानी 
के भीतर है 
आग 
के भीतर है
हवा
के भीतर है
आकाश
के भीतर है
मन
कैद है
भीतर
के भीतर !

Nov 23, 2014

And The Moon And The Stars And The World -- Charles Bukowski


रात में टहलना   --
अच्छा है आत्मा के लिए :
खिड़कियों में झांकते हुये
देखते चलना थकी हुयी गृहणियों को
खदेड़ने की कोशिश करती
उनके पीकर पगलाए आदमियों को !
Long walks at night-- that's what good for the soul: peeking into windows watching tired housewives trying to fight off their beer-maddened husbands.

A Challenge To The Dark -- Charles Bukowski


एक चुनौती अँधेरे को
गोली मारो आँख में
गोली मारो दिमाग में
गोली मारो *** में
गोली मारो नाचते हुये किसी फूल की तरह
कमाल है कैसे मौत जीत जाती है बिना किसी प्रयास के
कमाल है कितनी ज्यादा साख दी गयी है जीवन के मूर्ख प्रतिरूपों को
कमाल है कैसे मुस्कुराहट सूख चुकी है होठों से
कमाल है कैसे क्रूरता इतनी नियत है जीवन में
मुझे जल्दी ही घोषित कर देना चाहिए मेरा युद्ध उनके युद्ध पर
मुझे बचाए रखना है जमीन का मेरा आखिरी टुकड़ा
मुझे निश्चित ही सुरक्षित रखनी है मेरी बनायी थोड़ा सी जगह
जिसने मुझे अनुमत की है जिंदगी
मेरा जीवन नहीं है उनकी मौत
मेरी मौत नहीं है उनकी मौत ।

shot in the eye
shot in the brain
shot in the **** 
shot like a flower in the dance
amazing how death wins hands down
amazing how much credence is given to idiot forms of life
amazing how laughter has been drowned out
amazing how viciousness is such a constant
I must soon declare my own war on their war
I must hold to my last piece of ground
I must protect the small space I have made that has allowed me life
my life not their death
my death not their death …

A Smile To Remember -- Charles Bukowski


एक मुस्कान याद रखने के लिए --

हमारे पास थी सुनहरी मछलियाँ 
एक बाउल में चक्कर लगाती रहती गोल गोल
मेज पर भारी पर्दों के पास ढकती हुयी तस्वीर की खिड़की को
मेरी माँ , हमेशा मुस्कुराती हुयी , हमसे भी चाहती
खुश रहना , कहती मुझे , खुश रहो हेनरी
और वो सही थी , ये बेहतर है खुश रहना अगर तुम रह सको
पर मेरे पिता ने जारी रखा उन्हे पीटना और मुझे कई दफा हफ्ते में
जब भड़के हुये होते भीतर से उनके 6 फूट फ्रेम के
क्यूंकी वो नहीं समझ सके क्या खाये जाता था उनको अंदर ही अंदर ।
मेरी माँ , बेचारी मछली
चाहती थी खुश रहना , पिटती दो तीन बार हफ्ते में
मुझे कहती खुश रहने को , मुस्कुराओ हेनरी !
तुम मुस्कुराते क्यों नहीं कभी !
और फिर वो मुस्कुराती मुझे दिखाने के लिए कि कैसे ,
और ये सबसे उदास मुस्कुराहटें थी जो मैंने कभी देखी हैं ।
एक दिन सुनहरी मछलियाँ मर गयी , सारी पाँच की पाँच ,
वो पड़ी हुयी थी पानी की सतह पर , उनकी तरफ से उनकी आँखें अभी भी खुली हुयी थी ,
और जब मेरे पिता घर पहुंचे उन्हें फेंक दिया बिल्ली के सामने रसोई के फर्श पर
और हमने देखा जैसे मेरी माँ मुस्कुराई हो !
we had goldfish and they circled around and around
in the bowl on the table near the heavy drapes
covering the picture window and
my mother, always smiling, wanting us all
to be happy, told me, 'be happy Henry!'
and she was right: it's better to be happy if you
can
but my father continued to beat her and me several times a week while
raging inside his 6-foot-two frame because he couldn't
understand what was attacking him from within.
my mother, poor fish,
wanting to be happy, beaten two or three times a
week, telling me to be happy: 'Henry, smile!
why don't you ever smile?'
and then she would smile, to show me how, and it was the
saddest smile I ever saw
one day the goldfish died, all five of them,
they floated on the water, on their sides, their
eyes still open,
and when my father got home he threw them to the cat
there on the kitchen floor and
we watched
as my mother smiled

Nov 22, 2014

Success is counted sweetest -- Emily Dickinson


सफलता गिनी जाती है मधुरतम
उनके द्वारा जो कभी नहीं हुये सफल
पचाने को सारामृत
जरूरी है भूख विकल
सारे बैंगनी मेज़बानों * में एक भी
जिसने लिया हो झण्डा आज
नहीं बता सकता परिभाषा
जीत की इतनी सपाट
जितना वो परास्त , मरता हुआ
जिसके भुला दिये गए कानों में
जीत का दूरस्थ पीड़ादायी तनाव
फटता है साफ युद्ध के मैदानों में

Success is counted sweetest
By those who ne'er succeed.
To comprehend a nectar
Requires sorest need.
Not one of all the purple Host *
Who took the Flag today
Can tell the definition
So clear of victory
As he defeated – dying –
On whose forbidden ear
The distant strains of triumph
Burst agonized and clear .

* the "purple Host" is the royal army during the Civil War of the United States in 1862

Nothing Gold Can Stay -- Robert Frost


प्रकृति का प्रथम हरा सुनहरा है
 
उसके स्पष्टतम रंग को थामने के लिए 
उसकी शुरुआती पत्तियाँ एक फूल हैं 
पर सिर्फ एक घंटे के लिए
फिर पत्तियाँ ढल जाती हैं पत्तियों में
और स्वर्ग डूब जाता है शोक में 
और सुबह उतर जाती है दिन में 
कुछ भी स्वर्णिम स्थायी नहीं रह सकता !

Nature’s first green is gold, 
Her hardest hue to hold.
Her early leaf’s a flower ;
But only so an hour.
Then leaf subsides to leaf.
So Eden sank to grief,
So dawn goes down to day.
Nothing gold can stay.

Robert Frost -- The Road Not Taken


दो रास्ते अलग हुये एक पीले जंगल में
दोनों तय नहीं कर सका क्षमा चाहूँगा
पर एक यात्री होकर , खड़ा रहा देर तक
दूर तक देखता रहा जहाँ तक मैं देख सका एक को
जहाँ से ये मुड़ गया झाड़ियों में ।
और तब दूसरा लिया , वैसा ही साफ स्पष्ट
और शायद बेहतर दावा रखने वाला
क्यूंकि उस पर घास थी और चुना जाना चाहता था
हालांकि उस से गुजरने के बारे में
जो गुजरे थे सब एकमत थे ।
और दोनों उस सुबह बराबर बिछे हुये थे
पत्तियों में कदमों के कोई निशान नहीं थे
ओह मैंने रख छोड़ा था पहला किसी और दिन के लिए !
जानते हुये भी कैसे रास्ता व्यवहार करता है रास्ते में
मैंने संदेह किया क्या मुझे कभी वापस लौटना चाहिए ।
कहीं युगों युगों बाद
मुझे ये कहना होगा एक आह के साथ
दो रास्ते अलग हुये थे जंगल में
और मैंने चुना जो कम चुना गया था
और उसी ने पैदा कर दिया सारा अन्तर !
Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;
Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim
Because it was grassy and wanted wear,
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,
And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way
I doubted if I should ever come back.
I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I,
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.

Robert frost -- Fire and Ice .


कुछ कहते हैं संसार समाप्त होगा आग में
कुछ कहते हैं बर्फ में
जो मैंने जाना है इच्छाओं से
मैं उनके साथ हूँ जो आग के पक्ष में हैं ।
पर यदि इसे दो बार नष्ट होना होता
मैं सोचता हूँ मैंने देख ली है पर्याप्त नफरत
ये कहने के लिए कि विनाश के लिए
बर्फ भी उपयुक्त है और पर्याप्त होगी !
Some say the world will end in fire,
Some say in ice.
From what I've tasted of desire
I hold with those who favor fire.
But if it had to perish twice ,
I think I know enough of hate
To say that for destruction
ice is also great
And would suffice.

Nov 21, 2014

जब मैं सोता हूँ तय करके सोता हूँ ...


जब मैं सोता हूँ तय करके सोता हूँ कि उठना कब है
कभी तय वक़्त पर नींद खुल जाती है
कभी उठने में देर भी हो जाती है
लेकिन एक बार न उठने से पहले
मैं इस शरीर में कई बार जी उठता हूँ 
कई बार मैं तय करके नहीं सोता कि उठना कब है
और सो जाता हूँ
और रोज के तय वक़्त पर उठ जाता हूँ
लेकिन कभी मैं खूब सोता हूँ
कभी मैं अपनी नियति खुद तय करता हूँ
पर ये नियति सदा नियत नहीं होती
कभी मैं उसे प्रकृति को सोंप देता हूँ
पर प्रकृति में भी नियमन नहीं
कभी मैं सोने और जागने के बीच उलझा होता हूँ
इसी सोने और जागने के अनंत क्रमचयों के
आकस्मिक चुनाव के बीच कहीं चेत हूँ मैं !
अ से

तुम बारिश सी बरसती हो ...


तुम बारिश सी बरसती हो
मैं आकाश सा भीगता हूँ 

तुम नदी सी लरजती हो
मैं हवाओं सा सीजता हूँ 

तुम्हारी अनवरत कलकल में
सुकून सा रमता जाता हूँ 

तुम्हारी लहरों के शोर में
सागर सा खामोश हूँ मैं !...

अ से 

Nov 20, 2014

Ah ! Vastness of Pines -- Neruda

आह ! चीड़ों का झुरमुठ !
आह ! चीड़ों का झुरमुठ , टूटती लहरों की सरसराहट ,
रौशनी की आँख मिचौली , एकांत में बजती घंटियाँ ,
आँखों में घिरती हुयी साँझ , खिलौना गुड़िया ,
धरती का खूबसूरत आवरण , जिसमें गाती है जमीन ।
आह ! तुम में गाती हैं नदियाँ और मेरी आत्मा बह जाती है उनमें
जैसा तुम चाहो पहुँचा दो जहाँ तुम पहुंचाना चाहो
अपने आशा के धनुष पर मेरी राह साधते हुये
और एक आवेश में मैं छोड़ दूँगा मेरे तरकश भर तीर !
सभी तरफ मैं पाता हूँ तुम्हारी बिखरी हुयी छांव
और तुम्हारी खामोशी मरहम होती है मेरे दुःख के समय में
मेरे चुंबन शरण स्थल और मेरी नम ख्वाहिशें घोंसला बनाती हैं तुम में
तुम्हारे सुरक्षित अदृश्य हाथों के बीच ।
आह ! तुम्हारी रहस्यमय आवाज़ जिसमें गूँजता है प्यार
गहराता है प्रतिध्वनि में और डूबती हुयी शामों में ।
और इस तरह सुने हैं मैंने अँधेरी रातों में मैदानों पर
हवा के रुख में गेहूँ की बालियों के गूँजते हुये स्वर ।
Ah vastness of pines, murmur of waves breaking,
slow play of lights, solitary bell,
twilight falling in your eyes, toy doll,
earth-shell, in whom the earth sings .
In you the rivers sing and my soul flees in them
as you desire, and you send it where you will.
Aim my road on your bow of hope
and in a frenzy I will free my flock of arrows.
On all sides I see you waist of fog,
and you silence hunts my afflicted hours;
my kisses anchor, and my moist desire nests
in you with your arms of transparent stone.
Ah your mysterious voice that love tolls and darkens
in the resonant and dying evening!
Thus in deep hours I have seen, over the fields,
the ears of wheat tolling in the mouth of the wind.

I long to speak the deepest words -- Rabindra Nath Tagore , Geetanjali


कब से कहना चाहता हूँ गहरी संवेदना के वो शब्द जो मुझे कहने हैं तुमसे
पर मैं नहीं कहता इस डर से कि तुम हँसोगी ,
इस वजह से मैं हँस लेता हूँ खुद ही पर और अपनी बात मज़ाक में उड़ा देता हूँ
मैं अपने एहसासों को हल्के में लेता हूँ डर कर कि तुम ऐसा करोगी ।
कब से बताना चाहता हूँ वो सच दिल के जो मुझे बताने हैं तुमको
पर मैं नहीं बताता ये सोचकर कि तुम विश्वास नहीं करोगी
इस वजह से मैं छुपा लेता हूँ उन्हे झूठा मानकर और अपने मन से उलट कुछ बोलकर
मैं ऐसा दिखाता हूँ जैसे मेरी संवेदनाओं का कोई अर्थ नहीं ये सोचकर कि तुम ऐसा करोगी ।
कब से चाहता हूँ इस्तेमाल करना उन कीमती शब्दों का जो सहेज रखे हैं तुम्हारे लिए
पर मैं नहीं करता डरकर से कि मुझे कमजोर ना समझ लिया जाये
इसीलिए मैं पुकारता हूँ तुम्हें कठोर शब्दों से और अपनी मर्दानगी का बखान करता हूँ
मैं तुम्हें दर्द देता हूँ कि कभी तुम्हें मेरी संवेदनाओं का पता ना चले ।
मैं चाहता हूँ खामोश तुम्हारे साथ बैठना
पर नहीं करता ये सोचकर कि कहीं मेरा दिल जबान पर ना आ जाए !
इसीलिए मैं हल्की और इधर उधर की बातें करता हूँ और छुपा लेता हूँ अपने दिल को शब्दों के पीछे
मैं बेरुखी से रहता हूँ अपनी संवेदनाओं के साथ सोचकर कि तुम ऐसा करोगी ।
मैं तुमसे दूर चला जाना चाहता हूँ
पर नहीं जाता कि तुम्हें पता चला जाएगा मेरी कायरता का
इसीलिए मैं ऊँचा रखता हूँ अपना सर और आ जाता हूँ तुम्हारे पास बेधड़क
सतत उलाहने तुम्हारी आँखों के रखते हैं मेरे दर्द को ताज़ा हमेशा

I long to speak the deepest words I have to say to you; but I
dare not, for fear you should laugh.
That is why I laugh at myself and shatter my secret in jest.
I make light of my pain, afraid you should do so.
I long to tell you the truest words I have to say to you; but I
dare not, being afraid that you would not believe them.
That is why I disguise them in untruth, saying the contrary of
what I mean.
I make my pain appear absurd, afraid that you should do so.
I long to use the most precious words I have for you; but I dare
not, fearing I should not be paid with like value.
That is why I gave you hard names and boast of my callous
strength.
I hurt you, for fear you should never know any pain.
I long to sit silent by you; but I dare not lest my heart come
out at my lips.
That is why I prattle and chatter lightly and hide my heart
behind words.
I rudely handle my pain, for fear you should do so.
I long to go away from your side; but I dare not, for fear my
cowardice should become known to you.
That is why I hold my head high and carelessly come into your
presence.
Constant thrusts from your eyes keep my pain fresh for ever


