Oct 16, 2013

एक पल पल जलता रहा ,
एक उस पर रोटी सेकता रहा ,
और एक खाता रहा ,
जब तक की एक तीनों को निगल नहीं गया ॥

खाने वाला निवाला बन गया ,
सेकने वाला ज्वाला बन गया ,
और जलने वाला खुद निगलने वाला ॥

एक दोमुँहा सांप सबको निगल जाता है ,
केंचुली बदलकर बाहर आता है वक़्त ॥

पाँच उँगलियाँ और एक अँगूठा विद्रोही हो गए ,
और बाँह कोहनी से अलग चलने लगी ॥

एक ही व्यक्ति की आठ स्त्रियाँ झगड़ने लगी ,
प्रेम के अभाव में वो ख़ुदकुशी करने निकल पड़ा ॥

२ ८ स्त्रियाँ उसे ३ रस्सियों से बाँध कर धीरे धीरे रात के समुद्र में खींचने लगी ,
कोई चारा न देखकर उसने खुद से ही ब्याह रचा लिया ॥

अब आठों स्त्रियाँ बेसहारा हो चुकी थी ,
उनका पति उनकी सौत बन चुका था ॥

घर के अभाव में एक खुद में ही रहने लगा ,
अब वो दिखाई नहीं देता ॥

दिशाओं के हाथी चिंहाड़ने लगे ,
जब एक ने उन्हें देखा हवा को रोक कर ॥

सदियों से रुका एक फव्वारा अचानक चल पड़ा ,
जब एक को फुर्सत मिली चैन से बैठने की ॥

एक वृद्ध बैठा है ध्यानमग्न ,
दसों और खेल रहें हैं बच्चे उसके ॥ .......... ............ .............. दृश्य ॥
-------------------------------------------------------------------- अनुज ॥

No comments: