शायद पगला गयी थी घडी की सुइयाँ ,
या ये उनका सबसे समझदार प्रदर्शन था ,
कभी घंटे और सेकंड्स की सुई बदल जाती थी ,
कभी रुक सी जाती थी तीनो ,
उसकी टिक टिक भी पूरी सृष्टि में शोर के लिए काफी होती ,
तो कभी घंटे की आवाजें भी चुपचाप पीछे से सरक जाती ,
हर अलार्म पर मैं जागता था और खुद को सपने में पाता था ,
तो नींद में किसी जमीन पर कुदाली चलाते नज़र आता ,
इतना सब हुआ पर कुछ भी तो नहीं लगता ,
कुछ भी नहीं हुआ पर कितना वक़्त गुजर गया ,
आखिर स्वप्न की उम्र ही कितनी होती है !!
~ अ-से
या ये उनका सबसे समझदार प्रदर्शन था ,
कभी घंटे और सेकंड्स की सुई बदल जाती थी ,
कभी रुक सी जाती थी तीनो ,
उसकी टिक टिक भी पूरी सृष्टि में शोर के लिए काफी होती ,
तो कभी घंटे की आवाजें भी चुपचाप पीछे से सरक जाती ,
हर अलार्म पर मैं जागता था और खुद को सपने में पाता था ,
तो नींद में किसी जमीन पर कुदाली चलाते नज़र आता ,
इतना सब हुआ पर कुछ भी तो नहीं लगता ,
कुछ भी नहीं हुआ पर कितना वक़्त गुजर गया ,
आखिर स्वप्न की उम्र ही कितनी होती है !!
~ अ-से
No comments:
Post a Comment