सदियों से इतिहास दोहराया है , कर्म ने ,
सारी उठती मशालों के बावजूद , अँधेरा है ,
की जब कुछ बदलने वाला ही नही ,
तो क्या अर्थ है कर्म का ,
समस्या जस की तस रहती है ,
कुछ यूं की वो ही संसार का बीज है ,
तो या तो सब ख़त्म हो जाए ,
या मेरी संवेदनाएं ..
और काहे का पुरुषत्व ,
मैंने जाना है दुनिया का सबसे भूखा और बेबस जीव उसे ...
एक स्त्री से कहीं ज्यादा !!
दोराहे पर खड़ा ,
खा सकता है पर अघाता नहीं ,
जा सकता है पर जाता नहीं ....
सारी उठती मशालों के बावजूद , अँधेरा है ,
की जब कुछ बदलने वाला ही नही ,
तो क्या अर्थ है कर्म का ,
समस्या जस की तस रहती है ,
कुछ यूं की वो ही संसार का बीज है ,
तो या तो सब ख़त्म हो जाए ,
या मेरी संवेदनाएं ..
और काहे का पुरुषत्व ,
मैंने जाना है दुनिया का सबसे भूखा और बेबस जीव उसे ...
एक स्त्री से कहीं ज्यादा !!
दोराहे पर खड़ा ,
खा सकता है पर अघाता नहीं ,
जा सकता है पर जाता नहीं ....
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