Apr 11, 2014

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !


रोटी को पाँव से दबाए

तलाशी जा रही है हड्डी 
फ़ोन होल्ड पर रख कर 
झांकी जा रही है खिड़की 
कॉलेज अलग बात है फेसबुक अलग 
घर की छत और एक अलग दुनिया 

ऐसा करो तुम सारे लड़ो 
और जीतने वाला नवाजा जायेगा
द रियल मेन की उपाधी से 
जो दे दिया जाएगा पुरूस्कार में
और फिर उस बलवान को पत्थर दिल बता
तलाश लिया जाएगा
कहीं कोई हरक्युलिस
युद्ध पर गए हरक्युलिस के
समय ना देने के लिए
बेरोजगार किसी दिल से बतियाया जाएगा
फिर उस निराश कंधे की बातों पर
बनाया जाएगा उसके सेंस ऑफ़ ह्यूमर का व्यंग्य
बायें से भायेगा कोई जो हँसा सके
और शिकायत की जायेगी
उसके ना सुनने की कमजोरी की
आखिर में कोई आएगा
जो उसे पूरी तरह से नकार कर
सब्ज बाग़ दिखलायेगा
और रसपान कर
भँवरे सा उड़ जाएगा
अब उस बेवफ़ा को कोसा जाएगा जिन्दगी भर

आखिर सारे आदमी एक से ही होते हैं ना !!

सजा-ए-प्रेम


सुनवाई का वक़्त नहीं था 

उसे सुना दी गयी 
सजा-ए-प्रेम 

एक सन्नाटा छा गया 
पानी से धुंध उठने लगी 
हवा भी डर कर ठंडी पड़ गयी 
सारी आग सिमट कर कहीं अन्दर जम गयी 
सारे तारों ने अँधेरो में डूब कर आत्महत्या कर ली 
इतना अँधेरा की उल्लुओं ने भी आँखें बंद कर ली 
सियारों ने घबरा कर रोना छोड़ दिया
चमगादड़ जमीन पर आ गिरे
शिव भी रोक ना पाए गरल
एक कड़वा घूँट निगल ही गए

बस अब चाँद के कोरों से
टपक रही थी रोशनी
टप टप टप

और तो और वो चूहे
जो नहीं जानते थे हमारी दुनिया
वो भी रोये जा रहे थे !!

वो लौट कर आती और देखती आइना


हर बार 

वो लौट कर आती 
देखती आइना 
और बिलख पड़ती 

जाते समय भी 
वो देखती थी आइना
देर तक बारीकी से
हर बार

वो खूबसूरत निगाहें
खूबसूरत नज़र भी
चुनती रही तिनक तिनका
दुनिया की खूबसूरती
और गढ़ती रही खुदको

वो मंझी हुयी सी कलाकार
झोंकती खुदको आईने में
और फिर कुछ याद कर हो जाती हताश

एक दिन जाने से पहले
उसने तोड़ दिया आइना
और खिलखिला उठी
बिखरे कांच के टुकड़ों की चमक में

उसे नहीं जताना था अब
कुछ भी किसी को
आज वो जा रही थी
मुक्त हिरणी सी
गाते हुए
उत्सव मनाते हुए
हंसती खिलखिलाती
झरती बहती लहलहाती

उसे नहीं होना था शामिल
किसी बेमनी दौड़ में

Apr 10, 2014

जब जाना की वो नहीं जानता था


वो नहीं जानता था 

क्या होता है किसी से प्रेम करना 
बस जानता था 
क्या होता है किसी की चाहत रखना 
टूटा कुछ 
जब जाना की वो नहीं जानता था 

वो नहीं जानता था 
क्या होता है दिल टूटना 
बस जानता था 
क्या होता है कुछ छूटना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

वो नहीं जानता था
क्या चाहती थी वो उससे
बस जानता था
क्या होता है दे दिया जाना
टूटा कुछ
जब जाना की वो नहीं जानता था

बहुत टूट चूका है वो शख्स
उससे जुड़ने की कोशिश में
बहुत जख्मी है अहम् उसका
और अफ़सोस है एक
कि बात के मायने बात के ख़त्म हो जाने पर निकलते हैं  !!

Pathless

हाँ वो कार चमकती नहीं



हाँ तुम कह सकते हो वो कार चमकती नहीं 

उसके शीशे धुंधले हैं और उनके पार का शख्स नज़र नहीं आता ठीक से 
और इस कार का चालक एक गरीब इंसान है 

वो गरीब इंसान सच में बहुत गरीब इंसान है 
जो कभी नहीं झुठला सका ये सच 
की रास्ते पर उतरने से पहले ही 
वो गुजर चुकी थी एक दुर्घटना से 
और उसके खरोंच अब तक हैं उसकी बॉडी पर 
उसके इंजन में बैठ चुकी हैं कुछ खराबियाँ जो पकड़ में नहीं आती 
और उसे चलाने वाले के मन में एक लम्बे वक़्त तक बैठी रही दहशत
वो दहशत जिसने उसे बना दिया एक संकोची चालक
और हर बार जब वो गुजरता है किसी और वाहन के नजदीक से
जो उसका सच हावी हो जाता है उस पर

वो सच जो अब सच नहीं है
जबकि अतीत को मर जाना था जो अब वहां नहीं है
पर उसकी धडकनों ने समय समय पर जिलाया है उसे
और वो अतीत कभी अतीत हो ही नहीं पाया
वो आंत्र कृमि आँतों पर चिपका हुआ खाता रहा धडकनें
और अब जब कभी वो चाहता है चमकाना अपनी कार
तो नहीं चमका पाता

वो गरीब चालक जो अपने अतीत के मोह में फंसाहुआ
अपने वर्तमान से सौतेला व्यवहार करता रहा
और अब उसकी संताने बहुत गरीब है
जिनकी आंतड़ियाँ जन्मजात सूखी हुयी हैं
और अब उसके लिए बहुत मुश्किल है उस कार के शीशे चमकाना !!

