Feb 17, 2014

प्रीत से आहत मन

प्रीत से आहत मन ,
कुछ ही पलों में कर आता है अनगिनत यात्राएं ,
और आ कर बैठ जाता है फिर ह्रदय के अँधेरे में ,
रौशनी की और खुलने वाली सभी खिड़कियाँ बंद कर ,
अपनी ख़ामोशी तक अपनी दुनिया सीमित कर ,
उस बच्चे की तरह जो कहीं से झगड कर आया है ,
उस वृद्ध की तरह जिसे अब और कहीं जाना नहीं ॥

और फिर से कोई शोर,
देने लगता है मानस पटों पर ,
दस्तक पर दस्तक ,
सभी स्मृतियाँ सशरीर गुंजायमान होने लगती हैं ,
बैचैन मस्तिष्क भूल सा जाता है सांस लेना ,
और तभी ,
एक अहम् शांत कर देता है सब कुछ ,
याद दिलाता है वस्तु स्थिति ,
और भी कई काम हैं ,
किये जाने की प्रतीक्षा में ॥

कोई एक काम किया जाता है शुरू ,
बेमन से ,
नाखुशी की उठती गिरती लहरों के बीच ,,
कभी शोर को दबाया जाता है ,
कभी आहत भावनाओं से ध्यान हटाया जाता है ,
काफी जद ओ जहद के बाद आखिर ,
संभलता है ये दिल ,
खुद से किये इस वादे पर ,
की बस ,
अब और नहीं ॥

< अ से >

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