Nov 21, 2014

जब मैं सोता हूँ तय करके सोता हूँ ...


जब मैं सोता हूँ तय करके सोता हूँ कि उठना कब है
कभी तय वक़्त पर नींद खुल जाती है
कभी उठने में देर भी हो जाती है
लेकिन एक बार न उठने से पहले
मैं इस शरीर में कई बार जी उठता हूँ 
कई बार मैं तय करके नहीं सोता कि उठना कब है
और सो जाता हूँ
और रोज के तय वक़्त पर उठ जाता हूँ
लेकिन कभी मैं खूब सोता हूँ
कभी मैं अपनी नियति खुद तय करता हूँ
पर ये नियति सदा नियत नहीं होती
कभी मैं उसे प्रकृति को सोंप देता हूँ
पर प्रकृति में भी नियमन नहीं
कभी मैं सोने और जागने के बीच उलझा होता हूँ
इसी सोने और जागने के अनंत क्रमचयों के
आकस्मिक चुनाव के बीच कहीं चेत हूँ मैं !
अ से

No comments: