Oct 16, 2013

अनंत उद्घोषों और कानाफूसियों से गुंजायमान है अन्तराल ,
कई लोग उग आये हैं दीवारों पर कानों की तरह ॥

सब ओर लहराते हुए परदों के बीच तैरती हैं अजीबोगरीब आकृतियाँ ,
अनजानी दीवारों से टकराती खिडकियों से पार जाती हुई ॥

रंग बिरंगी रोशनियों में जलता है संसार सारा ,
आँखों के रास्ते दिल तक पंहुचती है दहक उनकी ॥

वेग से बहता हुआ प्यार हर दिशा में मारता है हिलोरे ,
जीभ लेती है उठती गिरती लहरों का खट्टा मीठा नमक ॥

नयी उगी दूब पर खिलते हैं ख्वाब सारे , ओस में धुले हुए ,
वहीँ हकीक़त होती है खुशबू उनकी और वहीँ हो जाते हैं सब कहानी ॥

.................................................................. अ से अनुज ॥

No comments: