Oct 16, 2013

एक सन्नाटा पसरा है , कई मीलों तक ,
या ये कहें कई प्रकाश वर्षों तक ,
कोई दिशा नज़र नहीं आती , सब और एक सा अँधेरा है , और एक सी ख़ामोशी ,
बीच बीच में कई सूरज चमकते तो हैं पर जुगनुओं से भी मद्धम ,
प्रकाश बेअसर सा है यहाँ ,
अनंत अंधेरे के बीच वो कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता ॥

इसे जाना तो जा रहा है ,
पर यहाँ कोई नज़र नहीं आता, न तो मैं न ही कोई और ॥

रोना यहाँ किसी पागलपन की तरह होगा ,रोने का कोई मतलब नहीं ,
और हंसने की कोई गुंजाइश नहीं ,
सब एकरस सा है तो ध्यान देने का कोई मतलब भी नहीं ,
यहाँ कोई सृष्टि नहीं है , कोई भी भाव नहीं उठ रहा ॥

कोई भी देह उपस्थित नहीं ,
जो अपने स्पर्श से ये बता सके की यहाँ हवा भी बहती है या नहीं ,
न ही कोई कर्ण पटल जो कम्पित हो सकें किसी के रूदन पर ॥

इस अनंत में शून्य कुछ इस तरह व्याप्त है की भेद करना असंभव है ,
कि ये शून्य में है की शून्य इसमें पसरा हुआ है ॥

इस अनंत शून्य में ,
एक नगण्य सा स्वप्न है ,
जीवन ॥ ............................................... अ से अनुज ॥

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