Oct 16, 2013

दुःख-सुख, आशा-निराशा,
दिन-रात, जीवन-मृत्यु ,
और सभी द्वन्द ,
और कुछ नहीं,
मात्र "अभिव्यक्ति" है ।

सारी अभिव्यक्तियाँ,
सभी व्यक्ति,
पूरी प्रकृति, पूरा परिणाम ,
भूत, वर्तमान और अनुमान ,
संकल्प-विकल्प, और अज्ञान ,
सब "अनुभूति" हैं ।

पर आश्चर्य ,
अनुभूति भी ,
स्वयं की अनुभूति में ,
एक "अनुभूत" है ।

अनुभूत,
जो प्राचीन है ,पुरातन है , हो चुका है ,
जो सदा एकरस है ,
और ऐसा ही रहने वाला है ,
वो शुद्ध ज्ञान है ,
और शुद्ध साक्ष्य है ,
जिसके बिना प्रमाण भी निरस्तित्व है ॥

और आश्चर्य ,
वो अनुभूति भी जो की शुद्ध क्षमता है ,
वो भी काल के प्रभाव से ,
पूर्ण अनुभूत नहीं हो पाती ॥

"काल "
जो शुद्ध गणित है ,
जो भाव-परिस्थिति ,
मुहूर्त-नक्षत्र , ग्रह-ज्योतिष ,
दशा-महादशा-अन्तर्दशा ,
के अनुसार कलित होता है ,
और जिस के कारण अनुभूत ,
अनुभूति प्रतीत होता है ॥

सदियों में कभी ,
"अनुग्रह" से ,
अनुकम्पा से ,
सृष्ट होती है पूर्णता ,
व्यक्त रूप में (वैसे वो पूर्ण ही है ) ,
जब अनुभूति कर लेती है ,
पूर्ण अनुभूत ,
स्वयं को ,
और तब ,
कुछ भी शेष नहीं रहता ,
रहता है मात्र एक अविशेष ॥ .......................... अ से अनुज ॥

No comments: