Aug 28, 2014

अम्लान


1 .
नीले चादर का झीना झिलमिलाता सा तम्बू
एक कोने में जलते हुए चाँद की रोशनी से लबालब
और दो ठहरी हुयी साँसों के दरम्यान रखा हुआ " अम्लान "
साँसों की नमी से सींचा था जिसे हमने ... पूरी रात
ना तुम सोयी थी ना मैं ... सुबह तक कान रखकर सुनी थी मैंने तुम्हारी साँसें शोर करते ... पहली दफा
और इसमें सहेज कर रख दी थी हमनें एक ख्वाहिश ... प्राणों की

हमें बचाना था इसे मुरझाने से
इसे बचाना था हमें मुरझाने से
हमें बचाना था हमें मुरझाने से
हम सच छुपा सकते हैं खुद से
हम झूठ बोल सकते हैं एक दुसरे से
पर अम्लान जानता है
उन साँसों में कितनी नमी बाकी है अब तक !!

( for my endless poem ... for my eternal wish )

2 .
खिड़की से बहकर आती चाँद की रोशनी
धुल कर खिल आता अँधेरे में उसका चेहरा
श्वेत-स्याम दृश्य में उभर आते मन के रंग
दो हाथ उँगलियाँ बांधे निहारते एकटक
एक दुसरे की आँखों में सींचते " अम्लान "
सम्मोहन का लावण्य .... आपे का खोना
प्रेम की कस्तूरी ... मदहोश होना
स्पर्श के आश्वासन ... प्रेम मय स्मृतियाँ
रास उल्लास .... आनंदमय विस्मृतियाँ
अब जब तुम मिलती हो मुझसे
अब जब मैं मिलता हूँ तुमसे
हम झांकते हैं एक दुसरे की आँखों में
हमारी आँखें झांकती है हमारी आत्मा में
जबान खामोश हो या कहती हो कहानियाँ
शरीर स्थिर हो या छुपाता हो रवानियाँ
पर अम्लान जानता है
इन आँखों में कितनी नमी बाकी है अब तक !!

( सबकुछ ... थोडा थोड़ा कुछ नहीं )


अ से






2 comments:

Unknown said...

कोमल एह्सास को खूब्सूरती से पिरो दिया है आपने अनुज...,,बहुत सुंदर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बेहतरीन....