कोई रात अंधियारी नहीं होती ना ही कोई दिन दीप्त ।
सूरज कब सोता है भला रात कब जागती है ॥
अबोध अनजान तप्त अशांत
बैचेनी भरा अन्धकार ,
मेरा दोष भर ।
सरल मृदु शीतल महान
नर्म तेज प्रकाश ,
एक होश भर ॥
वो जो न रातों में सोता है ,
वो जो ना बातों में खोता है ,
वो जो न ख़ुशी में भीगता है ,
वो जो ना दुखों में रोता है ॥
रत है सतत है सतत रत है सदा ,
न रुकता है ना ही चलता है ,
देखता है सबकुछ ,
पर दृश्यों में नहीं खोता है ॥
न अन्दर है ना बाहर
पर जाहिर है सदा ,
ना जीता है न मरता ,
और हाज़िर है सदा ॥ ........ ............ ................. प्रकाश ॥
.................................................................. अनुज ॥
सूरज कब सोता है भला रात कब जागती है ॥
अबोध अनजान तप्त अशांत
बैचेनी भरा अन्धकार ,
मेरा दोष भर ।
सरल मृदु शीतल महान
नर्म तेज प्रकाश ,
एक होश भर ॥
वो जो न रातों में सोता है ,
वो जो ना बातों में खोता है ,
वो जो न ख़ुशी में भीगता है ,
वो जो ना दुखों में रोता है ॥
रत है सतत है सतत रत है सदा ,
न रुकता है ना ही चलता है ,
देखता है सबकुछ ,
पर दृश्यों में नहीं खोता है ॥
न अन्दर है ना बाहर
पर जाहिर है सदा ,
ना जीता है न मरता ,
और हाज़िर है सदा ॥ ........ ............ ................. प्रकाश ॥
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