Oct 16, 2013

सारे अंतर ज़मीनी ही हैं , सतह से ऊपर उठते ही द्वैत नहीं रहता,
पृथ्वी स्वीकार करती है अपनी ही दासता , आकाश को खुदका भी इल्म नहीं रहता ॥

ज्ञान की दिशा में जो गूढ़ है , तत्व की दिशा में जो महत् है , ध्यान की दिशा में जो सूक्ष्म है ,
वही दृश्य की दिशा में आकाश है , गंध की दिशा में पवित्रता और ध्वनि में निषाद ॥

ये वो दिशा है जिस ओर गति करता जमीनी स्पाइडर-मैन (जो जाल बुनता रहता है ) ,
पहले ही-मैन बनता है , और अंत में सुपर-मैन हो जाता है ॥ (pj)

पृथ्वी पर सारी लड़ाई पृथ्वी की ही है ,
यहाँ उसी वक़्त युद्ध गीत गाये जाते हैं , जब गांधी अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं ॥

न राम रहे न कृष्ण रहे न यीशु रहे न बुद्ध , बहुत से और भी नहीं रहे ,
और जो नाम के लिए लड़ते रहे , उनका इतिहास में अब कहीं जिक्र भी नहीं , कोई इंच भर जमीन भी न बचा सका ॥

अहिंसा ही परम धर्म है , किसी को क़त्ल करने से पहले खुद क़त्ल होना होता है ,
वो मर चुके हैं जिन्हें खुदा की चीखें सुनाई नहीं देती ॥

पृथ्वी अनोखी है और शापित भी ,
यहाँ तीन समुद्रों के जल मिलकर भावनाओं के अनंत क्रमचय बनाते हैं ॥

यहाँ बिखरे पड़े हैं किसी विशाल आईने के खरबों टुकड़े ,
जिनमें अन्योन्य कोणों से दिखाई देते हैं , जीवन के प्रतिबिम्ब ॥

पर कोई प्रतिबिम्ब पूर्ण वास्तविक नहीं होता ,
सबसे प्रायिक बिम्ब ही सत्य के सबसे समीप है ,
मात्र अद्वैत की ही प्रायिकता एक है (maths) ॥ ...................................... अ से अनुज ॥

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