अ-से

खिड़कियाँ निहारती है पंखे को



खिड़कियाँ निहारती है पंखे को
फिर एक लम्बी साँस छोड़
झुका लेती है आँखें !
बल्ब चमकते रहते हैं बेसबब 
रोशनी तो बिखरती है पर खुशियाँ नहीं !

मकड़ियां थक कर सो चुकी हैं अपने जालों में
कई जगह से टूट चुके हैं तार उनके !
किताबें अवसाद में लेटी हुयी हैं
धूल भरी चादर औढ़ कर
उनमें कहानियाँ तो हैं पर आवाज़ नहीं है !
अ से

आओ ! भूल जाते हैं सब कुछ


आओ !

भूल जाते हैं सब कुछ 
और हँसते हैं साथ बैठकर 
अपने साथ गुजरी हुयी दुर्घटनाओं पर 
की अगर आज तुम खुश हो किसी वजह से या बेवजह 
तो तुम देखना चाहोगे कल उसे एक ताजा तरीन सुबह में 

आओ !
बुनते हैं नया कुछ 
और बनाते हैं एक खूबसूरत कहानी 
अतीत की अनुभूतियों के खजाने में से चुन चुन कर
की अगर आज तुम्हारे पास हैं मसाले सभी खटास और मिठास के
तो तुम भर देना चाहोगे कल उसका अपने हाथों के बेहतरीन स्वाद से

आओ !
चलते हैं ना किसी सैर पर
और चलते हैं दूर तक मैदानों में हाथ पकड़े
खुले हुए आसमानों में हवाओं के मेहमान बनकर
की अगर आज वक़्त है तुम्हारे पास जो जाने कल होगा या नहीं
तो तुम बिता देना चाहोगे उसे उसके साथ जो रखता है मायने जिन्दगी से भी ज्यादा

आओ !
क्या सोचना है
कौनसा वक़्त होता है ऐसा
जब डर नहीं होते ना होती हो उलझने
और तुम बैठे रहो इंतज़ार में जिसके !!

 अ से 

घर के अन्दर घर


एक घर 

अन्दर एक घर 
उस के अन्दर एक घर 
और वो स्थायी निवासी वहाँ की 

एक घर स्वाद और तृप्ति का
एक घर भाव और अभिव्यक्ति का 
एक घर अनंत और स्थिरता का 

वो निवासी उस घर की 
घर के अन्दर घर की
हमेशा वहाँ उपस्थित
स्वागत के लिए तैयार
करती है इन्तेजार

बाहर निकलती है जब
तो किसी का हाथ पकडे
और चलती है साथ
चाँद तक
चाँद के पार तक
समय के पार तक जाना चाहती है

वो जो चाहती है तुम्हे
भर देना
अपने स्वाद से
अपनी सेवा से
अपने प्रेम से

वो जो चाहती है एक घर
घर के अन्दर एक घर
जहाँ वो जानती है तुम रहना चाहते हो
वो देखना चाहती है तुम्हे
वहाँ भीतर तक

वो जो नहीं रह सकती दूर
ज्यादा देर तक घर से
घर के अन्दर घर से

वो जो बांधे रखना नहीं चाहती तुम्हे
पर एक तनी हुयी
रेशमी रोशनी की डोर से
नापती रहती है तुम्हारी दूरी
और जैसे ही वो डोर
खिंचाव देना बंद कर देती है
उँगलियों पर
हलकी पड़ जाती है
वो समझ जाती है
की अब जो रहता था यहाँ
वो अब मेहमान हो चुका है
वो आयेगा भी लौट कर
तो फिर से चले जाने के लिए !!

जमीन के भीतर भी एक है आकाश


बाहर धूप चमक रही है परतों पर 

भीतर मिट्टी नम है दूब लगी हुयी 

एक पौधा है हमेशा हरी कोंपलों वाला 
जो पनपता है बस अन्दर की और 

एक फल है जिसके रेशे और खोल के भीतर 
ताजगी है जल है और मिठास भरी हुयी 

जमीन के भीतर भी एक है आकाश
जहाँ हवा है पानी है और रोशनी भी

और कुछ लोग हैं जो बंद करके दरवाजे
बैठे रहते हैं खिडकियों के पास आँखें मूंदे !!

अ-से

क ने कहा ख ने सुना ...


क ने कहा खामोशी 

ख ने कान लगा दिए 
और वो शोर हो गयी ! 

क ने कहा प्रेम 
ख ने तौबा समझा 
और वो चोरी हो गयी !

क ने कहा आस ना रखना 
ख अवसाद में आ गया 
आशावाद लिखने लगा !

क ने कहा संन्यास
ख आलसी हो गया
संन्यास का मायना बेवकूफी !

क अब कहता ही नहीं कुछ
ख अब भी अर्थ गढ़ता है
कभी डर कभी अकड़ और कभी अक्षमता !

ख का क्या है वो शून्य की भी व्याख्या कर सकता है
और अच्छाई को भी कमजोरी समझ सकता है !!

छोड़ कर ...


जो हँसते थे बात बात पर 

उन्हें हँसता छोड़ आया 
जो रोते थे बात बात पर 
उन्हें रोता छोड़ आया 

सुनाते थे वो अपनी कहानी 
और खो जाते थे
बाहर नहीं आते थे कभी
सो जाते थे

भरे हुए थे सभी
यूँ अपने ही सवालों से
सुनते भी थे मुझे
तो अपने ही हवालों से

छोड़ने निकला सूखे अफ़सोस
और छोड़ आया जहां
बाकी रह गए कुछ मासूम
बिखरे हुए यहाँ वहाँ !!

अ से 

Apr 3, 2014

मैं चाहता हूँ कहना ...

छुई मुई के पौधे सी कोई संवेदना हो तुम
कितनी पहचान है तुम्हे हर तरह के स्पर्श की
तुम्हारे सर को चूमना तुम्हे भरोसा देना है ,
आश्वस्त करना और सिमटा लेना किसी गर्म ऊनी शाल में 
वहीँ सर को चूमना विदा लेते वक़्त तुम्हे सांत्वना देना है
ह्रदय को शांत कर बैचैन मन को हल्का कर देना
तुम्हारे गाल पर चूमना तुम्हे चहका देना है गुलाब सी ख़ुशी से
जो नज़र आता है तुम्हारे खिल उठे गालों पर
और तुम्हारे होठों को चूमना उन्हें सिल देना है प्रेम से
बातों की दुनिया से दूर सीधे दिल को महका देना
तुम्हारे हाथों पर स्पर्श हथेलियों पर उंगली फिराना
अनकहे ही बाँध देना तुम्हें नाज़ुक एहसासों की डोर से
मैं चाहता हूँ तुम शांत हो जाओ अपनी सारी चिंता थकान मुझ पर छोड़कर
और पास बैठकर खो जाओ भूल कर ये सब कुछ हल्के रेशमी ख़्वाबों में
मैं चाहता हूँ तुम भीगने लगो भावनाओं के किसी झरने में
दुनियावी शोर से दूर किन्ही जादुई धुनों में
और मैं निहारता रहूँ तुम्हारी खामोशी
तुम्हारी निश्चिंतता से भर जाऊं
मैं चाहता हूँ कहना की तुम मुक्त महसूस करो
लोहे सी तप्त दुनिया में सोने सी धूपिल
कानों पर लटकी हुयी बुंदकियों सी टिमटिमाती
तुम्हारी खामोशी में इतना खामोश हो सकूँ
कि छलांग लगा सकूँ आकाश के दरिया में
बहते हुए तारों के बीच और देखता रहूँ तुम्हें
पृथ्वी के छोर पर बैठे हुए आकाश में पाँव लटकाए
मैं चाहता हूँ तुम्हारी सुखद उपस्थिति तुम्हारा होना वहाँ
पर मुझसे भी बेखबर खामोश रात में डूबी हुयी
और तब किसी ख्वाब से उभरी हुयी
तुम्हारी मुस्कराहट को देखकर मुस्कुरा सकूँ !!
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क़त्ल


मैं मार देना चाहता था 

पहले उन सब को 
फिर उन उन को 
फिर उसको 

करने को तो बच्चा भी क़त्ल कर सकता है 
पर मजा नहीं है उसमें उतना 
जितना खुद मरने में है !

मैं चाहता था मर जाना ,
पहले तेरे साथ
फिर तेरे लिए
फिर तुझमें ही

मरने में तो अभी का अभी मरा जा सकता है
पर मजा नहीं है इसमें इतना
जितना पल पल मरने मैं है !

अ-से 

Apr 2, 2014

शब्द


दर्पण की तरह 

हैं एक भीत के दो पक्ष 
एक सुनने वाला 
एक बोलने वाला 

वक्ता 
निचोड़ कर मन 
जोड़कर सृष्टि 
बनाता है एक शब्द 
बीजमय शब्द ...

उदगार
होने पर
लगता है
चुक गया
शब्द का जीवन ...

पर
वाक् पंछी है
बीज वाहक
कर्ण पटल
ऊपर सतह
मस्तिष्क की जमीं की
और उस बीज को मिलती है
मानस जमीन भावना जल और चेतन धूप ...

अब वो बीज
उपजेगा
सुनने वाले के ह्रदय में
और रचेगा
पूरी सृष्टि
वो मन
फिर से ...

वो उदगार शब्द का जन्म था जमीं पर !!

अ-से

Surprize


ख़ामोशी में ताकती निगाहें 

शायद तलाश रही थी कोई जुगनू 
बजाय इसके 
मिला एक विस्मय 
सुखद आश्चर्य 
चहकती हुयी दो आँखे 

एक पल ख्वाब सा खामोश 
एक पल हकीक़त खिलखिलाती 
और इतना ही नहीं 
आँखों के नीचे था
एक और सुखद आश्चर्य
एक जोड़ी मुस्कान
और अपना सा लगता कोई चेहरा

अनुमान था जबकी मौसम साफ़ रहेगा
और सामने का मैदान खाली
पर अब वहाँ कुछ मोर नाच रहे हैं
चिड़ियाएँ चहकने लगी हैं
और ठंडी हवा भी चलने लगी है
मौसम से लगता है
शायद आज रात सूरज भी चमके !!

अ से 

मैं पीता हूँ तुझे

अहा मय ! ओ मदिरा ! अये साक़ी !

मैं पीता हूँ तुझे 
बुझाने को 
बुझा दिए जाने को 
प्यास 
सूखा मन 
दग्ध ह्रदय

और मैं पीता हूँ 
और मैं डूब के पीता हूँ 
मैं पीना चाहता हूँ तब तक
जब तक बाकी है मेरी प्यास

और हर घूँट जलते
तेरे जहन में उतरते
हर बूँद के साथ
बढ़ जाती है मेरी प्यास

और मैं पीता हूँ तुझे
बूँद बूँद
मैं पीता हूँ तुझे
बूँद बूँद प्यास

मैं पीता हूँ थोड़ी और
थोड़ी और बढ़ने लगती है
प्यास
और मैं पीता हूँ
थोड़ी और प्यास
और मैं पीता हूँ तुझे
प्यासा बनकर
और तू पीती है मुझे प्यास बनकर !

