Oct 31, 2013

गीतांजलि --- 1

तूने मुझे बिना किनारे का बना दिया है ,
तेरा मज़ा ही कुछ ऐसा है ,
ये छोटा सा पोत जिसे तू बार बार हवा से खाली कर देता है ,
और फिर इसमें नया जीवन भर देता है ॥

बांस की ये एक छोटी सी बांसुरी ,
जिसे तू हमेशा साथ लेकर चलता है ,
पहाड़ियों और घाटियों पर ,
जिससे सांस लेती हैं ,
चिर नवीना सरगम ॥

तेरे हाथों के अमृत स्पर्श पर ,
मेरा ये नादान सा दिल ,
ख़ुशी से उछलता अपनी हदें भूल जाता है ,
और जन्म देता है अनकही दास्तानों को ॥

तेरे अनंत उपहार मुझ तक पहुँचते हैं ,
सिर्फ इन छोटे हाथों में मेरे ,
सदियाँ बीत गयी हैं ,
अभी भी तू दिए जाता है ,
और अभी भी इनमें जगह खाली है ,
कुछ भरने को ॥

.................... ( गीतांजलि ) ....................

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