
मैं शब्दों में खुद ही को सुनता रहा ,
वो अर्थों में मुझको ही कहते रहे !!
मैं प्राण की तरह बहता दृश्यों में
और भावनाओं में रंग कर लौट आता !!
एक लेखनी खाली कागज़ पर बिखरा देती संसार ,
और मनो पंछी चुन लेता अपने आत्म का चित्र !!
एक विचित्र सत्य लोक की यात्रा के बाद ,
फिर लौट आता इस स्वप्न संसार में !!
< अज्ञ >
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