अहा तुम ! ओ प्रिय ! अये इश्क !

अ से 

नारी अस्तित्व


बारिश के बाद के आसमान में सुनाई देती आवाज सा 

स्पष्ट उभरा हुया तुम्हारा अस्तित्व
दूब पर ठहरी हुयी ओस जैसी तुम्हारी स्वच्छ सजल देह
पहाड़ों पर बिछी हुयी कोई बर्फ की धुली हुयी चादर सी हो तुम 

मात्र प्रेम के चारों ओर खुद को बुनती हुयी 
आगे की ओर बढती हुयी नर्म कोमल लताओं सी 
हर पल सजग 
हर कतरा समर्पण 
दे दी जाती हुयी जीवन को 

कुछ हासिल कर लेने के मद में बलात लिप्त और मोहित पुरुष को
अपने स्पर्श और इशारों से समझाती शक्ति का उपयोग और संचयन
तुम भद्रता का मूर्त उद्धरण
और अनुशासन का उदाहरण

अस्तित्व के छोर तक गहरी तुम्हारी संवेदनाएं
भूख तृप्ति और तुष्टि को कौन जानता है तुम से बेहतर
प्रकृति सरीखी कहीं ऊंची कहीं गहरी
और कहीं घुमावदार तुम्हारी देह
फिर भी हर अंश सरल हर दंश संवेदन

आँखों में सुबह की नर्म धूप सी
सहज सरल और खिली हुयी चमक लिए
खिलखिलाती हुयी नदी जैसी लहराती तुम्हारी बातें
तरंगित लहक लिए हुए तुम्हारी आवाज
स्वच्छ धवल आँखें
जीवन के प्रति आश्वस्त निगाहें
सुन्दर कल्पनाओं में
वास्तविकता का रंग भरती हुयी अनुरक्ति

कोई आश्चर्य नहीं की दिल दुनिया और
दौड़ती हुयी जिन्दगी के किस्से
सब तुम्हारे ही इर्द गिर्द बुने हुए हैं

एक पथरायी हुयी रात की मूरत सा खामोश पुरुष
और एक चहकती हुयी सुबह की दिनचर्या सी दीप्त तुम

तुम्ही तो हो
जो जीवन की अनावश्यकता
दुःख दर्द आँच ताप
और अँधेरे से ऊबे हुए
भटकते हुए पुरुष मन में
भरती हो उमंग
दिखाती हो राह

नारी !
राह भी तुम
रास्ते की छाँव भी तुम
और जिससे मिल कर
हो जाता है पुरुष पूर्ण
वो आखिरी ठौर भी तुम

अ से 

योगी


पहाड़ों में
सघन वृक्षों के बीच एक गुफा 

पत्थर का द्वार और रिसता हुआ पानी 
दीवारों पर चिपकी हुयी लताएं और पीपल की शाखाएं 
सर्द हवा और अद्भुत शांति 
पहाड़ी रंग की जटाएं और कमलासन लिए 
द्वार पर बैठा एक योगी 
रिसते टपकते पानी और पोधों के बीच 
धूप छाँव और अँधेरे में भी 
एक पत्थर पर ध्यानमग्न 

वही इंसानी देह वही संसार वही जीवन
वही हवा पानी और आवाजें
पर अप्रतिम शांती
अनहद आनंद
संतुष्टि
कुछ ना करते हुए भी
अपना कार्य करते हुए

मन मजबूत
अविचल
संयत
और
शांत

ठोस आनंद से भरा हुआ
वो स्थिर योगी
वहाँ है या वहाँ नहीं
सिर्फ वहाँ है या हर कहीं !!

अ से 

एक रंगीन सी दुनिया थी ...


एक रंगीन सी दुनिया थी 

हर चीज का अपना रंग
अपनी ख़ुशी अपना ढंग 

तब ये दुनिया एक मैदान थी 
जिसमें दिखाना होती थी सिर्फ अपना कौशल 
तब जीत हार से कहीं ज्यादा मायने रखता था खेलना 
दमख़म और साहस
जिंदगी का मायना सिर्फ इतना था 
कि जिसे खेलना है वो खेले जिसे नहीं खेलना वो बाहर बैठे 
चोट खरोंच गिरना और दर्द सब शारीरिक थे ,
और इस सब को सह जाना भीतर तक ख़ुशी देता था 

तब एक चित्रकार सबसे चटख धुनें गाता था
तब एक गायक सरगमी लहरों पर बेख़ौफ़ गोते लगाता था
तब एक शिल्पी आसानी से समझा लेता था पत्थरों को अपने दिल की बातें
और तब डर नहीं लगता था किसी भी शब्दकार से

और तब एक शब्दकारा वहां आयी
उसकी वेश भूषा से वो कोई चितेरी नज़र आती थी
जो सक्षम थी हाथों से चाक पर आकार गढ़ने में

कान दिमाग से बैर बैठा दिल को रास्ता देने लगे
उसकी दो साधारण सी पंक्तियाँ भी पहली बार पढ़ी कविता सरीखी थी

और उसके शब्दों के स्पर्श भरने लगे नए से रंग हर चीज में ,
जिंदगी रसमय होने लगी थी खुशियाँ महकने लगी थी
उसने चीजों के प्राकृतिक रंग बदल दिये
और वो दुनिया बिलकुल ही नयी सी लगने लगी

प्यार भरी सरगम
विश्वास भरा स्पर्श
खूबसूरत रंग रूप
मिठास और खुशबू
अस्तित्व का कोई कोना उससे अछूता नहीं था

पर एक सफ़र के साथी एक सफ़र तक ही साथ होते हैं
हम सब छोटे छोटे सफ़र के साथी
सबके स्टेशन अलग हैं सबके वक़्त अलग
वो दिन भी आया जिसका इन्तेजार नहीं था
जब उस कलाकारा ने समेट ली अपनी शब्द कूंचियाँ
और कर लिए रास्ते अलग

ये पता था की ये सब हमेशा नहीं रहना
और मुझे भी लौट ही जाना है ,
पर ये नहीं पता था की उसके साथ
चले जायेंगे उसके दिए वो सभी रंग
रस और रास
यहाँ तक की पहले वाले रंग भी नहीं थे अब
अब सब कुछ खाली और रंगहीन था
सब कुछ खामोश
अब कोई कुछ नहीं बोलता था !!

