अपने अहम् का बोझ अपने कंधो पर लिया घूमता हूँ ,
रंगीनियों की कोंध में कुछ दिखता नहीं अब मुझको ,
इतना कुछ कहा सुना की अब कोई आवाज़ दिल तक नहीं जाती ,
जहन में दबे हैं राज़ अपनी नासमझियों के ,
ये मन बोझिल है ... कदम थके हुए ..
कोई बताये मुझको .. जाना कहाँ है ॥ ............... अ-से अनुज
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