Feb 17, 2014

घडी :1

शायद पगला गयी थी घडी की सुइयाँ ,
या ये उनका सबसे समझदार प्रदर्शन था ,

कभी घंटे और सेकंड्स की सुई बदल जाती थी ,
कभी रुक सी जाती थी तीनो ,

उसकी टिक टिक भी पूरी सृष्टि में शोर के लिए काफी होती ,
तो कभी घंटे की आवाजें भी चुपचाप पीछे से सरक जाती ,

हर अलार्म पर मैं जागता था और खुद को सपने में पाता था ,
तो नींद में किसी जमीन पर कुदाली चलाते नज़र आता ,

इतना सब हुआ पर कुछ भी तो नहीं लगता ,
कुछ भी नहीं हुआ पर कितना वक़्त गुजर गया ,

आखिर स्वप्न की उम्र ही कितनी होती है !!

~ अ-से

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