Nov 18, 2014

The Light Wraps You -- Neruda


रौशनी घेर लेती है तुम्हें इसकी बुझ जाने वाली लौ में
एक थका हुआ शोक-संतप्त निराश होता है इस तरह
ढलती हुयी साँझ के पुरातन चक्रों के विरुद्ध
जो घूमते है तुम्हारे चारों ओर ।
बे-आवाज़ , मेरे दोस्त ,
इस सुनसान में अकेले
मृतात्माओं के इस प्रहर में
और आग की लपटों की बैचेनी से भरा
एक बर्बाद दिन का सच्चा उत्तराधिकारी
एक किरण संतृप्ति की सूरज से गिरती है तुम्हारे अंधेरे वस्त्रों पर
और गहरी जड़ें रात की तेजी से बढ़ती हैं तुम्हारी आत्मा से
और चीजें जो छुपी हुयी थी तुम में नज़र आने लगती हैं फिर से
जिससे पोषण लेते हैं , थके और उदास लोग , तुम्हारे अभी के जन्में !
ओह भव्य ऊर्वर और आकर्षक दास
उस काल चक्र के जो गति करता है बारी बारी से श्वेत और श्याम :
:जो उठता है दिशा देता है और अधिकार में रखता है
एक सृष्टि जीवन से इतनी समृद्ध
कि इसके फूल मुरझा जाते हैं और ये भरी है उदासी से !
The light wraps you in its mortal flame.
Abstracted pale mourner, standing that way
against the old propellers of the twilight
that revolves around you
Speechless, my friend,
alone in the loneliness of this hour of the dead
and filled with the lives of fire,
pure heir of the ruined day.
A bough of fruit falls from the sun on your dark garment.
The great roots of night grow suddenly from your soul,
and things that hide in you come out again
so that a blue and pallid people , your newly born, takes nourishment.
Oh magnificent and fecund and magnetic slave
of the circle that moves in turn through black and gold:
rise, lead and possess a creation so rich in life
that its flowers perish and it is full of sadness.
The Light Wraps You -- Neruda

Nov 17, 2014

Body of a Woman -- Neruda


एक स्त्री की देह
उजले ऊरु , उजले उभार
जैसे तुम हो , कोई संसार
आत्मसमर्पण में बिछा हुआ
मेरी रूखी कृषक देह कुरेदती है तुम्हें
और प्रेरित करती है पुत्रों को
उपज आने में पाताल के अँधेरों से
मैं अकेला था
किसी खाली सुरंग की तरह
पंछी जहाँ से उड़ चुके थे
अंधकार भीतर तक भरने लगा था
अपने प्लावित आक्रमणों में मुझे
एक हथियार की तरह
मैंने तुम्हें ढाला आत्मरक्षा के लिए
मेरे धनुष के एक तीर
मेरी गुलेल में एक पत्थर की जगह
लेकिन प्रतिशोध का समय गुज़र गया
और मैं तुमसे प्यार करता हूँ
भरी हुयी देह दूध मलाई सी चिकनी
काई सी फिसलन भरी त्वचा
भरा हुआ उन्माद और उत्सुकता
ओह ! स्तनों के प्याले
ओह ! अनुपस्थिति की आँखें
ओह ! तरुणाई का गुलाब
ओह ! तुम्हारी आवाज़ , ठहरा हुआ सैलाब
ओह ! मेरी स्त्री की देह
मैं लगा रहूँगा तुम्हारे आकर्षण में
ओह ! मेरी प्यास ,
मेरी असीम चाह
मेरी बदली हुयी राह !
नदी के गहरे किनारे
जहां बहती है शाश्वत प्यास
पीछा करते हैं थकान के एहसास
और एक अंतहीन दुःख !
Body of a woman, white hills, white thighs,
you look like a world, lying in surrender.
My rough peasant's body digs in you
and makes the son leap from the depth of the earth.
I was lone like a tunnel. The birds fled from me,
and nigh swamped me with its crushing invasion.
To survive myself I forged you like a weapon,
like an arrow in my bow, a stone in my sling.
But the hour of vengeance falls, and I love you.
Body of skin, of moss, of eager and firm milk.
Oh the goblets of the breast! Oh the eyes of absence!
Oh the roses of the pubis! Oh your voice, slow and sad!
Body of my woman, I will persist in your grace.
My thirst, my boundless desire, my shifting road!
Dark river-beds where the eternal thirst flows
and weariness follows, and the infinite ache .
Body of a Woman -- Neruda .

पत्थरों की दरारों में नयी घास उगी है ...


