Feb 8, 2014

कौन मरा है भला आज तक

दृश्यों की अनंत धाराओं में से एक का हिस्सा हुआ मैं,
जोड़ता हूँ उसी दृश्य के अन्य हिस्सों को ,
और बुनता हूँ एक कहानी ॥

उस कहानी के अनेकों पात्रों में कुछ उस धारा से पृथक हो ,
जुड़ जातें हैं किसी अन्य दृश्य धारा से ,
कहानी के कुछ पात्र डूब जातें हैं शोक में ॥

इस धरा के सभी तथाकथित निवासी कभी छूते नहीं ज़मीन ,
वो आकाश से अलग होकर बसते हैं ,
खुद ही की माया में ॥

पलक झपकते ही बदल जाती है दृश्य धारा ,
पलक दरियाव के हर बहाव से बचता बचाता ,
जी रहा हूँ मैं खुदको ॥

आँखों से नज़र आती मन से बुनी हुयी ,
बनते बिगड़ते दृश्यों की अस्तित्वहीन सत्ता से पृथक ,
दृश्यों की अनंत असीम धाराओं के तबादले में बचा रहता हूँ मैं ॥

कोई किसी दृश्य धारा में बहे, किसी से पृथक हो , किसी से जुड़े ,
पर क्योंकि वो स्वयं में स्थित है , वो चिर स्थिर है ,
कौन मरा है भला आज तक ॥

< अ-से >

No comments: