Oct 16, 2013

सारे कर्म चेतना को अनुभूति देने के लिए ही किये जाते हैं ,
शव को नहीं खिलाये जाते अंगूर ॥

जड़ प्रकृति में चेतना , पानी में बूँद के गिरने की तरह लहरें पैदा करती है ,
और वो लहर लौट कर फिर वहीँ आ मिलती है ॥

जैसे विध्युत धारा किसी स्वचालित मशीन में गति पैदा करती है ,
उसी तरह आप इस संसार को प्रकाशित करते हो ॥

चेतन की तरह ही एक और तत्व मौलिक कहा जाता है , वो है प्रधान प्रकृति ,
ये किसी सॉफ्टवेयर की तरह व्यवस्था मात्र और जड़ है , इसमें स्वयं बोध नहीं ॥

चेतन के संयोग से प्रकृति सृष्ट होती है , और वियोग से लय ,
संयोग और वियोग के बिंदु ही काल गणना है ॥

मूल प्रकृति साम्य है , मूल नियमों में सबको समता मिलती है ,
पर मूल से ही महत्ता की उत्पत्ति होती है , और महत्त्व से ही विषमता पैदा होती है ॥

महत से अहंकार पैदा होता है ,
मूल को महत्त्व देने की प्रकृति सात्विक और इसके विपरीत जाने की राजसिक प्रकृति है , और अस्पष्टता तामसिक ॥

राजसिक प्रकृति से ही प्रवृत्ति की उत्पत्ति बताई जाती है , उसी से बुद्धि की उत्पत्ति है ,
वो भी अहंकार के प्रभाव में उपरोक्त ३ प्रकार की हो जाती है ॥

बुद्धि के संकल्प विकल्प में , उसी का एक हिस्सा मन हो जाता है ,
द्विध्रुवी द्वन्द बुद्धि मन में ही आकाशों और अवकाशों का प्रकाशन होता है ,॥

अहंकार कर्ता कारक कहलाता है , बुद्धि कर्म कारक और मन करण कारक,
आकाश क्रमशः चौथी विभक्ति है सम्प्रदान कारक ॥

हर अगली उत्पत्ति पिछली का ही एक अंश है , उसी में उपजती अस्थिरता ,
पर वो अपने कारण को पूर्णतया न तो विचलित कर सकती है न ही उसको नष्ट ॥

हाँ , तो फिर , शब्द गुण वाले आकाश के आंशिक विचलन से स्पर्शमय वायु ,
और वायु से रूप गुणी अग्नि , और अग्नि से रस गुण वाले जल की उत्पत्ति बताई जाती है ॥

ये क्रमशः अपादान , सम्बन्ध और अधिकरण कारक होते हैं ,
रसमय जल से सम्बोधन कारक गंधमय पृथ्वी उत्पन्न होती है ॥

सब कुछ नित्य और सतत है ,
इसमें कोई अंतराल तो नहीं , पर सब कुछ सीमा और सांतत्य के अनुसार उत्पन्न और लय होता है ॥

आज तक कोई कानून नहीं टूटा ,
कोई कार्य नहीं हुआ प्रकृति के विपरीत ॥

किसी ने चाहे जो कुछ किया हो ,
वो संभव था इसीलिए हो पाया ॥

आप कोई नियम ना मानें ये संभव है ,
पर वो बदस्तूर लागू हैं ॥

आपके पास सौ वजह हो सकती हैं दुःख की ,
पर आप दुखी नहीं हो सकते ॥

हाँ पर अपने अहंकार को नियमितता से सींच कर ,
सच से मुँह बायें रह सकते हैं , जड़ बने रह सकते हैं ॥

कोई हत्या ब्रह्म ह्त्या नहीं हो सकती ,
कोई भी पाप मूर्खता से अधिक कुछ नहीं ॥

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