मैंने बोयी एक बात पृथ्वी के मन में
सींचता रहा उसे अतीत की तरलता से
और फूट पड़ी ख़ुशी पृथ्वी की
नन्हे पौधे की शक्ल में !
गाय चखती है शान्ति जमीन पर
वक़्त की एकत्रित खामोशी चरती है
और फुर्सत मैं बैठकर
कर लेती है यादों की जुगाली !
आइना देखता है सबकुछ
अदृश्य रहते हुए
पर कुछ नहीं समझता
लौटा देता है रोशनी की एक बारीक किरण को भी
उसके पास संचयन के लिए कोई कोष नहीं है !
सदियों से समाधिस्थ हैं एक योगराज
असीम शांति लिए विराजमान
अचल योगियों के साथ
हिम आच्छादित पथरायी हुयी काया
जिसकी जटाओं में खेलती हुयी गंगा
चोटियों से निकलकर बहती है मैदानों में !
सबसे बड़ी संख्या है ' एक '
एक विशाल आकार की संख्या
एक माँ एक पिता एक पृथ्वी एक सूर्य एक अनंत व्योम
टूटने पर संख्याएँ हो जाती हैं छोटी
और टुकड़े टुकड़े होकर बिखर जाती हैं
धूल की तरह जमीन पर तारों की तरह आकाश में !
शरीर तीसरी आग है समझ दूसरी
और ह्रदय हर वक़्त प्रज्ज्वलित रहता है
तीनों आँच में जीवन तपता है हर वक़्त
और यही आग हमें जकड़े रहती है ।
अ से
1 comment:
शरीर तीसरी आग है समझ दूसरी
और ह्रदय हर वक़्त प्रज्ज्वलित रहता है
तीनों आँच में तपता है जीवन हर वक़्त
पर हर आग खुद में बड़ी ठंडी होती है !...... बहुत खूब
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