अ से 

इंतेज़ार

समुद्र के बीच एक टापू है जहाँ अक्सर बारिश होती है
वहां कोई वर्षा वन नहीं बल्कि हरियाली और घास के मैदान हैं
घास कहीं ऊंची लम्बी भी है तो कहीं नर्म दूब सी भी
वहां कोई उल्कापात नहीं होते ना ही कोई धूमकेतु कभी गिरा है 
बस समुद्र के तूफ़ान और छोटे मोटे भूकंप कभी कभी 
वहां बसने वालों जीवों को बैचैन कर देते हैं 
पर फिर वो ही शांति लहरों का शोर और सुहानी हवाएं ...

कुछ इंसान भी हैं जो सारी दुनिया से जान बूझ कर अनजान
वहां अपना छोटा सा जहां बसाए रखते हैं
दुःख अफ़सोस और यादों की बस्तियों से दूर
वो वहाँ प्रकृति के गीत गाते जीवन का उत्सव मनाते
अतीत की सूखी लकड़ियों को जलाकर उसके चारों ओर
वक़्त की लहरों पर पाँव साध कर ,
शाम से रात तक तरंगों के साथ नृत्य करते हैं ...

क्षितिज पर उगती सुबह के साथ जाग जाने वाले वो लोग
अपने बच्चों को कभी नहीं बताते जब तक कि वो खुद ना समझने लगें
की जो गए हैं वो चले गए हैं ना लौट के आने के लिए
अनंत समुद्र और आजाद हवा के बीच रहने वाले वो लोग
नहीं बोते शोक के बीज अपनी जमीन पे
और हर रात बेफिक्र सो जाते हैं
जानते हुए और खुशी खुशी स्वीकार कर
ये टापू उनका जहां उनका दिल
समा जाना है एक दिन इस समुद्र में इसकी लहरों में ...

वो वास्तव में इंतेज़ार में हैं उस दिन के !!

ईशान

और ...

तारों की बरसात हुयी 
ढेर से चूहे जम कर बरसे 
आते ही उन्होंने शुरू कर दिया टर्राना 
और छिड़ गयी महाभारत 
उपमायें और गालियाँ बरसने लगी 
इंसान , बुद्धिमान और न जाने क्या क्या 
और छिड़ गया प्रेम 
गधे सुर से सुर मिलाने लगे 
कव्वे सरगम गाने लगे 
बरसने लगा ज्ञान 
डिग्रीयों का ढेर लगने लगा
और छिड़ गयी दोस्ती
गिद्धों और गीदड़ों के बीच
मंगल में जंगल होने लगा
शरीफाई पर कानून बरसने लगा
महान भगवान सम्मान जैसे लतीफे बनने लगे
और ...

अ-से

उस एक बात के लिए ...


उस एक बात के लिए
कही गयी सभी बातों से

अगर एहसास तुम्हे होता है उस एक बात का 
जो की बेहद सहज और सरल है 
पर मुश्किल है जिसे समझना 
और असंभव है जिसे समझाना
क्योंकि शब्द असमर्थ से हैं 
और मेरी ख़ामोशी में भी वो होश नहीं
अगर तुम्हे इल्म है उसका 
तो मेरा इतना भर कहना सार्थक हे,
अन्यथा सारी दुनिया 
और खुद को और तुम्हें चुकाकर भी
सारे प्रयासों के बाद भी
मेरी बात अधूरी ही रहेगी ।।

अ-से 

The Thinker



उसी समय अपने घर के सभी दरवाजे बंद कर वहाँ दीवार लगा देता ,
जब ये आसान सा जान पड़ता सफ़र अगर ये बता देता की वो यूँ ही ख़त्म नहीं होता !!

तब तक कोई जल्दी नहीं थी मुझे , 
ना ही रूप परिवेश में कोई दिलचस्पी , 
तो आइना देखे बिना ही निकल पड़ा ,
अब लगता है काश वो ही देखा होता ...

दरवाजे के बाहर से गलियारे और मोहल्ले के छोर तक ,
हर दुआ सलाम करने वाले को मैंने प्यार से देखा ,
सफ़र बताया , रास्ता सलाहा , सर फिराया और फिर चल पड़ा ,
वो मुस्कुराए तो थे पर कुछ बता न पाए ,
शायद उन्हें अंदाजा भी न रहा होगा ,
जैसे मुझे ना था ,

सफ़र वास्तव में उतना मुश्किल नहीं था ,
जिनका उद्देश्य नितांत निश्चित था ,
उन्हें जल्द ही काम निपटा लौटते देखने की ,
और जो खासे बेईमान रहे थे अपने दिलों से
उनके भी अच्छी खासी दुनियादारी कमा
आधे रास्ते से ही लौट आने की कहानियाँ सुन चुका था मैं ,
मेरा कोई उद्देश्य भी था या नहीं
मुझे ध्यान नहीं आता ,
कुछ पाने की कभी कोई इच्छा भी नहीं रही ॥

तो मैं खालीपन के चौराहे पर ,
बिखरी हुयी बातों की सड़क को निहारता ,
उडती हुयी अफवाहों की गर्मी में ,
किसी भी आश्चर्य से अनजान खड़ा था ,
और तभी एक बेचैनी की तरह कोई बस आई ,
मेरी सोच का सफ़र शुरू हुआ ....