पत्थरों की दरारों में नयी घास उगी है
कल पकाए खाने में भी फफूंद लगी है
जाने ये मच्छर कहाँ से आ जाते हैं
ये झींगुर फिर से उत्पात मचाते हैं ।
कल ही साफ़ किया ये जंगल 
आज फिर बारिश में रहता है
मेरा इकठ्ठा किया पानी
बाँध के साथ बहता है ।
समय गुजरे की बात है ,
बदल दी थी पूरी धरा की शकल
बना दी थी इमारतें
नदियों को नाले नालों को नल ।
आज मशीनों पर काई जमी है
धरा पर फिर वनस्पतियाँ रमीं है
उसकी बनावट मुझे सताती है
मेरी सजावट उसे नहीं भाती है
मैं जो भी करूँ सब मर जाता है
फिर वो ही दृश्य उभर आता है ।
ना सृजन मरता है
ना मृत्यु थकती है
फिर फिर वो ही प्रकृति बरसती है
मेरे बदलाव की हर कोशिश
अपने अस्तित्व को तरसती है ।
ना मैं उसे समझ पाया
ना उसके हिसाब से ढल पाया
ना उसने खुद को बदलना चाहा
ना उसको कभी खयाल आया ।
बे-मायनी जद-ओ-जहद चलती रही
कतरा कतरा ये ज़िन्दगी जलती रही
चित्र विचित्र अनेकों कहानियों के साथ,
अपने अर्थ को तलाशती ।
अ से

Nov 12, 2014

एक शाश्वत दुःख से दुखी हूँ मैं

एक शाश्वत दुःख से दुखी हूँ मैं
इस दुरूह आकाश के भीतर
गहराते हुये आसमान के तले
बैचेन मन को लेकर टहलता हुआ 
लगातार भारी होती साँसों के साथ
मृतकों की भीड़ में धक्के खाते
जिस्म चल रहे हैं जीवन रुका हुआ है
और अंधेरे मुहानों पर सजी हुयी हैं पंक्तियाँ
खुद को समेट लिया है मैंने अज्ञात की परिधि में
अलग कर लेना चाहता हूँ खुद को इस जीवन से
जो हमेशा ही घिरा रहता है अनिश्चितताओं के अँधेरों में
जबकि मैं जीना चाहता हूँ
मैं नहीं नकार सकता इस विभीषिका को
जो फन फैलाये रहती है जीवन के अनमोल खजाने पर
मिथ्या विश्वास टूट जाते हैं
आस बेकार साबित होती है
स्याह अँधेरों में कुत्ते सियार रोते हैं
और बिल्लियाँ दबे पाँव चलती हैं
हवा पानी आकाशीय बिजली
मानवीय लालच भूख वासना और आग
एक एक कर सबकुछ निगल जाती है
कभी कभी ढेर की ढेर तिनकों की तरह
परछाइयाँ आती हैं
संघर्ष युद्ध और सुरक्षा के बहाने
और कभी बिना किसी बहाने भी
विनाश तांडव यातनाएँ चीखें चीत्कार
पुकार जिन्हें कोई सुनने वाला नहीं
मेरी दाढ़ी बढ़ चुकी हैं सफ़ेद होकर
मुझे अब कोई उम्मीद बाकी नहीं रही
मैं देख चुका हूँ पूरी तरह से ईमानदार कुछ
हर तरह की भाग दौड़ अब बेवजह लगती है
मैं दुःखी हूँ भूख प्यास और अकाल से
एक शाश्वत दुख से दुःखी हूँ मैं !
अ से

Nov 10, 2014

और जब गर्भ का स्पंदन खो गया ...

और जब गर्भ का स्पंदन खो गया
तो सृष्टि का अज्ञातमात्र सो गया
चेत का समवेत स्वर लुप्त हो गया
सृजन का मूल शब्द सुप्त हो गया
ब्रह्मा बिखर कर वेदहीन हो गया
संसार विसर्ग में विहीन हो गया !
एक पल को
शिव ने शक्ति को जीर्ण कर दिया
कारण अकारण सब क्षीर्ण कर दिया
अब प्रकाश के लिए आकाश ना हुआ
आकाश के लिए अवकाश ना हुआ
वियोगी अंतर्ध्यान रहा
शून्य एक सब अ-मान रहा !
तभी वो पल कहीं लीन हो गया
गिना ना जा सका बस तीन हो गया
शिव को अपना भान हो गया
फिर से शक्ति का ध्यान हो गया
आकाश का अवकाश समाप्त हो गया
प्रकाश दिक-काल में व्याप्त हो गया
शिव से आत्म में बैठा ना गया
इतना प्रचंड समेटा ना गया !
एक से तीन हुये तीन से नो
बिखर गए शक्ति में कण कण हो
सब ओर भ्रम पर कहीं कोई योग नहीं
महामाया पर चल सका कोई प्रयोग नहीं
हार कर क्षरण ली फिर अपनी ही शक्ति की
हाथ जोड़ नमन कर महामाया की भक्ति की !

अ से 

Nov 9, 2014

मैं रहता हूँ अपनी आत्मा के वृक्ष की घनी शाखों में ...


मैं रहता हूँ अपनी आत्मा के वृक्ष की घनी शाखों में
जो अब शायद सूखने लगा है या सूखता लगने लगा है
क्यों कि अब मेरी नज़र चुकने लगी है तो मुझे इसका स्पष्ट भान नहीं होता !
कहते हैं बहुत पहले एक पत्ता 
टूट कर गिरा था इसकी शाख से
उसको जमीन छूनी थी
जमीन जो ओझल थी नज़रों से
उस शाख से दूर बहुत दूर कहीं
जिसके बारे में उसने सिर्फ सुना ही सुना था
पर ऐन पहले वो फड़फड़ाने लगा
अपनी आत्मा से टूटकर अलग होने का भान उसे बीच हवा में हुआ
और उसके सपनों की जमीन उसे मटमैली दिखने लगी
ठीक इसी वक़्त जन्म हुआ एक पंछी का जो फड़फड़ाने लगा अपने जन्म से ही !
कोई ठीक ठीक नहीं जानता कि कब वो उस पत्ते से पंछी हो गया
जबकि इस पेड़ का इतिहास भरा हुआ है ऐसे पंछियों से
इसकी भरी पूरी शाखाओं पर फड़फड़ाते हैं अनगिनत परों के जोड़े
इस वृक्ष पर एक पूरा संसार बसता है !
एक सामान्य सी सुबह में यहाँ हजारों आवाज़ें एक साथ चहकती हैं
पर दाना लाने हर कोई अपने ही परों पर जाता है
अपनी ही चोंचों के लिए चुग कर आता है
दाने तिनके और घोंसले बनाना चुनना जोड़ना और चोंच लड़ाना
इनका बस यही शगल रह आता है
और शाम होते होते सब खामोश हो जाता है !
कितने ही पंछी ऐसे भी हैं जो पंजों के बल लटके हैं या स्थिर अटके हैं
इस उम्मीद में कि शायद वो पेड़ उन्हे फिर से स्वीकार कर ले
और वो फिर से एक पत्ता बन जाएँ !
कोई नहीं जानता इस सब का फलसफा क्या है
बस देखने में आता है कि जब कोई पंछी
सामर्थ्य खो चुकता है अपने पंजों अपने परों पर रह सकने का
तो वो होश खोकर गिर जाता है वहीं
बीच हवा में क्या होता है नज़र नहीं आता
सब ओझल सा हो जाता है कहीं !
मुझे याद आते हैं
वो शुरुआती पल मेरे अस्तित्व के
जहाँ बिखरे पड़े थे जमीन पर कई सूखे बेजान पत्ते
और मैं फड़फड़ाया था ऊपर उड़ने के लिए !
अ से

Nov 7, 2014

एक पल को मुझे दिखता है एक सतत दृश्य

एक पल को
मुझे दिखता है एक सतत दृश्य
जिसमें वस्तुएँ दृश्य से अलग नहीं होती
और फिर मैं उन्हे पृथक करता हूँ
उनके स्पर्श से 
तय करता हूँ उनका रूप आकार
सीमाओं के उस क्षेत्र से
जो गति कर सकता है एक साथ ।
और मैं पृथक करता हूँ स्पर्शों को
उनके शब्द से
जो अलग हैं संवेदना में छूने पर
सभी का स्पंदन अलग है और उनका संगठन ।
जैसे मैं पृथक करता हूँ गंधों को उनके रस से
और रसों को उनकी रसायनिक संरचना से ।
जैसे मैं अलग करता हूँ शब्दों को
उनके मन से
उनके निहित अर्थ और प्रयोजन से ।
फिर अमुक मन को पृथक करता हूँ
उसकी समझ से
मैं जानता हूँ बालक का अबोध
स्त्री का अपनापन और पुरुष की समग्रता
समय की माँग प्रतीक्षा की बैचेनी
और प्रेम की अधीरता
और इस तरह एक ही वाक्य को
हमेशा एक ही वाक्य नहीं मान सकता ।
और समझ पृथक होती है
पात्र के अहंकार से
कि आखिर वो किन वस्तुओं को
जोड़ बैठा था अपनी अस्मिता से
और लिए बैठा था कौनसे संकल्प अपने मानस में ।
अ से

my hands --- Octavio Paz


''My hands
open the curtains of your being
clothe you in a further nudity
uncover the bodies of your body
My hands
invent another body for your body...''
मेरे हाथ
हटाते हैं पर्दे तुम्हारे अस्तित्व से
पहना देते हैं तुम्हें थोड़ी और नग्नता
उजागर करते हैं और भी देह तुम्हारी देह की
मेरे हाथ
रचते हैं एक और देह तुम्हारी देह के लिए

"My eyes discover you
naked
and cover you
with a warm rain
of glances..."
मेरी आँखें खोजती हैं तुम्हें
नग्न
और ढ़क देती हैं तुम्हें
नज़रों की ऊष्म
बारिशों से
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एक चित्रकार निचोड़ लाता है एक विहंगम दृश्य ...


एक चित्रकार
निचोड़ लाता है एक विहंगम दृश्य ,
छद्म और सतत सतरंगी समतल से,
अपनी सरल दृष्टि से ,
घंटो एकटक देखता है मूर्तिमान होकर ,
और केनवास पर उतर आता है एक जीवंत रस ,
उस जहाँ से भी जहाँ पहुँच है सिर्फ कल्पनाओं की !
एक कवि ,
निचोड़ लाता है एक गहरा रिश्ता ,
भावनाओं के सागर तल से ,
अपने सरल हृदय से ,
उतने अंधेरे तक भी जाकर जहाँ नहीं पहुँचती रौशनी कभी ,
दृश्यों से शब्द और शब्दों से मन ,
वो निचोड़ लाता है ज़हन से कुछ चुनिन्दा नज़्म ,
ताकि बने रहें रिश्ते सार्थक और जीवंत ,
शब्दों और अर्थों के बीच ॥
एक संगीतकार ,
निचोड़ लाता है एक सुरीला रास्ता ,
अनंत आकाश के शब्द पटल से ,
अनगिनत ध्वनियों के बेतरतीब
सामूहिक नृत्य की भूलभुलैया से ,
एक सुलझा हुआ वास्ता
जिस पर ले जाए जा सकते हैं ,
दो कान और एक दिल ॥
गुनाह है नींबू कसकर निचोड़ना ,
जब बाहर आ जाती है कड़वाहट ,
जबकि निचोड़ना कला है ,
कला , जिसे जानकर ही ,
कहलाती है मानव सभ्यता विकसित,
और रसास्वादन
कार्य है संयम और मधुरता का
स्वयमेव मिलते हुये में
संतुष्टि बनाए रखने की कला !
एक प्रेमी की तरह ,
जो निचोड़ता है , समय के अथाह भण्डार से ,
जीने के लिए दो पल ,
और भीतर के असीम समुद्र से , दो नमकीन बूँदें ,
और रसता रहता है जिसे
फिर सदियों तक !
अ से

Nov 5, 2014

ग्राह्यता और अभिव्यक्ति


तार पर बैठा एक बैचैन पंछी
पंजे चलाता है लगातार
कहीं जाना है उसे
याद नहीं आता कोई गंतव्य
किसी से मिलना है उसे
याद नहीं आता कोई चेहरा
उड़कर आता है कहीं से
साँस लेने दो पल
परों को आराम देने
दो चोंच भर आवाज़ लगाता है
उड़ते हुये पंछियों में किसी को
अपनी स्थिति का भान कराता है
एक लम्बी साँस भर , फड़फड़ाता है
और उड़ जाता है फिर से !
एक बच्चा देखता है उसे
परों की तरह हाथ हिलाता है
उसकी जैसी आवाज़ बनाता है
और देखते देखते
आँखों से ओझल हो जाता है पंछी !

Nov 4, 2014

I would like to describe the simplest emotion --- Zbigniew Herbert


मैं करना चाहता वर्णन
एक सरलतम भावना का
उमंग या उदासी
पर औरों की तरह नहीं
बारिश की बौछारों या सूरज को उद्धृत कर
मैं करना चाहता वर्णन रौशनी का
जो पैदा हो रही है मुझमें
पर जानता हूँ
याद नहीं दिलाती किसी तारे की
कि ये उतनी उजली नहीं
ना ही उतनी शुद्ध
और है भी अनिश्चित
मैं करना चाहता वर्णन साहस का
बिना एक भी क्षण को उतावला बनाए
और डर का
बिना एक भी कण को काँपता दर्शाये
इसे किसी और तरह कहने के लिए
मैं त्याग देता सभी रूपक
बदले में एक शब्द के
जो निकला हो मेरे सीने से
एक ठोस पसली की तरह
एक शब्द के लिए
जो मेरे सामर्थ्य क्षेत्र की सीमा में रहे
पर स्पष्ट रूप से संभव नहीं ये
और सिर्फ दर्शाने को प्रेम
मैं दौड़ता हूँ पागलों की तरह
दाने चुगते हुये कई सौ कबूतरों को उड़ाते
और मेरी भावनाएँ
जो नहीं बनी है पानी की कैसे भी
उछलती हैं नदी में लहरों सी
और गुस्सा
जो नहीं है आग सा
उतर आता है आँखों में
सुर्ख इसके प्रभाव सा
इतना कोहरा है
इतना अंतर्द्वंद
मेरे भीतर
जो छांटा एक प्राचीन बूढ़े ने
एक बार और हमेशा के लिए
और बताया
अमुक विषय में
अमुक सत्य है
हम समा जाते हैं नींद में
एक हाथ सिरहाने किए
और दूसरा रचते हुये कोई और ग्रह
इस अनंत अन्तरिक्ष में
हमारे पैर त्याग देते है हमें
लेते रहते हैं स्वाद पृथ्वी का
अपनी छोटी जड़ों से
जिन्हें उखाड़ देते हैं हम
अगली सुबह बेमन से !
I would like to describe
the simplest emotion
joy or sadness
but not as others do
reaching for shafts of rain or sun
I would like to describe a light
which is being born in me
but I know it does not resemble
any star
for it is not so bright
not so pure
and is uncertain
I would like to describe courage
without dragging behind me a dusty lion
and also anxiety
without shaking a glass full of water
to put it another way
I would give all metaphors
in return for one word
drawn out of my breast like a rib
for one word
contained within the boundaries
of my skin
but apparently this is not possible
and just to say -- I love
I run around like mad
picking up handfuls of birds
and my tenderness
which after all is not made of water
asks the water for a face
and anger
different from fire
borrows from it
a loquacious tongue
so is blurred
so is blurred
in me
what white-haired gentleman
separated once and for all
and said
this in the subject
this is the object
we fall asleep
with one hand under our head
and with the other
in a mound of planets
our feet abandon us
and taste the earth
with their tiny roots
which next morning
we tear out painfully
--- Zbigniew Herbert.

