
रंग बिरंगे परिंदे ,
और पाता था खुद को उनमें ...
फिर वो दौड़ने लगा उनके पीछे ,
उनको पकड़ने ,
उन बागानों में , मैदानों में ...
थकता , हांफता , शांत होता ,
और फिर दौड़ता ,
उनके पीछे ..
जब एक दिन ऊब गया ,
तो पाया ,
वो सब परिंदे खयाली थे ..
उसके खुदके खयाल ,
रंग बिरंगे ,
उड़ते भागते ,
मुक्त आकाश में ,
और अब वो दौड़ नहीं पाया ,
उनके पीछे ...
अब ,
ना कहीं वो परिंदे थे ,
ना ही कोई मैदान !!
< अ-से >
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