बस में मेरे अतीत के कई अलग अलग स्वभावों
और शक्ल की तरह के लोग थे ,
जो तरह तरह की धुन ओढ़े पहने ,
अपनी अपनी ढफलीयों पर गाते बजाते
और अपने ही गीत गुनगुनाते नज़र आते थे ,
कभी कभी कुछ दो चार की ताल बैठने लगती थी
पर ज्यादा देर तक नहीं ,
और अन्यथा ताल मिलाने का सबब ही न था ,
हाँ कुछ ताल ठोकते जरूर नजर आते थे ,

सब कुछ बातों का ही बना था ,
सब कुछ विचारों सा तैर रहा था ,
और उसमें एक समझ सा मैं रमने लगा ,
यही वो क्षण था जब मेरे खयाल में मेरा जन्म हुआ ,
शायद अभी तक तो मैं मेरे शांत घर की कोख में ही पल रहा था ,

" बस " अतीत के रास्ते पर बेतहाशा दौड़ने लगी
और बाहर के दृश्य धुंधलाने लगे ,
कुछ खासी यादें ही नज़र आती थी ,
और मैं रमने लगा ,
अब मुझे सहयात्रियों की चर्चाएं कुछ कुछ सुनाइ देने लगी ,
धर्म राजनीति खेल कूद और प्रेम
और न जाने किन किन विषयों के नदियाँ बह रही थी ,

मैं मन सा उनमें गोते खाने लगा ,
विषय विचार के बदलते ही भाव बदल से जाते थे ,
लोगों ने दल से बना लिए थे
और पक्ष विपक्ष की बातें होती थी ,
मुझे उनके हर पक्ष से इतर ,
कुछ न कुछ तो आसमान नज़र आता था ,
और मैं भी अपने बयान देने लगा ,
मेरे बयां किसी पक्ष में नहीं गए ,
वो जस की तस ,
कुछ नीरस और कुछ बहस रोकने की गुजारिश थी ,
तो कुछ अपनी ही दर्शन अभिव्यक्ति ,
और वो ऐसे में अपना हुल्लड़ छोड़ देने को कतई तैयार नहीं थे
मुझे या तो दोनों ही पक्ष सही और समान लगते थे
या फिर दोनों ही बेमायनी ,
पर उनके राग न मिलते ,
हाँ द्वेष कुछ एक सरीखे थे ,
तीसरे पक्ष की आलोचना पर वो एकमत से नज़र आते थे ,
मेरी कुछ बातों से वो प्रभावित होते तो थे ,
पर अपना पक्ष और ना जाने क्या खो देने के डर से पकडे रहते थे ,
वो अपनी अपनी मौज मस्तियों में डूबे हुए ,
बेतहाशा गाते हँसते और खुश रहते ,
कुछ स्वभाव मेरी ही तरह शांत थे ,
मेरे वक्तव्यों के समर्थन भी करते ,
पर उन्होंने किसी बेनतीजा बहस की उतपत्ति ,
और उसे बनाये रखने का कारण नहीं बनना चाहा ,
फिर भी जाने क्यों वो मुझे भाये ,
और कुछ एक ही सी बातों की मिठास भी फैली ,
मेरी ही बात को वो अपने ही अंदाज़ में किसी और तरह कहते ,
और उनकी ही किसी बात को मैं ,
सच कहूँ तो मुझे वो दो चार मानस ही सम समर्थ नजर आए ,
अन्य शोक और आशा के भंवर में फंसे हुए ॥

" और वो ही लोग आपको सच्चे लगते हैं जो आपके ही पक्ष में बोलें ,
फिर चाहे आप किसी पक्ष में हों किसी विपक्ष में या उदासीन "

" हर कोई अपनी ही मान्यताओं के प्रमाण तलाशता है ,
और जो कुछ सुनना चाहता है वही सुनता है ,
इसी से उसके अहम् को संतुष्टी मिलती है ,

" उदासीनता के पक्षी केंद्र की ओर उड़ान भरना पसंद करते हैं ,
इसके विपरीत सुख जैसे भावों की चाह रखने वाले ,
बाहर आकाश में पंख मारते भटकते फिरते हैं "

हर वृत्त के अन्दर वृत्त और उसके बाहर वृत्त की एक स्थिति है ,
और अब तक मुझे पता लग चुका है ,
की सोच और बहस के सफर में इन वृत्तों से बाहर नहीं निकला जा सकता ,
इन वृत्तों की खासियत ये है की ,
वक्रता त्रिज्या बढने के साथ ही ये उथले ,
और घटने पर गहरे व्याप्त और सूक्ष्म हो जाते हैं ,
पर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता ॥

समय गुजरने लगा , रात अन्धियाने लगी ,
अपने अपने टिफ़िन खा चुकने पर कुछ स्वभावतः सो गए ,
कुछ सफ़र में छूट गए और कुछ अँधेरे में डूब गए ,
कुछ इतने गहरे चले गए की फिर नज़र न आये ,

