देह, ह्रदय की भीतियों से न गुज़र पाया प्रकाश है ।
ह्रदय की भीतियाँ ममत्व की बनी होती हैं ।
ममत्व का ही धर्म सृजन है ।
पानी में पानी की ही दीवारें पानी को ही घुलने मिलने से रोकती हैं ,
कल्पना के रंगों और ममता की मजबूती उसे ये अधिकार देती है ॥
जीवन एकत्व से स्वयं का आनुपातिक पृथक्करण है ।
पूर्ण रूप से पृथक हो पाना संभव नहीं ,
और पूर्ण एकत्व की कोई देह नहीं ॥
ह्रदय की भीतियाँ ममत्व की बनी होती हैं ।
ममत्व का ही धर्म सृजन है ।
पानी में पानी की ही दीवारें पानी को ही घुलने मिलने से रोकती हैं ,
कल्पना के रंगों और ममता की मजबूती उसे ये अधिकार देती है ॥
जीवन एकत्व से स्वयं का आनुपातिक पृथक्करण है ।
पूर्ण रूप से पृथक हो पाना संभव नहीं ,
और पूर्ण एकत्व की कोई देह नहीं ॥
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