Oct 16, 2013

मैं खुशकिस्मत हूँ ,
भाग आया हूँ एक युद्ध से ,
वहाँ जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता ,
मेरी आदर्श ,
मेरी गुरु बिल्ली से सीखा 
काम आया आज ,
उन सभी को वहाँ ले जाकर
मैं दबे पाँव लौट आया ,
अब कहीं भी जाने से पहले ही
देख लेता हूँ छिपे हुए गलियारे ,
और सीख चुका हूँ मौके ताड़ना भी अच्छे से
अब मैं रखूंगा
दो और गुरु बिल्ली
तो मैं भाग आया हूँ
मैं खुशकिस्मत हूँ ,
मैं भाग आया हूँ बुद्ध से ,
मेरे खुशहाल खेत खलिहान में ,
मैंने पाले हैं चूहे ,
खूब सारे चूहे ,
उन चूहों से पैदा होते हैं
और भी खूब सारे चूहे और ,
खूब चुहल होने लगी है ,
कुछ नहीं करता मैं घर पर अब
बस चूहे पालता हूँ ,
मैं खुशकिस्मत निकला ,
मैं भाग आया हूँ
नहीं मैंने नहीं किया
खराब ये सारा वक़्त
मैंने सीखा है इस बीच
कुत्तों सरीखा भौंकना ,
मैं जान रहा हूँ भूँका जा सकता है ,
कब कहाँ किस पर
आखिर विज्ञान भी कायल है ,
हम इंसानों की समझ का
और मैं सीख रहा हूँ आजकल ,
पूँछ हिलाना भी
मैं जानता हूँ मैं समय से पीछे हूँ
पर इसकी वजह है मेरा बचपन
जो बीता था गिलहरियों के बीच
दौड़ते फुदकते
उन्होंने कुछ नहीं सिखाया मुझे
वो बस दौड़ती रहती थी बेफिक्र
अब क्योंकि मैं ठहरा बुद्धिमान ,
तो पसंद नहीं मुझे
अपने ही घर में कान खाने वाले
कल ही मैंने मारें हैं
कुछ कव्वे
आज कबूतरों की बारी है !
अब सभी से कुछ न कुछ सीख रहा हूँ मैं
गिद्ध, चमगादड़, उल्लू , साँप और सियारों से भी
पर सबसे ज्यादा मुझे पसंद हैं चूहे ,
क्योंकि वो दौड़ाते रहते हैं मुझे दिनभर ॥
अ से

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