मैं रहता हूँ अपनी आत्मा के वृक्ष की घनी शाखों में
जो अब शायद सूखने लगा है या सूखता लगने लगा है
क्यों कि अब मेरी नज़र चुकने लगी है तो मुझे इसका स्पष्ट भान नहीं होता !
कहते हैं बहुत पहले एक पत्ता
टूट कर गिरा था इसकी शाख से
उसको जमीन छूनी थी
जमीन जो ओझल थी नज़रों से
उस शाख से दूर बहुत दूर कहीं
जिसके बारे में उसने सिर्फ सुना ही सुना था
टूट कर गिरा था इसकी शाख से
उसको जमीन छूनी थी
जमीन जो ओझल थी नज़रों से
उस शाख से दूर बहुत दूर कहीं
जिसके बारे में उसने सिर्फ सुना ही सुना था
पर ऐन पहले वो फड़फड़ाने लगा
अपनी आत्मा से टूटकर अलग होने का भान उसे बीच हवा में हुआ
और उसके सपनों की जमीन उसे मटमैली दिखने लगी
ठीक इसी वक़्त जन्म हुआ एक पंछी का जो फड़फड़ाने लगा अपने जन्म से ही !
अपनी आत्मा से टूटकर अलग होने का भान उसे बीच हवा में हुआ
और उसके सपनों की जमीन उसे मटमैली दिखने लगी
ठीक इसी वक़्त जन्म हुआ एक पंछी का जो फड़फड़ाने लगा अपने जन्म से ही !
कोई ठीक ठीक नहीं जानता कि कब वो उस पत्ते से पंछी हो गया
जबकि इस पेड़ का इतिहास भरा हुआ है ऐसे पंछियों से
इसकी भरी पूरी शाखाओं पर फड़फड़ाते हैं अनगिनत परों के जोड़े
इस वृक्ष पर एक पूरा संसार बसता है !
जबकि इस पेड़ का इतिहास भरा हुआ है ऐसे पंछियों से
इसकी भरी पूरी शाखाओं पर फड़फड़ाते हैं अनगिनत परों के जोड़े
इस वृक्ष पर एक पूरा संसार बसता है !
एक सामान्य सी सुबह में यहाँ हजारों आवाज़ें एक साथ चहकती हैं
पर दाना लाने हर कोई अपने ही परों पर जाता है
अपनी ही चोंचों के लिए चुग कर आता है
दाने तिनके और घोंसले बनाना चुनना जोड़ना और चोंच लड़ाना
इनका बस यही शगल रह आता है
और शाम होते होते सब खामोश हो जाता है !
पर दाना लाने हर कोई अपने ही परों पर जाता है
अपनी ही चोंचों के लिए चुग कर आता है
दाने तिनके और घोंसले बनाना चुनना जोड़ना और चोंच लड़ाना
इनका बस यही शगल रह आता है
और शाम होते होते सब खामोश हो जाता है !
कितने ही पंछी ऐसे भी हैं जो पंजों के बल लटके हैं या स्थिर अटके हैं
इस उम्मीद में कि शायद वो पेड़ उन्हे फिर से स्वीकार कर ले
और वो फिर से एक पत्ता बन जाएँ !
इस उम्मीद में कि शायद वो पेड़ उन्हे फिर से स्वीकार कर ले
और वो फिर से एक पत्ता बन जाएँ !
कोई नहीं जानता इस सब का फलसफा क्या है
बस देखने में आता है कि जब कोई पंछी
सामर्थ्य खो चुकता है अपने पंजों अपने परों पर रह सकने का
तो वो होश खोकर गिर जाता है वहीं
बीच हवा में क्या होता है नज़र नहीं आता
सब ओझल सा हो जाता है कहीं !
बस देखने में आता है कि जब कोई पंछी
सामर्थ्य खो चुकता है अपने पंजों अपने परों पर रह सकने का
तो वो होश खोकर गिर जाता है वहीं
बीच हवा में क्या होता है नज़र नहीं आता
सब ओझल सा हो जाता है कहीं !
मुझे याद आते हैं
वो शुरुआती पल मेरे अस्तित्व के
जहाँ बिखरे पड़े थे जमीन पर कई सूखे बेजान पत्ते
और मैं फड़फड़ाया था ऊपर उड़ने के लिए !
वो शुरुआती पल मेरे अस्तित्व के
जहाँ बिखरे पड़े थे जमीन पर कई सूखे बेजान पत्ते
और मैं फड़फड़ाया था ऊपर उड़ने के लिए !
अ से
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