इन शब्दों को बहुत गौर से सुना है मैंने ,
अपनी उदगार के बाद से ही धीमे और धीमे और धीमे से हो जाते हैं ,
पर कभी खामोश नहीं होते ,
उस धीमी हो चुकी ध्वनि के पीछे अपने कान ले जा सकूँ ,
और सुन सकूँ ,
जो भी उसने कहा था , उस वक़्त ,
वो शब्द वो घोष वो उदगार वो गूँज वो खिलखिलाहट वो नाद वो आल्हाद वो सभी बातें ,
वो सब यहीं हैं ,
मुझे पता है ,
पर बहुत शांत सी हो चुकी हे ध्वनि ,
और बहुत शोर है मेरे मन में ,
सामाजिक ताप से दग्ध ह्रदय में ,
हाय-तौबा से कम्पित कर्ण पटलों में सामर्थ्य नहीं दीखता ,
सुन सकें,
उस मधुर कविता को ,
उन गीतों को जो वक़्त ने पिरोये थे मेरे लिए ,
सिर्फ मेरे लिए ,
और वो समाते जा रहें हैं इस शून्य बेपरवाह आकाश में ,
ओ दुनिया ! चुप हो जाओ , मुझे सुन लेने दो ,
क्या कहा था उसने ,यहीं इसी जगह,
बहुत वक़्त पहले ....!! ................अनुज अग्रवाल (repost)
अपनी उदगार के बाद से ही धीमे और धीमे और धीमे से हो जाते हैं ,
पर कभी खामोश नहीं होते ,
उस धीमी हो चुकी ध्वनि के पीछे अपने कान ले जा सकूँ ,
और सुन सकूँ ,
जो भी उसने कहा था , उस वक़्त ,
वो शब्द वो घोष वो उदगार वो गूँज वो खिलखिलाहट वो नाद वो आल्हाद वो सभी बातें ,
वो सब यहीं हैं ,
मुझे पता है ,
पर बहुत शांत सी हो चुकी हे ध्वनि ,
और बहुत शोर है मेरे मन में ,
सामाजिक ताप से दग्ध ह्रदय में ,
हाय-तौबा से कम्पित कर्ण पटलों में सामर्थ्य नहीं दीखता ,
सुन सकें,
उस मधुर कविता को ,
उन गीतों को जो वक़्त ने पिरोये थे मेरे लिए ,
सिर्फ मेरे लिए ,
और वो समाते जा रहें हैं इस शून्य बेपरवाह आकाश में ,
ओ दुनिया ! चुप हो जाओ , मुझे सुन लेने दो ,
क्या कहा था उसने ,यहीं इसी जगह,
बहुत वक़्त पहले ....!! ................अनुज अग्रवाल (repost)
No comments:
Post a Comment