Nov 4, 2014

A Dream Within A Dream .... Edgar Allan Poe


अब तुमसे जुदा होने को
तुम्हारी ये पलकें मुझे होठों पर छूने दो !
और अब मुझे स्वीकारने दो --
तुम नहीं हो गलत जो ये मानती हो
कि मेरे दिन गुज़रें है ख्वाब से 
किसी महकते गुलाब से
फिर भी रोशनी यदि सो चुकी है
कोई भी उम्मीद यदि खो चुकी है
दिन में या रात में या दृष्टि में
या और किसी बात में
तो इसीलिए क्या ये कोई छोटी सी बात है
कि जो कुछ हम देखते हैं या देखा है  
और कुछ नहीं
 एक ख्वाब है भीतर एक ख्वाब के । 
मैं खड़ा हूँ शोर और गर्जनाओं के बीच
लहरों के सताये तीर को बूंदों से सींच
और रखे हुये हैं कुछ अनाज़ मैंने मुट्ठी में
दाने जो उगे थे सुनहरी मिट्टी में
गिनती भर ! उस पर भी गिरते हुये
उँगलियों के बीच से फिसलते हुये
आँखों के कोरों से ना संभलते हुये !
हे भगवान ! क्या पकड़े नहीं रह सकता
मैं उन्हें मजबूती से जकड़े नहीं रह सकता ?
हे भगवान ! क्यों मुझसे सहेजा नहीं जाएगा
निर्दयी लहरों से क्या एक भी बच नहीं पाएगा ?
क्या जो कुछ हमनें देखा है या देखते हैं
कुछ नहीं एक ख्वाब है भीतर एक ख्वाब के ?

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