और उस वक़्त पहली बार ,
मैं कोई भीड़ नहीं था ,
तब आप मुझे अकेला कह सकते हो ,
इतनी बातों , किस्सों , कहानियों ,
लोकोक्ति , मुहवारों , सीख , समझों की श्रुतियों के साथ ,
उस सफ़र पर मेरा वास्तविक सफ़र शुरू हुआ ,
और पहले दफा की ख़ामोशी में मुझे नींद आ गयी ,
बस के नाईट लैंप का रैंडम टाइमर सक्रीय हुआ ,
स्वप्नमय संसार में कोई रौशनी मुझे फिर से उसी सफ़र पर ले चली ,
मैं निर्णय , निश्चय , तत्व , मंजिल ,
उद्देश्य के रास्तों पर बेवजह भटकने लगा ,
रात गुज़र गयी ,
सुबह मैं फिर से उसी बस में था ,
थोडा और बेबस ॥

सोच के सफ़र में यात्रा करना और लौट आना दो अलग अलग चीजें है ,
इसके चलते इसके यात्री एक समय बाद रूप और भाव भी बदल लेते हैं ,
वोंग कार वाई की यादों की ट्रेन की तरह ये बस भी बस चलती रहती है ,
नो एस्केप का हॉर्न बजाते हुए ॥

कभी कभी इनसे बाहर झाँकने का सौभाग्य और अनुभव तो मिलता है , पर सब क्षणिक ,
मैंने कई किस्से कहानियाँ सुने हैं , जो केंद्र की तरफ एक दरवाजा बताते हैं ,
जिसकी तरफ अधिकतर उदासीन पक्षी जाते हैं , पर वो अदृश्य निर्जीव बिंदु है ,

और दूसरी तरफ मोह की बढती वक्रता , पागलपन का रूप लेने लगती है ,
ममत्व के किनोरों पर , अहम् की ऊँचाइयों से बने ये वृत्त ,
एक सर्पिलाकार सीढ़ीनुमा जाल बना लेते हैं ,
और इस सबके बीच में कहीं खो गया हूँ मैं .... //

अ-से

दृश्य अनल

दृश्य अग्नि की आंच में 
जलते फूल होते महक 
मद्धम मद्धम
जलता जल शीतलता
मुक्तक शुद्धक पावक 
अनल करती व्याख्या 

फूल रहते हँसते गाते
भंवरे दूर से बतियाते 
तितलियाँ बैठ रंगती पंख
मधु मख चुरा ले जाती बातें
गोष्ठियों में संचता काव्यरस

अपने ही गीतों को
सुनने दौड़ता आसमान
अपनी ही छुअन से
जलने लगती हवा
खुद ही को देखकर
बहने लगती आग
खुद ही को रसकर
महक उठता जल

ह्रदय में संचारता
उड़ता प्रेम पराग
मन को तरंगता
सरगमी संसार
आकाश में गूंजता
धनकीला प्रकाश

अ-से

परफेक्ट दुनिया

दुनिया ,
अर्थ से पटी , ,
न्याय से भरी , ,

जहाँ नहीं किया जाता कुछ भी ,
जहाँ नहीं हो सकता कुछ भी ,
जहाँ नहीं होता कुछ भी ,
जो संभव ना हो ,
जो संभव ना हो किया जाना , 

परिणाम हीन ,
अपमान हीन ,
मान हीन ,

अच्छा बुरा पाप पुन्य
फहम वहम ,

सुख दुःख ख़ुशी गम ,
कल्पनाएँ ,
कल्पनाएँ कल्पनाएं ,

कल्पित दुःख दर्द ,
सच्ची शांति ,

जादूगरी ,
जादू से उभरी ,
जादू से भरी ,

हर बात का कारण ,
कारण का भी कारण ,
अकारण ,

ये दुनिया ,
एक परफेक्ट दुनिया !!

अ-से

तुम्हारे जाने पर

तुम्हारे जाने पर , 
विकल्प नहीं था सिवाय जीने के 
कभी तलाशा ही नहीं था कुछ और !

तुम चली गयी , 
हँसते रहना कहकर , 
आज तक आती है हंसी इस बेकार बात पर !

" तुम भूल जाओगे मुझे एक दिन " 
तुम्हारा ये कहना तो समझ आया था , 
पर इस बात के साथ याद रहती हो तुम अब तक !

तुम्हारा जाना भी ,
किसी गीत को सुनने सरीखा था ,
जो ख़त्म होने पर भी बाकी रह जाता है हमेशा !!

अ-से 

और सबसे बड़ा झूठ है दिल का धड़कना

और सबसे बड़ा झूठ है दिल का धड़कना 

मृत संसार 
बेहोश हवाएं
मृत ऊर्जा की बेसुध धारा से 
दौड़ाई जाती टनों वजनी धड़धड़ाती ट्रेनें 
लुढ़कती हुयी यहाँ वहाँ इंसानी संज्ञाएँ 
नाहक विचारों की तरंगें सोखती बुद्धि वृक्ष की जडें 

सारे ज्ञान विज्ञान सब सच ही हैं सिवाय गणित के 
सबसे बुरा हासिल है जीवन और

अ-से

फिजिक्स जब तुम्हारा कांसेप्ट तोड़ दे

फिजिक्स जब तुम्हारा कांसेप्ट तोड़ दे ,
केमेस्ट्री भी जब क्वार्क पर छोड़ दे ,
तब तुम वैशेषिक पर आना प्रिये
ये लोहा लोहा है लोहा ही रहेगा 
सदा के लिए

कोई रुल होते नहीं 'होने' के
मगर 'होना' शर्तों पे तुमने रखा
मैटर में अणु जो ढूंढे कभी
बनाने लगा 'पार्टिकल गॉड ' नया
हाइजेनबर्ग तुम्हें जब डराने लगे
हाईड्राजन आवर्तता में न आने लगे
तब तुम वैशेषिक पर आना प्रिये
ये लोहा लोहा है लोहा ही रहेगा
सदा के लिए

अभी तुमको इसकी जरूरत नहीं
बहुत राज़ तुमसे भी खुल जाएंगे
बहुत अंदर तक जो जाना पड़ा
पैराडॉक्स कई सारे मिल जाएंगे
दर्पण तुम्हें जब नकारा किये
शैलेन्द्र से भी जब तुम हारा किये
तब तुम ...

