Feb 9, 2014

परिंदे

वो देखता था परिंदे ,
रंग बिरंगे परिंदे ,
और पाता था खुद को उनमें ...

फिर वो दौड़ने लगा उनके पीछे ,
उनको पकड़ने ,
उन बागानों में , मैदानों में ...

थकता , हांफता , शांत होता ,
और फिर दौड़ता ,
उनके पीछे ..

जब एक दिन ऊब गया ,
तो पाया ,
वो सब परिंदे खयाली थे ..

उसके खुदके खयाल ,
रंग बिरंगे ,
उड़ते भागते ,
मुक्त आकाश में ,
और अब वो दौड़ नहीं पाया ,
उनके पीछे ...

अब ,
ना कहीं वो परिंदे थे ,
ना ही कोई मैदान !!

< अ-से >

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