एक पल को
मुझे दिखता है एक सतत दृश्य
जिसमें वस्तुएँ दृश्य से अलग नहीं होती
और फिर मैं उन्हे पृथक करता हूँ
उनके स्पर्श से
तय करता हूँ उनका रूप आकार
सीमाओं के उस क्षेत्र से
जो गति कर सकता है एक साथ ।
मुझे दिखता है एक सतत दृश्य
जिसमें वस्तुएँ दृश्य से अलग नहीं होती
और फिर मैं उन्हे पृथक करता हूँ
उनके स्पर्श से
तय करता हूँ उनका रूप आकार
सीमाओं के उस क्षेत्र से
जो गति कर सकता है एक साथ ।
और मैं पृथक करता हूँ स्पर्शों को
उनके शब्द से
जो अलग हैं संवेदना में छूने पर
सभी का स्पंदन अलग है और उनका संगठन ।
उनके शब्द से
जो अलग हैं संवेदना में छूने पर
सभी का स्पंदन अलग है और उनका संगठन ।
जैसे मैं पृथक करता हूँ गंधों को उनके रस से
और रसों को उनकी रसायनिक संरचना से ।
और रसों को उनकी रसायनिक संरचना से ।
जैसे मैं अलग करता हूँ शब्दों को
उनके मन से
उनके निहित अर्थ और प्रयोजन से ।
उनके मन से
उनके निहित अर्थ और प्रयोजन से ।
फिर अमुक मन को पृथक करता हूँ
उसकी समझ से
मैं जानता हूँ बालक का अबोध
स्त्री का अपनापन और पुरुष की समग्रता
समय की माँग प्रतीक्षा की बैचेनी
और प्रेम की अधीरता
और इस तरह एक ही वाक्य को
हमेशा एक ही वाक्य नहीं मान सकता ।
उसकी समझ से
मैं जानता हूँ बालक का अबोध
स्त्री का अपनापन और पुरुष की समग्रता
समय की माँग प्रतीक्षा की बैचेनी
और प्रेम की अधीरता
और इस तरह एक ही वाक्य को
हमेशा एक ही वाक्य नहीं मान सकता ।
और समझ पृथक होती है
पात्र के अहंकार से
कि आखिर वो किन वस्तुओं को
जोड़ बैठा था अपनी अस्मिता से
और लिए बैठा था कौनसे संकल्प अपने मानस में ।
पात्र के अहंकार से
कि आखिर वो किन वस्तुओं को
जोड़ बैठा था अपनी अस्मिता से
और लिए बैठा था कौनसे संकल्प अपने मानस में ।
अ से
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