(Parody by Darpan)

मौलिकता

चुराई जा चुकी हैं मेरी कृतियाँ , 
मेरे लिखने से पहले ही ,
उनके द्वारा जो आ टपके थे दुनिया में ,
मेरे इस जन्म से भी पहले ,

कुछ भी लिखने लगता हूँ , 
फलाना नाम बता देते हैं दर्पण ,
और बची हुयी प्रेम कविताओं का तो ,
कॉपीराइट भी ले चुके हैं वो , 

गिने चुने तत्व हैं सृष्टि के ,
और सिर्फ उतने ही शब्द संभव हैं ,
जितने वो मूल अक्षर भाव ,
पर ये भी शैलेन्द्र पहले ही कह चुके हैं ,
वो फेसबुक पर पहले आ गए थे ,
कोट्स और उद्धृत वाक्य भी नहीं छोड़े उन्होंने ,

अजीब रेस है जिसमें ,
मैं हमेशा पिछड़ जाता हूँ ,
सारी सृष्टि होती है सामने ,
पर हर वस्तु पर किसी का नाम लिखा है ,

किसी ने कहा नाम में क्या रखा है ,
इसके आगे भी उन्ही का नाम लिख दिया गया ,
यहाँ तक की मेरे नाम के आगे भी किसी का नाम है ,
आखिरी लाइन के लिए भी कुछ मौलिक नहीं बचा है !!

अ-से  

अलविदा

अलविदा के लिए शब्द तलाशते , 
खामोश मन के गहरे संवेदन ,
और धुंधलाते परिदृश्य के बीच , 
वो मासूम चेहरा ,

चेहरा , जो उस वक़्त , 
अधिक मायने रखता था ,
किसी भी और बात से ,
जो समेटे था अपने में ,
मेरा पूरा संसार , 
और जिस पर चमकती थी ,
दो बड़ी बड़ी आँखें ,

आँखे , जो स्थिर थी मुझ पर ,
शब्दहीन , खामोश , अनजान सी ,
जो जानती नहीं थी ,
आने वाला पल ,
डबडबाने लगी ,
बिना हॉर्न दिए चलने लगी ट्रेन के साथ ,

ट्रेन , जो दूर जा चुकी थी ,
कुछ ही पल में ,
जबकि अभी वो पल ,
उतरा भी नहीं था , जहन में ठीक से
आँखों में थी बस अब ,
खाली पटरियां ,
और भर आये आंसू ,

आंसु , जिनको थामने का प्रयास ,
देने लगा गति ,
क़दमों को अनायास ,
परिदृश्य को चीरता ,
दौड़ने लगा मन ,

मन , जो अब ,
चाहता नहीं था रुकना कहीं ,
दौड़ता रहा , तब तक ,
जब तक अधखुला था ,
दुःख का संसार ,

दुःख , जो एक बीज सा ,
चला जा रहा था उड़ता हुआ ,
उस जमीन की तलाश में ,
जहाँ हो सके वो नम ,
और पाते ही वो जमीन ,
समा गया अँधेरे में ,

अँधेरा , जहाँ कुछ और नहीं था ,
सिवाय खामोश टपकते आंसुओं के ,
उस ट्रेन के साथ दौड़ती यादों के ,
और खाली पटरी सरी चाहत के ,

चाहत , आखिरी दो शब्द की ,
जो फंस गए थे कहीं ,
उस आखिरी पल
और पटरियों पर फिसलते वक़्त के बीच ,
शब्द जो दब गए ,
जो पकड़ नहीं पाए ,
उस ट्रेन की साजिश और गति को ,

शब्द , जो आज तक तलाशते हैं ,
अपना मुकाम ,
वो दिल ,
जहाँ बोये जाने थे वो ,
अलविदा के लिए , रखे हुए ,
प्रेम बीज !!

अ-से

लिखने के लिए

लिखने के लिए ,
जीना पड़ता है शब्दों को ,

बंद कमरे में अकेले बैठा इंसान ,
फिर क्या लिखे कुछ ,
जबकि नहीं मुस्कुराती दीवारें उसकी बातों से ,
ना ही बेहोश घुमते पंखे ,
और बेवजह बहती हवा को कोई सुध है ,
की कौन है वहां ,

अनुमान के आधार पर ,
अतीत की गहराइयों में से ,
निकाल कर रखे जा सकते हैं कुछ रंगीन पत्थर ,
पर उनकी चमक अब जा चुकी है ,

जो लिखी जा सकती थी ,
20 की उम्र में ,
वो प्रेम कहानियाँ ,
अब अगर लिखी जाए ,
तो नादानी , अवसाद और शतरंज का किस्सा हो जाएगा ,

शब्द सांस लेते होने चाहिए ,
प्रणव नाद हो जिनमें ,
और मायने जिनके खामोशी हों ,
जो सर का भारीपन ना हो ,
बल्कि राहत का सन्देश बने ,

लिखने के लिए ,
होना चाहिए था मुझे किसी कहानी का हिस्सा ,
जो की शायद मैं नहीं हूँ ,
या अगर हूँ भी ,
तो बंद कमरे में सोते हुए ,
एक इंसान की कहानी ,
जिसमें शायद ही कोई दिलचस्पी लेना चाहे ,
सिवाय इस बात के ,
की बंद कमरों में झाँकने का भी अपना एक मजा है !! 

अ-से