Fish by Zbigniew Herbert :


It’s impossible to imagine the sleep of fish.
Even in the darkest corner of the pond, deep in the reeds,
their sleep is a constant wakefulness: always the same posture 
and the absolute impossibility of saying about them:
they laid down their heads.
Their tears are like a scream in a vacuum – uncounted.
Fish cannot gesture their despair. This justifies the dull knife skipping along the spine, ripping off the sequins of scales.
असंभव है एक मछली की नींद की कल्पना करना ,
तालाब के सबसे अंधेरे कोने और नदी की गहराइयों में भी ,
उनकी नींद एक सतत जगराता होती है , हमेशा एक ही मुद्रा ,
एक निश्चित असंभाव्यता उनके बारे में कुछ भी कहना :
वो रहती हैं अपने ही तले ।
उनके आँसू अनन्त आकाश में एक चीख की तरह हैं -- अनसुने ।
मछलियाँ नहीं जता सकती अपनी निराशा ,
और ये सही ठहराता है एक सुस्त चाकू को चीरते चले जाना उनकी रीढ़ के बीच से और फाड़ देना उसके शल्कों को !

Elephants by Zbigniew Herbert :


In truth, elephants are extremely sensitive and high-strung.
They have a wild imagination which allows them sometimes to forget about their appearance.
When they go into the water, they close their eyes. 
At the sight of their own legs they weep in frustration.
I knew an elephant who fell in love with a hummingbird.
He lost weight, got no sleep, and in the end died of a broken heart.
Those ignorant of the elephant’s nature said:
he was so overweight.
वास्तव में , हाथी अतिशय संवेदनशील और जीवट होते है ।
वो एक घोर कल्पना में जीते हैं जो उन्हे अनुमति देती है भूल जाने की
कभी कभी खुद का रूप रंग ।
जब वो पानी में जाते हैं अपनी आँखें बंद कर लेते हैं ।
और अपने पैरों को देखकर हताशा में रो पड़ते हैं ।
मैं जानता हूँ एक हाथी को जो एक हमिंगबर्ड के प्रेम में पड़ गया था ।
उसका वजन गिर गया , नींद उड़ गयी , और अंत में टूटे दिल से मर गया ।
वो जो हाथी के स्वभाव से अंजान थी बोली :
वो काफी मोटा था !

a new vowel by Zbigniew Herbert


'When I mount a chair
to capture the table
and raise a finger
to arrest the sun
when I take the skin off my face
and the house off my shoulders
and clutching
my metaphor
a goose quill
my teeth sunk into the air
I try to create
a new
vowel- '
जब मैं चढ़ता हूँ कुर्सी पर
मेज़ हथियाने को
और उठाता हूँ उंगली
सूरज की गिरफ्तारी को
जब मैं उतारता हूँ त्वचा अपने चेहरे से
और घर अपने कंधों से
और पकड़ता हूँ
अपनी बिम्ब रूपक
एक कलम को
मेरे दाँत गढ़ जाते हैं हवा में
मैं प्रयास करता हूँ
एक नया स्वर रचने की

A Dream Within A Dream .... Edgar Allan Poe


अब तुमसे जुदा होने को
तुम्हारी ये पलकें मुझे होठों पर छूने दो !
और अब मुझे स्वीकारने दो --
तुम नहीं हो गलत जो ये मानती हो
कि मेरे दिन गुज़रें है ख्वाब से 
किसी महकते गुलाब से
फिर भी रोशनी यदि सो चुकी है
कोई भी उम्मीद यदि खो चुकी है
दिन में या रात में या दृष्टि में
या और किसी बात में
तो इसीलिए क्या ये कोई छोटी सी बात है
कि जो कुछ हम देखते हैं या देखा है  
और कुछ नहीं
 एक ख्वाब है भीतर एक ख्वाब के । 
मैं खड़ा हूँ शोर और गर्जनाओं के बीच
लहरों के सताये तीर को बूंदों से सींच
और रखे हुये हैं कुछ अनाज़ मैंने मुट्ठी में
दाने जो उगे थे सुनहरी मिट्टी में
गिनती भर ! उस पर भी गिरते हुये
उँगलियों के बीच से फिसलते हुये
आँखों के कोरों से ना संभलते हुये !
हे भगवान ! क्या पकड़े नहीं रह सकता
मैं उन्हें मजबूती से जकड़े नहीं रह सकता ?
हे भगवान ! क्यों मुझसे सहेजा नहीं जाएगा
निर्दयी लहरों से क्या एक भी बच नहीं पाएगा ?
क्या जो कुछ हमनें देखा है या देखते हैं
कुछ नहीं एक ख्वाब है भीतर एक ख्वाब के ?

Nov 2, 2014

एक दृश्य सामने से आता है ...


एक दृश्य सामने से आता है
और पृष्ठ के अंधेरे में खो जाता है
एक आवाज़ बाएँ से आती है
और दायें कान से निकल जाती है
एक आशा ऊपर से जागती है 
निरस्त हो जमीन में समा जाती है
परिदृश्य गुंथा हुआ है महीन रेशों से
परिवर्तन होता है इतना सतत
कि उसकी गति कोई गति नहीं
कि उसकी प्रतीति आधार से जुड़ी है
और अपने में स्थिर दृष्टा
रहता है नियत गतिशील
विचारों में स्वप्न में और आशाओं में !

अ से